मन की स्थिति

 मन की स्थिती

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कभी कभार या अनेक बार अपने मन की स्थिती बडी विचित्र हो जाती है।

अथवा दोलायमान हो जाती है।

उच्च कोटी का बैराग्य सामने दिखाई देता है।और ऐसा लगता है की....

ना मुझे धन चाहिए, ना मान - संन्मान चाहिए।

ना यश चाहिए, ना किर्ती चाहिए।

ना ध्येय चाहिए, ना ध्येयासक्ति चाहिए।

ना ईश्वरी कार्य चाहिए, ना सामाजिक कार्य चाहिए।


क्या करोगे यह सबकुछ करके ?

मोहमाया दुनिया सारी।


मिट्टी का देह भी एक दिन मिट्टी में मिल जायेगा।

ना मेरा रहेगा, ना तेरा रहेगा।

तो यह झूटा मोहमाया का बाजार आखिर चाहिए ही क्यों ?   

साथ कुछ भी नही आयेगा।


पंछी उड जायेगा तो पिंजरा खाली ही रह जायेगा।


और सबसे महत्वपूर्ण होती है ईश्वर का सानिध्य, 

और सद्गुरू का प्रेमामृत।

तो इससे बढकर इस दुनिया में है ही क्या ?

अगर यह सभी विनासायास मिलेगा तो भौतिक विश्व का महाडंबर ही क्यों ?


बारबार कोशिश करनेपर भी अपेक्षित परिणाम नहीं मिलते है...तो यह मन की नाराजगी ही क्यों ?


धर्म संकट में है...

चारों तरफ से अधर्म की आग लगी हुई है।


ठीक है ना।


जिस ईश्वर ने ,

सनातन धर्म बनाया है,

तो खुद ईश्वर ही इसकी चिंता भी करेगा और रक्षा भी करेगा।

और अधर्म की ज्वाला रोककर

धर्म वृध्दि भी करेगा।


जब ईश्वर ही सर्वसाक्षी, सर्वव्यापी है...तो...

आखिर तु होता ही कौन है चिंता करनेवाला ?

और तेरे चिंता से होगा भी क्या ?


चिता एक बार जलाती है,मगर चिंता जीवनभर जलाती है।

तो आखिर चिंता भी क्यों करें ?


जो ईश्वर के मन में होगा,आखिर वही होगा।


यह नैराश्य का फलीत नही है।बल्कि जीवन की सच्चाई है।वास्तविक है।

जो स्वीकारनी ही होगी।

सआनंद स्वीकारनी होगी।


और सबसे महत्वपूर्ण बात भी यह है की,

जिस समाज के लिए... तू... दिनरात अकेला लड रहा है,

दिनरात मेहनत कर रहा है....

सुधबुध खोकर समाज के लिए सर्वस्व समर्पित कर रहा है...


उस समाज को ही तेरे कार्यों का कुछ लेनादेना नही है...तो....

हम भी व्यर्थ समय क्यों बर्बाद करें ?


धर्म संकट में है।

चारों तरफ धर्म संकट है।

तो भी धर्म संकट हटाने की तेरी अकेले की जिम्मेदारी थोडे ही  है?


जिन्होंने देश,धर्म के लिए आहुतियां दी,उनके... उनके घरवालों के नशीब में दुखदर्द के सिवाय मिला ही क्या ?


संभाजी महाराज का बलिदान, गुरूगोविन्द सिंह का आत्मबलिदान, राजे शिवाजी... पृथ्वीराज चौहान, महाराणा प्रताप, बाजीराव पेशवा ,सावरकर, सुभाषचंद्र बोस जैसे अनेक महात्मा देश में अवतरित हुए...


और फिर भी देश की समस्या हल न हुई,ना हिंदुत्व जीता।

ना हिंदुराष्ट्र बना।


हमारे ही लोग बेईमान, गद्दार निकले तो...?

आखिर क्या करें ?


क्या सचमुच में यह सुराज्य है ?

हिंदवी स्वराज्य की बात तो दूर ?


अनेक आहुतियां देकर भी ना देश सुधरा,ना देशवासी सुधरे।

तो...तु कौन होता है ?

