वीर हनुमानजी की जय हो

 *हनुमान जी की आठ सिद्धियां, नौ निधियां और दस गौण सिद्धियां* 


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*अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता ।* *अस बर दीन्ह जानकी माता ।।*  


यह हनुमान चालीसा की एक चौपाई  जिसमे तुलसीदास जी लिखते है कि हनुमानजी अपने भक्तो को आठ प्रकार की सिद्धयाँ तथा नौ प्रकार की निधियाँ प्रदान कर सकते हैं ऐसा सीतामाता ने उन्हे वरदान दिया ।  

यह अष्ट सिद्धियां बड़ी ही चमत्कारिक होती है जिसकी बदौलत हनुमान जी ने असंभव से लगने वाले काम आसानी से सम्पन किये थे। 

आइये अब हम आपको इन अष्ट सिद्धियों, नौ निधियों और भगवत पुराण में वर्णित दस गौण सिद्धियों के बारे में विस्तार से बताते है।


आठ सिद्धयाँ : - हनुमानजी को  जिन आठ सिद्धियों का स्वामी तथा दाता बताया गया है वे सिद्धियां इस प्रकार हैं-


1.अणिमा:  इस सिद्धि के बल पर हनुमानजी कभी भी अति सूक्ष्म रूप धारण कर सकते हैं।


इस सिद्धि का उपयोग हनुमानजी तब किया जब वे समुद्र पार कर लंका पहुंचे थे। हनुमानजी ने अणिमा सिद्धि का उपयोग करके अति सूक्ष्म रूप धारण किया और पूरी लंका का निरीक्षण किया था। अति सूक्ष्म होने के कारण हनुमानजी के विषय में लंका के लोगों को पता तक नहीं चला।


2. महिमा:  इस सिद्धि के बल पर हनुमान ने कई बार विशाल रूप धारण किया है।


जब हनुमानजी समुद्र पार करके लंका जा रहे थे, तब बीच रास्ते में सुरसा नामक राक्षसी ने उनका रास्ता रोक लिया था। उस समय सुरसा को परास्त करने के लिए हनुमानजी ने स्वयं का रूप सौ योजन तक बड़ा कर लिया था।


इसके अलावा माता सीता को श्रीराम की वानर सेना पर विश्वास दिलाने के लिए महिमा सिद्धि का प्रयोग करते हुए स्वयं का रूप अत्यंत विशाल कर लिया था।


3. गरिमा:  इस सिद्धि की मदद से हनुमानजी स्वयं का भार किसी विशाल पर्वत के समान कर सकते हैं।


गरिमा सिद्धि का उपयोग हनुमानजी ने महाभारत काल में भीम के समक्ष किया था। एक समय भीम को अपनी शक्ति पर घमंड हो गया था। उस समय भीम का घमंड तोड़ने के लिए हनुमानजी एक वृद्ध वानर रूप धारक करके रास्ते में अपनी पूंछ फैलाकर बैठे हुए थे। भीम ने देखा कि एक वानर की पूंछ से रास्ते में पड़ी हुई है, तब भीम ने वृद्ध वानर से कहा कि वे अपनी पूंछ रास्ते से हटा लें। तब वृद्ध वानर ने कहा कि मैं वृद्धावस्था के कारण अपनी पूंछ हटा नहीं सकता, आप स्वयं हटा दीजिए। इसके बाद भीम वानर की पूंछ हटाने लगे, लेकिन पूंछ टस से मस नहीं हुई। भीम ने पूरी शक्ति का उपयोग किया, लेकिन सफलता नहीं मिली। इस प्रकार भीम का घमंड टूट गया।


4. लघिमा:  इस सिद्धि से हनुमानजी स्वयं का भार बिल्कुल हल्का कर सकते हैं और पलभर में वे कहीं भी आ-जा सकते हैं।


जब हनुमानजी अशोक वाटिका में पहुंचे, तब वे अणिमा और लघिमा सिद्धि के बल पर सूक्ष्म रूप धारण करके अशोक वृक्ष के पत्तों में छिपे थे। इन पत्तों पर बैठे-बैठे ही सीता माता को अपना परिचय दिया था।


5. प्राप्ति:  इस सिद्धि की मदद से हनुमानजी किसी भी वस्तु को तुरंत ही प्राप्त कर लेते हैं। पशु-पक्षियों की भाषा को समझ लेते हैं, आने वाले समय को देख सकते हैं।


रामायण में इस सिद्धि के उपयोग से हनुमानजी ने सीता माता की खोज करते समय कई पशु-पक्षियों से चर्चा की थी। माता सीता को अशोक वाटिका में खोज लिया था।


