थोडा खुद के लिए भी जीते है...

 अब थोडा खुद के लिए भी जीते है.....

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सिध्दांत वादी साथीयों,

हम तो कभी खुद के लिए जीते ही नही थे।

परिवार के लिए जीना,समाज के लिए जीना,खुद का अस्तित्व भुलकर दुसरों के आँसू पोंछना।

दूसरों के दुखदर्द में खुद का अस्तित्व भुलकर दौड जाना।

खुद भूका रहकर भी भूके को खाना खिलाना।


बस्स् करो यार अब यह सभी दुसरों के लिए जीना।

क्योंकी सच में देखेंगे तो इसकी कीमत ही शून्य है।

झीरो...


इसिलिए साथीयों,

अब थोडा खुद का भी सोचते है।खुद के सुखदुःख के बारें में भी सोचते है।

अब थोडा खुद के लिए भी जीते है।


तुम्हारे लिए रोनेवाला,सुखदुःख बांटनेवाला,

मिले ना मिले।

मगर अब,थोडा खुद के लिए भी जीना सिख लो।

थोडासा जींदगी का मजा भी लेना सिख लो।


अनेक क्रांतिकारी खुद के लिए न जीकर समाज के लिए ही जीये।

क्या समाज ने और देश ने उनकी कीमत की ?

तुम्हारे सच्चाई की भी क्या कीमत होगी इस मोहमयी, मायावी दुनिया में साथीयों ?

रंगबदलती दुनिया में तुम्हारे सुखदुखों में रोने वाला कोई मिले ना मिले।

चलेगा।


मगर अब थोडा समय निकाल कर खुद के लिए भी जीना सिखो साथीयों।

मस्त कलंदर बनकर...

एक आनंदी, खुशहाल जीवन जीने के लिए, खुद के लिए अब थोडासा समय भी निकालो यारों।

अब खुद के लिए थोडासा जीना भी सीख लो यारों।


क्योंकि सभी जिम्मेदारियों को निभाते निभाते हम खुद का अस्तित्व ही भूल बैठे।और अस्तित्व शून्य होते गये।


तो...अब थोडासा खुद के लिए भी जीते है यारों।


हरी ओम्

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विनोदकुमार महाजन

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