फिरसे लगे रहो
फिरसे लगे रहो मुन्नाभाई...
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जीवन बहुत टेढामेढा होता है।
कुछ लोग भी बहुत ही टेढेमेढे भी होते है।
और तब ऐसी मुश्कील की घडी में एक सच्चा पत्रकार, अथवा सच्चाई के रास्ते पर चलने वाला हर इंन्सान हमेशा जड तक पहुंचकर सच्चाई बाहर निकालने की कोशीश में रहता है।
इसके लिए अनेक बार अनेक टेढेमेढे रास्ते भी अपनाये जाते है।
अनेक टेढेमेढे शब्दों के बाण भी छोडे जाते है।
ह्रदय की छलनी होकर सत्य बाहर निकालने का और उसे उजागर करने का प्रयास भी होता है।
अनेक चुभते हुए प्रश्नों से पत्रकार हमेशा सत्य की खोज में रहता है।
और यही सच्ची पत्रकारिता भी होती है।
बुलेट प्रूफ...पत्रकारिता।
मगर कही बार ऐसा अनुभव होता है की,अमृत भी बाहर निकलता नही है और जहर भी।
तो भी सच्चा पत्रकार हताश उदास नही होता है।
संजय दत्त की फिल्म आयी थी....
" लगे रहो मुन्नाभाई "
मगर कसे हुए पत्रकार ...मुन्ना भाई ...को तो बारबार कोशिश करनेपर भी जब हाथ में कुछ भी नही लगता है...
तब वह मन ही मन में,खुद के मन को यही समझाता होगा...
" फिरसे लगे रहो मुन्नाभाई "
अगला प्रयास विफल नही होगा।
और राष्ट्रनवनिर्माण के संकल्प में अपेक्षित परिणाम मिलेंगे और शायद एक दो प्रतिशत तो अमृत की प्राप्ति तो होगी ही।
क्योंकि मृतप्राय समाज को अगर नवसंजीवनी देनी है तो टेढेमेढे समाज में फैले हुए कुछ सामाजिक हितकारी तत्वों द्वारा, समाजपरिवर्तन के लिए, अथक प्रयास द्वारा कुछ तो भी रास्ता निकलेगा।और सच्चे और अच्छे व्यक्ति जुडकर कार्य को गती मिलेगी।और जो अनपेक्षित घटनाओं द्वारा अथवा प्रयास द्वारा जो विफल होंगे, वो अनायास ही सदा के लिए दूर चले जायेंगे।
अचेतन समाज को और समाज मन को सचेतन से जोडने के लिए, और परिणाम स्वरूप क्रांती की लहर निर्माण करने में,राष्ट्रीय तथा वैश्विक कार्यों को अपेक्षित गती देने के लिए, असली पत्रकारिता एक वरदान शाबित होती है।
जो आज हिंदुस्तान की पत्रकारिता,भूलती जा रही है।और भूलभुलैया की,मायवी पत्रकारिता से माया कमाने के चक्कर में जादा मात्रा में लगा है।
देवीदेवताओं के देश में यह भयंकर स्वार्थ का माहौल भयंकर आत्मक्लेश देता है।
विशेषता सच्चाई छोडकर, उलटा सच्चाई को ही बदनाम करने का जब विपर्यस्त रास्ता अपनाया जाता है...तब अंदर की पीडा और बढती है।
अनेक बार होता यह है की,
मुर्ती बनाने के लिए ,एक पत्रकार अथवा समाज सेवक बनकर,जब हम पत्थर ढुंडते है ...और उसपर शाब्दिक हतौडे का प्रहार करते है...तो...कच्चे पत्थर तुरंत टूट जाते है और ढेर भी हो जाते है।जो मुर्ती बनने योग्य थे ही नही।
कठिन पत्थर है...वही टिक जाता है।
मगर लगातार प्रयास भी अनपेक्षित परिणाम देता है... तब....???