तो तु व्यर्थ की चिंता भी क्यों करता है।


जो होगा सो होगा।


ईश्वर देख लेगा।

ईश्वर भी जो करना है वह भी कर लेगा।

तु क्यों व्यर्थ परेशान होता है ?


और ईश्वरी कानून की चिंता करनेवाला आखिर तु होता ही कौन है ?


आग लगी बस्ती में,साधु अपनी मस्ती में....


ऐसी धारणा जब बनेगी...

तो उच्च कोटी की आत्मशांति तथा आत्मशुद्धि भी मिलेगी।


और 

धर्म संकट में है यह रोना भी सदा के लिए बंद हो जायेगा।

अंदर की आग...जो निरंतर खुद को ही जलाती है...सदा के लिए शांत हो जायेगी।


सबकुछ ईश्वर के और सद्गुरु के चरणों पर समर्पित करके,एक उच्च कोटि के समाधि अवस्था अथवा ध्यानअवस्था में रहकर, परमोच्च ईश्वरी आनंद लेना ही...

आखिर शांति का भंडार है।


भयंकर सामाजिक अध:पतन अपनी आँखों से देखना, इससे बढकर दुख भी क्या होगा?

और ईश्वर भी सहायता नहीं करना चाहता है...

तो....तू....

दुखी, परेशान आखिर होता ही क्यों है ?

और तेरी परेशानी से क्या युग बदलेगा ?

जब ईश्वरी इच्छा से युग बदलना ही है तो उसे कौन रोकेगा ?


और अगर ईश्वर की ही ऐसी इच्छा है...


अधर्म का नाश और धर्म की पुनर्स्थापना अगर खुद ईश्वर ही करना  चाहता है....


तो ...

आखिर तु होता ही कौन है ?


ऐसे भयंकर उन्मादी तथा अध:पतीत राक्षसों के संपर्क में रहने से भयंकर दुखदर्द, पिडा,यातना तो होती ही रहती है...


मगर अकेला करेगा भी क्या ?

और हिंदुओं की मानसिकता भी यही होती है की..।कल्याण करनेवालों पर ही प्रहार करते है,कुठराघात करते है,मानसिक उत्पीड़न करते है...

और...

दिनरात हैवानों का ही जी जान से साथ देते है...


जब अपनों ने ही बारबार रूलाया....

तो दोष किसका ?

अपने ही अपनों को ही रूलाते है और यह सिलसिला सदीयों से चलता आया है...


टांग अडाने वाले जब खुद के ही लोग होंगे...

तो आखिर कार्य ही क्यों करें और किसके लिए करें ?


समाज हित के लिए हम अपनी जान भी नौछावर कर रहे है...और समाज ही उपर से तडपा रहा है तो...

कौनसा समाज हित का कार्य करें ?

अनेक क्रांतिकारियों ने अपने प्राणों की बाजी लगाई...

मगर फिर भी आज देश की स्थिति क्या है ?

और निस्वार्थ भाव से,जनकल्याण के लिए,फाँशी पर लटकनेवाले क्रांतिकारियों की समाज में आज भी क्या कीमत है...?


तो त्याग भी किसके लिए करें ?


इसीलिए...

बस्स्...

एक ही काम करना है,

चिंतामुक्त होकर....सामाजिक स्थैर्य का भाव छोडकर...


रट ले प्रभु का नाम ।

रट ले प्रभु का नाम ।

वही एकमेव प्रभु आयेगा तेरे काम।

बाकी सब करेंगे तेरा काम तमाम।


सभी दुखों का,सभी बिमारियों का....

एक ही रामबाण उपाय....

रट ले प्रभु का नाम।


मोहमई, मायावी इंन्सानों से नाता तोडकर,

सदा के लिए प्रभु से नाता जोड लेने में ही खुद का कल्याण है।

और तभी जीवन की नैय्या तैर जायेगी।

और अगर प्रभु भी यही चाहता होगा ...

तो ...

वही कर बंदे जो ईश्वर चाहता है।

दुनिया का भुलभुलैया और मायाजाल छोडकर बस्स्

एक ही काम्...

हरी ओम्

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विनोदकुमार महाजन

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