जागो मोहन प्यारे
हिंदुओं तुम्हारा आत्मतेज, ईश्वरी तेज कहाँ लुप्त हो गया ?
हमारा आत्मसंम्मान कहाँ गया ?
अत्याचार की विरूद्ध की आग,ज्वाला, लाव्हा कहाँ गई ?
हमारे देवीदेवताओं का,संस्कृति का,धर्म का,साधुसंतों का अपमान करनेपर भी हम मौन और शांत क्यों और कैसे बैठ सकते है ?
मुगलों की,अंग्रेजों की,काले अंग्रेजों की मानसिक गुलामी करते करते क्या सचमुच में हम मानसिक गुलाम बन गये ???
एक बार नही,बारबार नही,सौ बार सोचो।
अंदर का ईश्वरी तेज जगावो।
हैवानियत का,राक्षसी शक्तियों का जमकर विरोध करों।
भगवत् गीता पढने के लिए नही है,आचरण के लिए है।
कृष्ण तत्वज्ञान, कृष्ण निती हर युग में उपयुक्त है।
उसी सिध्दांतों पर चलकर असुरी शक्तियों का विरोध करना होगा।
अहिंसा परमो धर्म :
धर्म हिंसा तदैवच्
सत्य की रक्षा के लिए कानूनी लडाई लडनी होगी।
और साम - दाम - दंड - भेद के
अनुसार दुष्टों को दंडित करना होगा।
तभी धर्म बचेगा, संस्कृति बचेगी।
मंदिर बचेंगे।
नही तो.....
अधर्म, असत्य का सैतानी राज आयेगा।
जागो मोहन प्यारे।
हरी ओम्
विनोदकुमार महाजन
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