फूलों से प्यार...

 सुप्रभात मित्रों।

रामराम।


कितने सुंदर फूल है ये ?

कितने नाजूक भी।


मेरा,तुम्हारा, हम सभी का,

ह्रदय भी सचमुच में

इतना ही सुंदर बनाया है भगवान ने।

नाजूक, कोमल,भावस्पर्शी।


इसिलिए हम सभी इंन्सान सभी पर सदैव पवित्र और निस्वार्थ प्रेम करते रहते है।

एक दुसरे की सहायता करते है।

सुखदुख आपस में बाँट लेते है।


दुसरों के दुखों में सहभागिता लेकर,उसको आधार देना हमें सचमुच में कितना आनंदित करता है ना ?


निष्पाप आनंद, अपरिमीत आनंद।

इसी आनंद की तरंगे तो हमें ऐसे कोमल,नाजूक फूलों की याद दिलाते है।


और दुसरों का दुख देखकर अगर हमारे आँखों में आँसु बहने लगते है तो ?

यह आँसु नही होते है दोस्तों।

यह तो अमृतधाराएं जैसे अनमोल होते है।


दुसरों को दुखों में आधार देना यही तो मानवता है।

यही तो हमारे संस्कार, संस्कृति महान है।

इसीलिए तो हम सहिष्णु है।


मगर

अगर

इतना प्रेम करनेपर भी हमारे ह्रदय को कोई दुखदर्द, पिडा,यातना,खरोंच देता है तो...???

हमारा दिल भी तडप उठता है ना ?

और फूलों जैसा पवित्र, कोमल ह्रदय भी

पत्थर बन जाता है।

और आदमी ऐसे बारबार के अनुभवों से पत्थरदिल बन जाता है।


अगर कोई कोमल ह्लदयी पत्थरदिल वाला बनता है तो..

क्या वह उसका दोष है ?

नही ना भाईयों ?

हम सनातन प्रेमी भी ठीक इसी प्रकार से सभी पर,

मानवतापर,पशुपक्षीयों पर,ईश्वर पर निष्पाप प्रेम करते है...

और उपर से हमारे ह्रदय पर ही कुठाराघात होता है तो ...???


बिल्कुल ऐसा ही होता आया है ना सदियों से ?

आक्रमणकारी, चोर,लुटेरों ने हम पर आजतक बरबरता से कितने आघात किये है ना ?

तो मेरे प्यारे भाईयों,

अब भी हम फूलों जैसे कोमल दिलवाले, सहिष्णु कैसे रह सकते है ?

अहिंसा तो भगवान श्रीकृष्ण हमें भगवत् गीता में सिखाते है।

मगर इसका मतलब यह नही की अहिंसक बनकर ,सहिष्णु बनकर, कोमल ह्रदयववाले बनकर,

अत्याचारीयों का सामना किये बगैर ही तडप तडप कर मर जायेंगे।अस्तित्व शून्य बनते जायेंगे।


फिर हमारे फूलों जैसे कोमल ह्रदय का क्या फायदा ?


भगवत् गीता का अधूरा मंत्र और आधा हिस्सा हमें पढाया गया।

अरे हम तो है ही सहिष्णु, अहिंसक, कोमल मनवाले।


तो....???

आगे क्या करना है ???

सोचो,समझो,जानो,जागो।

कोमल फूलों की पत्तियों की तरह हमें सिकुडकर समाप्त होना नही है।


वज्रनिर्धारी बनना है।

सत्य, मानवता, धर्म, संस्कृति, संस्कारों को बचाना है।


जागो मोहन प्यारे।

अधर्म का अंधीयारा बढ रहा है।

सैतानों के हमले गुप्त रूप से बढ रहे है।

षड्यंत्र भयंकर तरीकों से बढ रहा है।

अब,

निंद से जागकर ही आगे बढना है।


विश्व स्वधर्म सुर्ये पाहो 

के लिए,

विश्व विजेता हिंदु धर्म

की ओर बढना है।


तभी...

हमारा निष्पाप, कोमल फूलों जैसा पवित्र ईश्वरी मन,आत्मा

आनंदित होगा।


हरी ओम्


विनोदकुमार महाजन।

Comments

Popular posts from this blog

मोदिजी को पत्र ( ४० )

हिंदुराष्ट्र

साप आणी माणूस