निसर्ग, नियती... ईश्वर

 *निसर्ग, नियती,नशीब और* *ईश्वर...!!!*

✍️ २५७९

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नशीब...

हर एक का नशीब अलग अलग !

नशीब अपना अपना !

और इसी नशीब के अनुसार ही हर एक को सुखदुःख भी भोगना पडता है !

हर एक का सुखदुःख भी अलग अलग !


पिछले जन्म के पापपुण्य के हिसाब के अनुसार ही अपना नशीब बनता है !


मगर इसी में भी निसर्ग, नियती और ईश्वर का भी महत्वपूर्ण योगदान होता है !


वैसे तो निसर्ग , नियती , कुदरत , सृष्टिरचना ईश्वर के ही अधिन होते है !

सृष्टिनियंता और सृष्टिकर्ता ईश्वर !

कभी साकार तो हमेशा के लिए निराकार !

निराकार ब्रम्ह !

साकार निराकार भी ईश्वर की ही अद्भुत रचना !


इसमें भी सजीव सृष्टि , निर्जीव सृष्टि !

अनेक सजीव और उसीमें भी अनेक आकार के , अनेक प्रकार के जीवजंतु !


सजीवों में भी चौ-याशी लक्ष योनी !

उसीमें भी इंन्सान अलग ?

इंन्सानों का भी हर एक का नशीब भी अलग अलग !


कौन कहाँ जन्म लेगा , कौन कहाँ कौनसे योनी में जन्म लेगा , कहाँ मरेगा...

यह सब अद्भुत घटनाएं भी ? 

ईश्वराधीन !!


ना जन्म हमारे हाथ में है ना मृत्यु !

फिर भी मेरा तेरा का गजब का नाटक होता है मनुष्य प्राणीयों का !


खैर....!!!


निसर्ग, नियती, ईश्वर को हम जैसा देते है...

वैसा ही हमें वापिस मिलता है !


जैसे को तैसा !

टिट फाँर टैट !


और ....

सच्चे, अच्छे, नेक, इमानदार, प्रामाणिक लोग ?

ईश्वर स्वरूप ही होते है !

इन्हें जो प्रताडित, अपमानित करेगा , वैसा ही उसीका कर्म बनेगा !

जो सत्पुरुषों को सन्मानित करेगा, ईश्वर भी उसकी रक्षा करेगा !


हम किसी को प्रेम देते है तो ? साधारणतः हमें प्रेम ही वापिस मिलता है ! 

( कुछ अपवादों को छोडकर : - क्योंकि प्रेम के बदले में अनेक बार , छल - कपट - धोखा भी होता है --- विशेषत: मनुष्यों में ?? )


और अगर हम नफरत का जहर बोते है तो ?

हमें भी वापिस नफरत ही मिलता है !


कपट ,धोखा, फरेब भी वापिस उसी के पास ही लौटकर चला जाता है !


मनुष्य प्राणीयों की अनेक गलतियों के कारण , आज का सृष्टिसंतुलन भयंकर खराब है !

क्योंकि इंन्सानों ने जैसा दिया ठीक वैसा ही सृष्टि ने , निसर्ग ने , नियती ने और ईश्वर ने भी हमें वापिस लौटकर दिया है !


मगर फिर भी....

ईश्वर निर्मित एक सनातन हिंदू संस्कृति ही ऐसी है कि , जो सभी का , सभी सजीवों का अखंड कल्याण ही चाहती है !


मगर ?

बहुसंख्य पृथ्वी निवासी मनुष्य प्राणीयों ने सनातन हिंदू संस्कृति का त्याग किया और परिणाम ?

सृष्टि ने भी ठीक उल्टे ही फल दिए !?


इसीलिए आज समस्त मानवसमुह केवल भ्रमित ही नहीं है बल्कि भयभीत भी है और चारों ओर से भयंकर घोर और विनाशकारी मुसिबतों में भी फँसा हुआ है !


गलत रास्ता अपनाने का फल भी वैसा ही मिला समस्त मानवसमुह को !


और अब इससे बचने का एक ही और अंतिम उत्तर है...

सनातन हिंदू संस्कृति का स्विकार !

सभी मनुष्य प्राणींयों के लिए !

जी हाँ !!


आज चारों ओर अधर्म का भयावह और विनाशकारी अंधेरा छाया हुवा है !


और जब अधर्म बढेगा तो ?

संपूर्ण सृष्टि और सृष्टिचक्र भी दोलायमान होगा !

जहाँ निष्पाप सजीवों की , निष्पाप गौमाताओं कि हत्याएं आरंभ होगी तब...???

निसर्ग, नियती और ईश्वर भी  क्रोधित तो होंगे ही होंगे !


क्योंकि ? 

सब उसी की ही संतान !

और उसी के संतानों को कोई हानि, नुकसान पहुंचायेगा , उसके साथ क्रौर्य दिखाएगा तो ?


दयालु ईश्वर भी क्रोधित होगा ही होगा !


और ईश्वर का क्रोध भी भयंकर होता है !


और इंन्सानों द्वारा जब अधर्म बढेगा तो ईश्वर भी भयंकर क्रोधित होकर ,

प्रतिशोध तो लेगा ही !


महापापीयों का कर्दनकाल बनकर !

यदा यदा ही धर्मस्य....

बनकर ....!!

जरूर आयेगा !!


उन्मत्त, उन्मादी, हाहाकारी पापीयों का सर्वनाश भी करेगा ही करेगा !


सौ घडे भरने तक ईश्वर भी

मौन , शांत , निश्चल रहता है ! यथायोग्य समय का इंतजार भी करता रहता है !


और ऐन समय आते ही ?

पापीयों का सदा के लिए ?

सर्वनाश ही कर देता है !


इसे ही विधि का विधान कहते है !


क्या आज की भयावह सामाजिक स्थिती देखकर ,

आपको लगता है ?

ईश्वर भी कुछ पर्दे के पिछे ?

अदृश्य रूप से....?


धर्म रक्षा की कोई यशस्वी योजनाएं बनाता होगा ?


इसका उत्तर भी समय ही दे सकता है !


भगवा मय विश्व !

हिंदू मय विश्व !!

सत्य सनातन मय विश्व !!!


के लिए भी...

हम सब समय का इंतजार करते है !


हरी ओम्

जय श्रीकृष्ण

जय श्रीराम


🚩🚩🚩🚩🚩


 *विनोदकुमार महाजन*

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