आँसुओं का मोल ?
आँसुओं का मोल
✍️ २२८०
विनोदकुमार महाजन
---------------------------------
हमारे दुखदर्द का ,हमारे आँसुओं का मोल अगर किसी को नही समझता है , तो आखिर उस व्यक्ती के सामने आँसू बहाने से क्या फायदा ?
और ऐसे स्थानों पर रहने से भी क्या फायदा ?
जहाँ प्रेम है , वहीं हमारे आँसुओं की कीमत समझी जा सकती है , वहींपर हमारे आँसुओं का मोल समझा जा सकता है !
मगर प्रेम भी कैसा चाहिए ?
माँ जैसा पवित्र , निष्पाप ,निरपेक्ष प्रेम होगा तभी आँसुओं की कीमत समझेगी !
मगर दिखावे का प्रेम , स्वार्थी ,ढोंगी प्रेम को आँसुओं की कीमत कैसे समझेगी ?
वैसे तो असली प्रेम भी बडा विचित्र होता है ! और ऐसा प्रेम,सर्वसमावेशक और निर्लज्ज भी होता है !
मतलब प्रेम में मान - अपमान ,स्वार्थ - मोह ,मेरा - तेरा ऐसा कुछ होता ही नही है !
इसमें संपूर्ण समर्पण होता है !
मगर मतलबी दुनिया में समर्पित प्रेम मिलना भी लगभग असंभव है !
यही देखो ना...
माँ अपने बेटे को गालियाँ देती है ,दो चार रट्टे भी मारती है !
फिर भी वह बच्चा सबकुछ भूलकर ,फिर माँ माँ जैसी रट लगाता रहता है ! और माँ के आसपास मँडराते रहता है !
बडे प्रेम से !
माँ के चार रट्टे भूलकर !
यही होता है असली प्रेम !
क्या वह बेटा माँ की मार देखता है ? नही ! माँ की गालीयाँ देखता है ? नहीं !
वह बेटा माँ का पवित्र प्रेम देखता है ! माँ चाहे कितने भी रट्टे लगायेगी ,गुस्सा करेगी,
बेटा फिरसे माँ माँ ही करता रहता है !
यही होता है असली प्रेम !
और ऐसा प्रेम बडा निर्लज्ज भी होता है ! क्योंकी इसी निर्लज्जता में ही पावित्र्य होता है !
माँ तो आखिर , बेटे के कल्याण के लिए ही उसे दो चार रट्टे मारती है ! अथवा गाली देती है !
ठीक ऐसे ही सत्पुरुषों का, समाज के प्रती प्रेम भी ऐसा ही माँ जैसा ही होता है !
पवित्र !
बिगडे लोगों को सुधरने के लिए चार रट्टे भी लगाएंगे ! चार गालियां भी देंगे !
और बिगडा हुवा समाज, उस सत्पुरुष को भी उल्टा गालीगलौच कर रहा होता है तो ?
आज ठीक ऐसा ही हो रहा है !
सबकुछ उल्टापुल्टा !
माँ के जैसा असली प्रेम ,यही असली प्रेम ,ऐसा पवित्र प्रेम ही ,हमारे आँसुओं का मोल समझ सकता है !
मगर नकली मुखौटा वाली दुनिया को और दुनियादारी को,ऐसा प्रेम कैसे समझ में आयेगा ?
मतलब की दुनिया !
और मतलबी दुनिया क़ो
कैसे आँसुओं का मोल समझ में आयेगा ?
और अब दुनियावाले भी इतने पत्थरदिल ,कठोर ह्रदय वाले , पाषाणह्रदयी ,संवेदनशून्य बन गये है की ...?
किसी निष्पाप जीव की हत्या भी उनके आँखों के सामने हो रही है ? तो भी अनेक व्यक्ती... लोग उसे भी अनदेखा करके ,आगे निकल जायेंगे !?
दिल्ली के एक लडकी के हत्या का ताजा उदाहरण !!
आखिर आँसुओं का मोल ह्रदयशून्य , संवेदनाशून्य समाज को कैसे समझ में आयेगा ?
और कानून ,कानून व्यवस्था भी क्या करती है ? ऐसे भयंकर अत्याचार के खिलाफ ?
लडकी को तडपातडपाकर मारा जा रहा है ! समाज और कानून सब देख रहा है ! मगर उसपर ऐसी भयावह घटनाओं का कोई असर ही नहीं पडता है तो ?
अत्याचारीयों को ,तुरंत चौराहे पर गोलीयों से भूनकर मारा क्यों नही जाता है ? ऐसे महापापीयों को ? हमारे कानून द्वारा ?
मरते समय के उस असहाय ,मजबूर लडकी के आँसुओं का मोल किसे समझ में आयेगा ?
उसका चिल्लाचिल्लाकर रोने का ,आक्रंदन भी समाज अनदेखा करता है तो ?
इतनी भयभीत करनेवाली घटनाएं क्यों हो रही है ? और ? तेज गती से बढती भी जा रही है ? तो...??
इसका अंतिम हल क्या है ??
जिस लडकी को मारा जा रहा था , धाय मोकलकर ,चिल्लाचिल्लाकर वह लडकी जोरजोरसे बचने का प्रयास रही थी ,रो रही थी , आँसू बहा रही थी, उसके आँसुओं का मोल ,निर्दयी समाज को कैसे समझ में आयेगा ?
दूसरा एक उदाहरण देखते है !
माँ बाप के दो बच्चे नौकरी धंदा करने के लिए , विदेश चले जाते है ! वहीं पर स्थिर भी हो जाते है ! खूब पैसा भी कमाने लगते है !