6. प्राकाम्य:  इसी सिद्धि की मदद से हनुमानजी पृथ्वी गहराइयों में पाताल तक जा सकते हैं, आकाश में उड़ सकते हैं और मनचाहे समय तक पानी में भी जीवित रह सकते हैं। इस सिद्धि से हनुमानजी चिरकाल तक युवा ही रहेंगे। साथ ही, वे अपनी इच्छा के अनुसार किसी भी देह को कारण कर सकते हैं। इस सिद्धि से वे किसी भी वस्तु को चिरकाल तक प्राप्त कर सकते हैं।


इस सिद्धि की मदद से ही हनुमानजी ने श्रीराम की भक्ति को चिरकाल का प्राप्त कर लिया है।


7. ईशित्व:  इस सिद्धि की मदद से हनुमानजी को दैवीय शक्तियां प्राप्त हुई हैं।


ईशित्व के प्रभाव से हनुमानजी ने पूरी वानर सेना का कुशल नेतृत्व किया था। इस सिद्धि के कारण ही उन्होंने सभी वानरों पर श्रेष्ठ नियंत्रण रखा। साथ ही, इस सिद्धि से हनुमानजी किसी मृत प्राणी को भी फिर से जीवित कर सकते हैं।


8. वशित्व:  इस सिद्धि के प्रभाव से हनुमानजी जितेंद्रिय हैं और मन पर नियंत्रण रखते हैं।


वशित्व के कारण हनुमानजी किसी भी प्राणी को तुरंत ही अपने वश में कर लेते हैं। हनुमान के वश में आने के बाद प्राणी उनकी इच्छा के अनुसार ही कार्य करता है। इसी के प्रभाव से हनुमानजी अतुलित बल के धाम हैं।


नौ निधियां  : - हनुमान जी प्रसन्न होने पर जो नव निधियां भक्तों को देते है वो इस प्रकार है


1. पद्म निधि : पद्मनिधि लक्षणो से संपन्न मनुष्य सात्विक होता है तथा स्वर्ण चांदी आदि का संग्रह करके दान करता है ।


2. महापद्म निधि : महाप निधि से लक्षित व्यक्ति अपने संग्रहित धन आदि का दान धार्मिक जनों में करता है ।


3. नील निधि : निल निधि से सुशोभित मनुष्य सात्विक तेजसे संयुक्त होता है। उसकी संपति तीन पीढीतक रहती है।


4. मुकुंद निधि : मुकुन्द निधि से लक्षित मनुष्य रजोगुण संपन्न होता है वह राज्यसंग्रह में लगा रहता है।


5. नन्द निधि : नन्दनिधि युक्त व्यक्ति राजस और तामस गुणोंवाला होता है वही कुल का आधार होता है ।


6. मकर निधि : मकर निधि संपन्न पुरुष अस्त्रों का संग्रह करनेवाला होता है ।


7. कच्छप निधि : कच्छप निधि लक्षित व्यक्ति तामस गुणवाला होता है वह अपनी संपत्ति का स्वयं उपभोग करता है ।


8. शंख निधि : शंख निधि एक पीढी के लिए होती है।


9. खर्व निधि : खर्व निधिवाले व्यक्ति के स्वभाव में मिश्रीत फल दिखाई देते हैं ।


लहनुमानजी की दस गौण सिद्धियां!!!!!


पिछले लेखों में आपने महाबली हनुमान की अष्ट सिद्धियों और नौ निधियों के विषय में पढ़ा। इसके अतिरिक्त पवनपुत्र के पास १० गौण सिद्धियों के होने का भी वर्णन है। ये गोपनीय और रहस्य्मयी १० गौण सिद्धियां जिस किसी के पास भी होती हैं वो अजेय हो जाता है। भागवत पुराण में श्रीकृष्ण ने भी इन १० गौण सिद्धियों के महत्त्व का वर्णन किया है।


 ये सिद्धियां चमत्कारी हैं और देवों तथा दानवों के लिए भी दुर्लभ हैं। आइये इन १० गौण सिद्धियों के बारे में कुछ जानते हैं: -----------


अनूर्मिमत्वम्: - इस सिद्धि को प्राप्त करने के बाद साधक का मन शांत हो जाता है और उसे किसी भी चीज की इच्छा नहीं रहती। उसके मन पर कोई भी वासना अधिकार नहीं कर सकती। उनकी सभी इन्द्रियां उनके वश में रहती हैं और उसका कोई उलंघन नहीं कर सकता। ऐसा व्यक्ति मनुष्य होते हुए भी देवता तुल्य हो जाता है। महाबली हनुमान भी सदैव अपनी इन्द्रियों को अपने वश में रखते थे। वे प्रसन्नता, क्रोध, दुःख इत्यादि मन के सभी विकारों से परे थे।


दूरश्रवण: -  जिस साधक को ये सिद्धि प्राप्त होती है वो धीमी से धीमी आवाज भी बड़ी दूर से सुन लेता है। कहा जाता है कि इस सिद्धि को प्राप्त करने पर साधक १ योजन दूर से भी की गयी बात को सुन सकता है। १ योजन करीब ७६ मील या १२३ किलोमीटर के बराबर की दुरी मानी जाती है। 


