साकार निराकार ब्रम्ह

 संपूर्ण निराकार ब्रह्म था

वही ठीक था!

सबकुछ शांत,स्थिर, स्तब्ध !!!

मगर प्रभु, तुने यह

साकार ब्रम्ह आखिर निर्माण

ही क्यों किया ?

सजीव सृष्टि, उसमें चौ-यांशी

लक्ष योनी!

बडे बडे महाकाय प्राणीयों से

लेकर,सुक्ष्म अतीसुक्ष्म जीवजंतु!

जहरीले साँप,बिच्छू,

हिंस्त्र बाघ,सिंह !

साँप नेवले का बैर !

और उसिमें महाभयंकर दिमाग का....

मनुष्य प्राणी !!!

और उसीमें फिर सुर - असुर वृत्ति !

दो विरूद्ध सिध्दांत !

दो विरूद्ध शक्तियों का घनघोर संघर्ष !

सृष्टि निर्मीती से लेकर,

सृष्टि के अंत तक चलने वाला,

यह भयंकर संघर्ष !


एक घनघोर धर्म युद्ध

रामायण !!!

एक घनघोर धर्म युद्ध

महाभारत !!!

और अब...

एक और घनघोर धर्म युद्ध होगा

कलंकायन !!!

दो विरूद्ध शक्तियों का संघर्ष !!!


पहला विश्व युद्ध !

दूसरा विश्व युध्द !

और शायद भविष्य में,

तीसरा विश्व युध्द !

दो विरूद्ध शक्तियों का संघर्ष !


हे मेरे प्रभो,

आखिर तुने यह खेल ही,

क्यों रचाया ?


एक सुर्य !

मगर किरण अनेक !

एक ब्रम्ह !

मगर रूप अनेक !

साकार भी !

निराकार भी !


हे प्रभो,

अतर्क्य तेरी लीला !

अतर्क्य तेरे रूप !


साँप में भी तु और नेवले में भी तु !

देह अलग,मगर दोनों में

आत्मतत्त्व एक !

और दोनों का बैर !!!

अगाध तेरी लीला !

अगाध तेरी माया !


हरी ओम्


विनोदकुमार महाजन

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