एडजेस्टमेंट

 जीवन में , " *एडजेस्टमेंट " ,* 

बहुत जरूरी होती है।

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साथीयों,

पाश्चात्य संस्कृती में पती पत्नी में घटस्फोट का प्रमाण जादा दिखाई देता है।थोडे थोडे झगडे पर पतीपत्नी अलग होते है,और दोनों भी दूसरी शादीयाँ भी करते है।और इसीमें उनको कुछ विशेष नही लगता है।


मगर हमारे हिंदु धर्म में ऐसा नही होता है।पतीपत्नी जीवन भर एक दुसरे का साथ निभाते है।चाहे आपस में कितना भी झगडा हो,तो भी एक दुसरे का साथ नही छोडते है।और नाही, दूसरी पत्नी अथवा दूसरे पती का विचार करते है।


यह हमारे उच्च संस्कार, संस्कृती का एक अद्भुत फल है।हमारी संस्कृती हमें हमेशा ,


" *एडजेस्टमेंट "* 

सिखाती है,


भाईचारा,प्रेम,ईश्वरी सिध्दांत, कुदरत का कानून, भूतदया, परोपकार ,मानवता सिखाती है।


पहले जब अ - विभक्त परिवार थे,और घर में सुख,शांती, आनंद का स्वर्गीय माहौल था।इसकी वजह भी यही थी की,हमारी आदर्श संस्कृती हमें हमेशा के लिए,

एडजेस्टमेंट ही सिखाती है।

कौटुंबिक कलह,तानतनाव,आर्थिक मुसिबतें, अनेक बिमारीयाँ अथवा अनेक मुसिबतें आनेपर भी परिवार के हर सदस्य का मनोबल उंचा रहता था।और घर के हर एक सदस्य के प्रती आत्मीयता रहती थी।

और आज भी ऐसे अनेक परिवार है,जिसमें उच्च कोटी के संस्कार दिखाई देते है।और परिणामस्वरूप,हर सदस्य

एडजेस्टमेंट पर ही निर्भर रहता है।


घर का कोई झगडा हो,पतीपत्नी का झगडा हो,बहुतांश परिवार में आज भी मन की उदारता और एडजेस्टमेंट नजर आती है।


आज भी बहुतांश ग्रामीण भागों में यह उच्च संस्कृती का आदर्श उदाहरण देखने को मिलता है।


हमारी संस्कृती परोपकार, दया,क्षमा सिखाती है।मन का बडप्पन भी सिखाती है।और हर मुसिबतों का सामना करने के लिए, सदैव एडजेस्टमेंट भी सिखाती है।


इसिलिए तो मैं दावे के साथ कहता हुं की,हमारी संस्कृती इसी आदर्श सिध्दांतों की वजह से विश्व में महान है।


मगर दुख इस बात है की,अब धिरे धिरे हमारे आदर्श संस्कृती में भी पाश्चात्योंका अंधानुकरण हावी होता जा रहा है।परिवार टुटते जा रहे है।वैयक्तिक स्वार्थ, व्यसनाधिनता, मेरा,तेरा,अहंकार, द्रव्य लालसा जैसे अनेक मुद्दों के कारण परिवार टुटते जा रहे है।

अ - विभक्त की जगह पर विभक्त परिवार का प्रचलन तेजीसे बढता जा रहा है।

परिणामस्वरूप हमारे यहाँ भी घटस्फोट के प्रमाण बढते जा रहे है।

यह सचमुच में चिंता का विषय है।और इसी वजह से मन की अमीरी घटकर मन की दरीद्रता भी बढती जा रही है।


कारण एक ही है,धिरे धिरे एडजेस्टमेंट कम होती जा रही है।संस्कृती का अभाव और पाश्चातों का आंधानुकरण यही एकमेव कारण अनेक समस्याओं को निर्माण कर रहा है।

मन की संकुचितता अनेक जटिल प्रश्नों को और समस्याओं को निर्माण कर रही है।परिणाम स्वरूप परिवार टुटते जा रहे है,समाज टुटते जा रहे है।और सामाजिक तथा सामुहिक समस्याओं का प्रमाण भी बढता जा रहा है।


और जिसे उच्च संस्कृती का धन प्राप्त हुवा है अथवा जो आदर्श सिध्दांतों के रास्ते से चलकर,सदैव

एडजेस्टमेंट करते आये है,उनके मन के अंदर भयंकर घुटन सी होती जा रही है।


कही ऐसे भी उदाहरण देखने को मिलते है की,सच्चे, अच्छे,नेक,इमानदार, प्रामाणिक लोगों को अपना दुखदर्द व्यक्त करने के लिए परिवार में अथवा समाज में भी एक आदर्श व्यक्ती भी नही मिल रहा है।ऐसे व्यक्तियों को दुखदर्द के समय में मानसिक आधार मिलना तो दूर की बात है।

जहाँ दुखदर्द व्यक्त किया जाता है,वही विश्वास घात होता है अथवा दुखदर्द दिया जाता है।


परिणाम स्वरूप बडे बडे शहरों में फ्लॅट संस्कृती का उदय हो गया।


और भी बहुत मुद्दे है,जिसका जिक्र अगले लेख में करूंगा।


मगर अंत में यही कहुंगा की,आज भी समाज में ऐसे अनेक व्यक्ती, महात्माएं है,

जो हमेशा एडजेस्टमेंट पर भरौसा करते है।और एडजेस्टमेंट में ही जीवन बिताते है।चाहे सुख मिले या दुख,एडजेस्टमेंट नही छोडते है।


हरी ओम्

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विनोदकुमार महाजन

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