घोर कलियुग
प्रारब्ध गती के अनुसार
मेरा खुद का शरीर
वेदनाओं की आग से
जल रहा था !
फिर भी मैं दुसरों के शरीर को
लगी आग बुझाता था !
मगर दुर्देव यह था की
खुद जलते हुए भी,
जिसको भी जलते अग्नि से
बाहर निकाला था,
उन्होंने भी मुसिबतों की
आग से बाहर निकलते ही,
मुझे आधार देने के
बजाय,
मेरे कोमल ह्रदय पर
आघात किया था !
हाय रे,भयंकर, भयानक
घोर कलियुग !!!
और घोर कलियुग की महिमा !!!
चौ-याशी लक्ष योनियों में से
मानव प्राणी का अजब न्याय !
विनोदकुमार महाजन !
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