दूरदर्शनम्: -  इस सिद्धि को प्राप्त करने के बाद साधक अत्यंत दुरी तक देखने में सफल हो पाता है। इस के साथ ही साधक अदृश्य चीजों को भी देख सकता है। गरुड़ जाति में ये सिद्धि जन्मजात होती है। इसी सिद्धि के बल पर जटायु के बड़े भाई सम्पाती ने १०० योजन बड़े समुद्र के पार देख कर वानरों को माता सीता का पता बता दिया था। अपने विराट स्वरुप में हनुमान भी योजनों दूर की चीजों को देख सकते थे।


मनोजवः: - इस सिद्धि को प्राप्त करने के बाद साधक किसी के भी मन की बात जान सकता है। अगर साधक के सामने कोई कुछ सोच रहा हो तो साधक केवल उसके नेत्रों में देख कर ये जान सकता है कि वो व्यक्ति क्या सोच रहा है। इस सिद्धि से आप आने वाले शत्रु से अपनी रक्षा कर सकते हैं और कोई आपके साथ छल नहीं कर सकता।


कामरूपम्: - इस सिद्धि को प्राप्त करने वाला साधक अपनी इच्छा अनुसार कोई भी रूप धारण कर सकता है। हमनुमनजी ने अपनी इस सिद्धि के कारण कई रूप धारण किये। श्रीराम और लक्ष्मण से पहली बार मिलते समय हनुमान एक ब्राह्मण का रूप बनाते हैं। वहीँ माता सीता से वो एक वानर के रूप में मिलते हैं।


परकायाप्रवेशनम्: -  ये बहुत प्रसिद्ध सिद्धि है। इस सिद्धि को प्राप्त करने के बाद साधक अपना शरीर त्याग कर किसी अन्य के शरीर में प्रवेश कर सकता है। इस सिद्धि में साधक अपनी आत्मा को किसी मृत शरीर में प्रवेश करवा कर उसे जीवित भी कर सकता है। हालाँकि इस सिद्धि में बड़े सावधानी की आवश्यकता है क्यूंकि जब साधक की आत्मा किसी और शरीर में हो तब साधक के अचेत शरीर को कोई जला दे तो वो पुनः अपने शरीर को प्राप्त नहीं कर सकता। अतः ऐसा कहा गया है कि साधक को अत्यंत गोपनीय स्थान पर अपना शरीर त्यागना चाहिए या किसी विश्वासपात्र को अपने शरीर की रक्षा को नियुक्त करना चाहिए।


स्वछन्द मृत्युः - इसे इच्छा मृत्यु भी कहा जाता है। इस सिद्धि को प्राप्त साधक अपनी इच्छा अनुसार ही मृत्यु का वरण कर सकता है। अगर वो ना चाहे तो उसकी इच्छा के बिना स्वयं काल भी उसके प्राण नहीं ले सकते। हनुमानजी सप्त चिरंजीवियों में से एक हैं अर्थात कल्प के अंत तक जीवित रहने वाले हैं। महाभारत में भी पितामह भीष्म को इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था।


देवानां सह क्रीडा अनुदर्शनम्: - इस सिद्धि को प्राप्त करने पर साधक को देवताओं की कृपा स्वतः ही प्राप्त हो जाती है। उसे देवताओं के दर्शन और सानिध्य प्राप्त होता है। इस सिद्धि को प्राप्त साधक स्वयं देवताओं के समान ही तेजस्वी और शक्तिशाली बन जाता है और उसकी गिनती भी देवताओं में होने लगती है। पवनपुत्र को भी अपनी इच्छा से देवों के दर्शन करने की स्वच्छंदता प्राप्त था।


यथासंकल्पसंसिद्धिः: - इस सिद्धि को प्राप्त करने पर साधक की समस्त इच्छाएं पूर्ण होती है। वो जो भी संकल्प लेता है वो अवश्य पूर्ण होता है। यदि साधक के संकल्प पूर्ति में कोई बाधा हो तो स्वयं देवता साधक की सहायता करते हैं। ऐसा कोई संकल्प नहीं था जो महाबली हनुमान पूर्ण नहीं कर सकते थे। इसी सिद्धि के कारण वे एक ही रात में हिमालय शिखर उखाड़ कर लंका ले आये थे।


आज्ञा अप्रतिहता गतिः - इस सिद्धि को प्राप्त साधक को कही भी स्वछन्द आने जाने की स्वतंत्रता होती है। उनकी गति में कुछ बाधक नहीं बनता। बजरंगबली का वेग भी स्वयं पवन के सामान ही था। उनकी गति उनकी आज्ञा अनुसार ही कम अथवा अधिक होती थी और कोई भी उनके वेग को रोक नहीं सकता था। इसी सिद्धि के कारण हनुमान एक ही छलांग में १०० योजन चौड़ा समुद्र लाँघ गए थे।


            संकलन

विनोदकुमार महाजन



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