और इधर ? माँ बाप उनको देखने के लिए दिनरात तरसते है ! दिनरात रोते है !
मगर उनके आँसुओं की कीमत ?
शून्य !!
क्योंकी बुढापे में उनके आँसू पोंधनेवाला भी कोई नही रहा है ! माँ बाप मर भी जायेंगे ,तो भी बेटों को विदेशों से आने के लिए समय नही है !?
दूसरा कोई बेटा अगर उनके पास रहकर उनकी सेवा बुढापे में कर रहा है , तो ठीक है ना ?
मगर सारे बेटे विदेशों में !?
ह्रदयशून्य , पत्थरदिल ,पाषाणह्रदयी समाज और समाज मन आखिर जा कहाँ रहा है ?
और ऐसे समाज को दुखितोंके आँसुओं का मोल भी कैसे समझेगा ?
क्या हो गया आखिर समाज को ? इतना भावशून्य ,कठोर , ह्रदयशून्य समाज क्यों और कैसे बन गया ?
कोई इकलौता बेटा बाप को अकेला छोडकर, विदेश चला जाता है , अथवा उनके बुढापे में,आधार बनने के बजाए, उनसे अलग रहने लगता है,खुद ऐशोआराम की जींदगी जीता है और बाप को भूखा प्यासा रखता है ,उसकी अन्नान्न दशा करता है ,उनको उपर से गालीगलोच करता है ,मारने की धमकियां देता है,उनका मानसिक उत्पीडन करता है ,उन्हे तडपाता है....इकलौता बेटा ?
तो बेचारे ऐसे बाप भी क्या करेंगे ?
उनके आँसुओं का मोल भी शून्य होगा , तो ??
ऐसे ह्रदयशून्य व्यक्ती ,समाज से दूरी बनाये रखना ही उचित होगा !?
और बेचारे उसी बुढे ,दुर्देवी बाप का कोई व्यक्ति पक्षधर बनकर ,उनकी ढाल बनकर खडा हो जाता है ,उनके बुढापे का आधार बनता है,
और ??
उसी बेचारे को सारा समाज ,पूरा परिवार और परिवार वाले , मानसिक उत्पीड़न का शिकार बनाकर , उसे भी पागल बना देते है , अथवा पागल करार देते है तो ? ईश्वर भी आखिर ऐसी विचित्र समाजरचना के आगे , क्या करेगा ?
दूसरों के आँसू किसीको नहीं दिखाई देते है ! क्योंकि उसके आँखों के सामने धूंदी नाम का भयंकर घमंड होता है !
मगर जब चारों तरफ से उसकी ओर मुसिबतों की आग लग जाती है ?, बचाने वाला कोई दिखाई नहीं देता है , तो ?
उसके आँखों के सामने की धूंदी पूरी तरह से उतर जाती है ! और मुसिबतों के कारण उसके आँखों में आँसू आ जाते है , तब ?
दूसरों के आँसू का मोल उसे समझ में आता है !
मगर तबतक समय उसके हाथों से , निकल गया होता है !
किसी के शादी समारोह में अथवा किसी के मृत्यु समय में भी अगर एक दूसरे को , सुखदुख बाँटने के बजाए , द्वेष, मत्सर,निंदा , हेवेदावे, अहंकार ,आपसी कलह देखने को मिल रहा है तो ?
ऐसे स्थानों पर जाने से भी क्या फायदा ?
मुसिबतों की घडी में अगर किसीने , दूसरे के आँसू पोंछे...अगर वहीं व्यक्ति आँसू पोंछने वालों को...खून के आँसू रूलायेगा ?
तो आखिर दुनिया और दुनियावाले और मनुष्य निर्मीत , छोटासा इंन्सान आखिर जा कहाँ रहा है ?
सबकुछ भयावह !!
और आखिर ऐसा विचित्र, विकृत समाज जा भी कहाँ है ??
ह्रदयशून्य ,पत्थरदिल समाज ?
कितना संवेदनशील समाज था !
संवेदनशील समाज ,इतना संवेदनाशून्य कैसे बन गया ?
क्रौर्य की परिसिमा कैसे लांघ गया ?
किसी गौमाताओं के आँसुओं का मोल भी संवेदनशून्य समाज नही जान सकता है तो ? नहीं समझ सकता है ? कानून भी गौमाताओं की रक्षा करने में असमर्थ है तो ?
ऐसा अधर्म हरदिन देखने को,सुनने को मिलता है ,
तो ??
ऐसे समाज से सदा के लिए ,दूर... हिमालय में जाकर ,ईश्वरी चिंतन में ही संपूर्ण जीवन बीताना ही ठीक रहेगा !?
ऐसे भयंकर समाज का भला भी कैसे होगा ? और भला भी करने का प्रयास भी कौन करेगा ?
आखिर में एक बात तो कहूंगा ही...
एक बात तो पक्की तय लग रही है की...
संपूर्ण विश्व भयंकर तेज गती से विनाश की ओर बढ रहा है !!?
क्या प्रलय नजदीक है ??
फिर जलप्रलय हो अथवा सुर्यदेव के कोप का अग्नीप्रलय हो ??
क्या पृथ्वी जल्दी ही जलकर खाक हो जायेगी ?
इंन्सानों की भयंकर और अक्षम्य गलतीयों की वजह से ??
और इसे कौन रोकेगा ?
ईश्वर जाने !!
क्या आपको यह वास्तव स्वीकार है ??
जय श्रीराम
हरी ओम्
Comments
Post a Comment