अगर अनेक मुर्तीयां बनानी है तो अनेक पत्थर भी ढुंडने पडेंगे।उसमें से अनेक कच्चे पत्थर छन्नी हतौडे के घाव से तुरंत टूट भी पडेंगे।और ढेर भी हो जायेंगे।
एक एक पक्का पत्थर राष्ट्रनवनिर्माण के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है।और असली पत्थर संग्रह में जितने बढेंगे,
कार्य तेजीसे आगे बढेगा।
कार्य को गती मिलेगी।
पत्थर की भाषा सभी के समझ में आयेगी ऐसी अपेक्षा रखता नहीं हुं।
बारबार कोशिश करनेपर भी पक्का पत्थर नही मिलेगा तो हताश और उदास मन को घोर निराशा आयेगी ही आयेगी। और मन को बारबार समझाना पडेगा की,
" कोशिश करनेवालों की हार नहीं होती "
इसिलए,
" लगे रहो ... मुन्नाभाई, फिरसे लगे रहो,बारबार लगे रहो "
" डटे रहो "
शायद पत्थर ढुंडते ढुंडते उसी पत्थरों में से अनेक मौलिक तथा अलौकिक हिरे भी मिलेंगे।और उसी मौलिक हिरों की माला से,
राष्ट्रनवनिर्माण का कार्य आसान भी हो जायेगा।
भविष्य में धोका न हो और काम न बिगडे, इसिलिए ऐसा करना ही उचित होता है।
किसी को अच्छा बुरा लगने का यहां तो मतलब ही है नहीं।
जो सच्चाई के रास्तों पर चलता है वह आनंदित ही होगा।
जिसने सच्चाई का नाटक किया है उसे दुखदर्द होगा।
अपने अपने अतरात्मा की आवाज सही उत्तर भी देगी।
ढुंडते रहेंगे तो शायद....
कामयाब भी होंगे।
एक महान क्रांतिकारी को एक गलत सहयोगी मिला,और उस एक पर ही उस क्रांतिकारी ने इतना भरौसा किया की,
वही एक नमकहराम निकला ...
और सारा काम ही तमाम हो गया,चौपट हो गया।
इसीलिए हर कदम फुंकफुंककर ही चलना चाहिए।
अखंड सावधानी।
भविष्य अंधकारमय बनाना है या उज्वल बनाना है तो,यह आपके ही हाथों में है।
अगर भविष्य उज्ज्वल चाहिए तो...
साथी भी उतना ही ,
" शक्तीमान " होना भी जरूर चाहिए।
ऐरे गैरों का यह काम नहीं है।
पिछले कुछ दिनों से इसी सिलसिले में कुछ ऐसी रोचक तथा विचित्र घटनाओं का सिलसिला आरंभ हुवा था।जिसका जीक्र शायद, ईश्वर की इच्छा होगी तो अगले लेख में करूंगा।
कहने का मतलब यह है की,
अनेक कच्चे पत्थर ढेर हो गये।
हिरा मिला या नहीं ईश्वर ही जाने।
देखते है,
भविष्य के उदर में क्या क्या लिखा है और क्या क्या छिपा है,और क्या क्या होता है ?
आखिर जो होता है वह सब ईश्वर की इच्छा से ही होता है।और जो होता है,अच्छे के लिए ही होता है।
चाहे आज भयंकर जहर भी मिले तो भी ईश्वर इसके द्वारा भी कुछ सूचनाएं भी देता है।और भविष्य में अपेक्षित परिणाम तक भी शायद ले जाता है।और ईश्वर की कृपा से महापुरुषों में अनेक, भयंकर जहर हजम करने की भी शक्ति होती है।क्योंकि ईश्वरी वरदान से उसे ईश्वरी कृपा से अमृत का वरदान भी प्राप्त हुवा होता है...जो जालीम जहर को भी आसानी से हजम कर सकता है।
इसीलिए बिना थके हारे मंझिल की ओर,उच्च ध्येयमंदिर की ओर हर दिन, एकेक कदम आगे बढना ही होगा।
जब ईश्वर की इच्छा होगी,
तब अपेक्षित परिणाम मिलने में कोई भी नही रोक सकेगा।
संघर्ष, जी तोड ...संघर्ष अपेक्षित परिणाम मिलने तक जारी रहेगा।
फिरसे... लगे रहो,डटें रहो मुन्नाभाई।
शायद,
अपेक्षित यश और परिणाम इंतजार कर रहे है।
पुनश्च.... हरी ओम्
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विनोदकुमार महाजन
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