राजमहल और झोपडी ( एक बोधकथा )

 कुल्हाड़ी : - सोने की और लोहे की ( एक बोधकथा : - लेखक,विनोदकुमार महाजन )

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एक छोटासा गांव था।वहां पर एक अत्यंत गरीब आदमी रहता था।मगर इमानदार था।

लालच,धन,दौलत,अमीरी,भूलभुलैया, रूपयों की खनखनाहट, झूटमूठ का ग्लैमर ,दिखावेपन,इसमें नही अटकनेवाला।

सिधासादा,भोलाभाला।

इमान का पक्का।


अपनी झोपडी में,बडे आनंद से गुजारा करता था।उसे ना राजवैभव का मोह था,ना ही राजपाट का।

इसिलिए छल - कपट - झूट - दिखावा - मायावी दुनिया की नौटंकी, उसके दिल को भी छूती नही थी।दाल - रोटी पर ही संतुष्ट था।बेईमानी उसके खून में ही नही थी।

आत्मानंद में मस्त था।


हर दिन जंगल में जाता था।एक लोहे की कुल्हाड़ी लेकर।जंगल में जाकर लकडी काटकर बाजार ले जाता था।और वह लकडी बेचकर, अपना,अपने बच्चों का गुजारा चलाता था।

उसके घरवाले भी गरीबी में भी आनंदी थे,समाधान थे।


घर के सभी सदस्य, आपस में एक दुसरों पर,पवित्र, निष्पाप, निष्कपट प्रेम करते थे।आत्मा का शुध्द ईश्वरी प्रेम।


हरदिन का उसका नियम था।कुल्हाड़ी लेकर जंगल में जाना।और लकडी बेचकर गुजारा चलाना।


वह लोहे की कुल्हाड़ी ,

उसके लिए जी जान से प्यारी थी।


एक दिन हुवा यह की,लकडी काटने के बाद वह बेचारा...


गरीब...


आदमी...

पानी पिने के लिए एक नदी में गया।पाणी भी गहरा था।पाणी में तेज बहाव भी था।


गलती से उस गरीब की कुल्हाड़ी नदी में गीर गई।बारबार ढूंडने पर भी वह कुल्हाड़ी उसको नही मिली।

अब उसको चिंता हो गई की,अब वो लकडी कैसे काटेगा ? परिवार का गुजारा कैसे करेगा ?


बहुत देर तक ढूंढने पर भी उसकी कुल्हाड़ी उसे नही मिली।

बहुत ही दुखी हुवा बेचारा।और दुखी मन से नदी के किनारे बैठकर रोने लगा।बहुत देर तक रोता रहा।


उसके रोने से खुद भगवान भी चिंतित हो गया।क्योंकि इमानदार, सच्चे,भोलेभाले, सीधेसादे लोगों पर भगवान हमेशा सच्चा प्रेम करता रहता है।और हमेशा ऐसे लोगों के साथ गुप्त रूप में भी रहता है।और ऐसे भोलेभाले लोगों को इसकी भनक तक नही रहती है।और ना ही भगवान भी उसको भनक भी लगने देता है।

बडा मस्त रिश्ता होता है दोनों के बीच का।


बहुत देर रोने के बाद,प्रत्यक्ष भगवान उसके सामने प्रकट हो गया।बडे प्यार से भगवान ने उसके आंसू पोंछे।और भगवान ने उसे पूछा,

" क्यों रोता है बेटा ? "

उस बेचारे गरीब ने कहां,

मेरी कुल्हाड़ी नदी में गीर गई है।


भगवान ने नदी में डुबकी लगाई और चांदी की कुल्हाड़ी निकालकर उस गरीब के हाथ में दी,और पूछा यही तेरी कुल्हाड़ी है ना ?

वह इमानदार गरीब ने ना कर दी।

फिर भगवान ने सोने की,जड जवाहर की ऐसी अनेक कुल्हाडियाँ निकालकर उस गरीब को दिखाई।मगर उस गरीब ने उसी में एक भी कुल्हाड़ी को हाथ नही लगाया।और ना ही उसका मन यह चकाचौंध देखकर विचलित हुवा।


भगवान ने तंग आकर उस गरीब को पूछा,

मैंने तुझे इतनी कुल्हाडियाँ दिखाई।मगर तु तो इसमें से एख भी नही ले रहा है।आखिर तेरी कुल्हाड़ी है कैसी ?


उस भोलेभाले गरीब को क्या पता था की,रूप बदवलकर खूद भगवान ही उसके सामने खडा है।


गरीब ने भगवान को बडे विनम्र भाव से कहा,

मेरी कुल्हाड़ी लोहे की थी।और वही मुझे चाहिए।


भगवान बोले,

मगर मैंने तो तुझे सोने - चांदी की अनेक कुल्हाडियाँ दिखाई।यह तु क्यों नही ले रहा है ?


गरीब ने बडे भोलेपन से उत्तर दिया,

क्योंकि मेरी केवल लोहे की ही कुल्हाड़ी थी।बाकी की मेरी नही थी।


भगवान ने उसे फिर पूछा,

अगर उस लोहे की कुल्हाड़ी की जगह अगर मैं तुझे बाकी सभी कुल्हाडियाँ दूंगा तो चलेगा ना ?


गरीब बोला,

नही जो मेरा है केवल वही मेरा है।इसिलए मुझे केवल मेरी ही लोहे कुल्हाड़ी चाहिए।


भगवान मन में हँस रहे थे।सचमुच में कितना, सिदासादा और भोलाभाला है ये ? अगर यह माँगता तो मैं उसको लोहे की ही क्या,सभी कुल्हाडियाँ ही क्या,राजऐश्वर्य ही क्या,सभी स्वर्गीय सुख भी दे देता।

मगर इसको तो लोभमोह तो बिल्कुल ही नही है।


आखिर में भगवान ने नदी में से लोहे की कुल्हाड़ी निकालकर उसके हाथ में दी।और साथ ही पाणी से निकाली गई बाकी सभी कुल्हाडियाँ भी दे दी।


( बोधकथा समाप्त )


भाईयों,

सोचो।हमारे समाज में भी ऐसे अनेक लोग होते है - जिनके पास भगवान नितदीन रहता भी है,और उसी की गुप्त रूप से सेवा भी करता है।और हम अज्ञान वश उसको फँसाते है,उसके साथ दुर्व्यवहार करते है,उसको अपमानित करते है,उसको झूट बोलते है,आरोप लगाते है,

तो....

उसके साथ गुप्त रूप में रहनेवाले भगवान हमें श्राप देंगे या आशिर्वाद ?

इसीलिए भाईयों, कभी भी - गलती से भी किसी गरीब को,अनाथ को,असाहायों को प्रताडित, अपमानित मत कीजिए।अगर एक बार भी,तुम्हारी वजह से, उसकी आत्मा तडप गई,तो जीवन बरबाद हो जायेगा।


दुसरों का राजमहल,पंचपक्वान से भी आनंददाई,भव्य दिव्य, खूद की टुटी फूटी झोपडी होती है।दाल चावल होती है।और इसीमें ही स्वर्गीय सुख भी होता है।इसेही आत्मानंद कहते है।


साथियों,

लगन और निष्ठा से सोने की कुल्हाड़ी की जगह अपनी खूद की लोहे की कुल्हाड़ी की अपेक्षा करेंगे तो शायद भगवान भी संतुष्ट होकर तुम्हें जो चाहिए वही दे देगा।निरपेक्ष वृत्ति से सभी पर पवित्र, ईश्वरी प्रेम करते रहिये।


यही ईश्वर प्राप्ति का आनंद है।


हरी ओम्

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