पूर्ण विराम
बहुत कोशिश की धर्म कार्य बढाने की।लोगों को जगाने की।संस्कृती, संस्कारों का धन बढाने की।
ईश्वरी कार्यों को संपूर्ण विश्व में बढाने की।
मगर अगर यह कार्य ईश्वर को ही मंजूर नही है,मेरे हाथों से ईश्वर कुछ कार्य ही नही करना चाहता है ..तो...मैं व्यर्थ कोशिश क्यों करूं ? चौबीस सालों तक कार्य सफल बनाने के लिए कठोर तप:श्चर्या भी की।फिर भी अपेक्षित यश नही मिला।
इसिलिए अब विश्व कार्य, ईश्वरी कार्य ,नाम,प्रसिद्धी, पैसा,धन,राजऐश्वर्य, मंदिर निर्माण, वृध्दाश्रम, अनाथाश्रम, गौशाला, गुरूकुल निर्माण, पेड जंगलों का रक्षण तथा संवर्धन, सजीवों की रक्षा
यह सभी उपक्रम अब संपूर्ण रूप से छोड देता हुं।
और एक अज्ञात जगह पर जाकर,एक झोपडी में रहकर, सद्गुरु के चरणों में संपूर्ण जीवन समर्पित करके,ईश्वरी चिंतन में,मौन होकर,एकांत में रहकर जीवन बिताने का संकल्प करता हुं।
बहुत कोशिश की,मगर कुछ भी हासिल नही हुवा,इसीलिए अब....
संपूर्ण कार्य को पूर्ण विराम देकर,बडे शांती से,आनंद से,जीवन आरंभ करता हुं।
आज तक दुसरों के लिए जीने की कोशिश की।अब खुद के लिए जीने की कोशिश करता हुं।
अब ब्रम्हज्ञान, योगसामर्थ्य, योगशक्ति, आत्मज्ञान इन सभी का त्याग करके,एक नया शांतीपूर्ण जीवन आरंभ करता हुं।
संपूर्ण मनुष्य समूह से,रिश्ते नातों से,समाज से अब नाता पूर्ण रूप से अब समाप्त हो गया है।और संपूर्ण रूप से ईश्वर से और ईश्वरी शक्ति से एकरूप हो गया हुं।
आत्मोध्दार तो हो गया है।
अब लेख लिखना,किताबे लिखना,व्हिडिओ बनाना,सोशल मिडिया, समाज जागृती,वैश्विक कार्य ऐसी सभी बातों से बाहर निकलता हुं।
अधर्म और पाप का नाश यह ईश्वर का कार्य है।उसीके कार्य को मैं पूरा करने की व्यर्थ की कोशिश क्यों करूंगा ?
विशेषत: जब यह सब ईश्वर को ही मंजूर नही है तब व्यर्थ की कोशिश मैं क्यों करूंगा ?
सृष्टि चक्र ईश्वरी इच्छा से चलता था,चलता है और चलता रहेगा।
तो इसमें हस्तक्षेप करने की मैं व्यर्थ कोशिश क्यों करूं ?
इसीलिए ईश्वरी कार्यों को अब पूर्ण विराम देता हुं।और एकांत में ईश्वरी चिंतन आरंभ करता हुं।
यह हतबलता नही है,यह स्थितप्रज्ञता है।
हरी ओम्
विनोदकुमार महाजन
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