टोपी के निचे
" टोपी " के निचे ..क्या छुपा है ?
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"टोपी "
बहुत शक्ति रखती है।
और उसके निचे ?
बहुत कुछ छुपा हुवा है।
सबसे महत्वपूर्ण बात,
पातालयंत्री दिमाग।
जो दिनरात जबरदस्त आक्रामक एवं स्फुर्तीला रहता है,और किसी को कुछ समझ में भी नही आता है।
भयंकर तेज दिमाग।
संपूर्ण वैश्विक घटनाओं पर बारीकी नजर और कुनिती द्वारा ,
" दुसरों को " उखाड़ फेंकने की विचारधारा, शक्ति और क्षमता।
टोपी के निचे भयंकर शातिर दिमाग की योजनाएं चलती है।
और किसी को कुछ पता ही नहीं चलता है।
मगर टोपी कौनसी ?
जो आप सभी सोच रहे है... "वही।"
" और हम ??? "
सौ प्रतिशत गहरी नींद में।
और उपर पैसा कमाने की होड और लालच।
सत्यानाश कर दिया ऐसी सोच ने।
" उनकी " रणनीति सौ प्रतिशत है....
और " हमारी "
शून्य।
जी हाँ।बिल्कुल शून्य।
और उपर से हमारे बीच की भयंकर खिंचतान।आपसी बैर।
दुसरों को निचा दिखाने की और पैर खिंचने की होड।
अगर " हमारा " कोई आगे आने की कोशिश करता है...
तो...?
हम ही उसे मनोवैज्ञानिक हमले करके समाप्त करते है।
और उपर से,
जीत की सैतानी हँसी खुशी।
और " वो " ?
सब एक।एक फोन काँल की देरी... सब हाजिर।
समझ गये कुछ....?
टोपी की गहरी किमया ?
जरा रूप बदलकर, पागल जैसा बनकर... एक " चक्कर " लगाएंगे... तो...सब कुछ समझ में आयेगा।
और विद्वान बनकर जायेंगे तो...?
खेल खतम्
भाषा गहरी है,सांकेतिक भी है।जो समझ सकते है,वही जाने।
क्योंकि समय ही बडा कठिन चल रहा है।
इसीलिए संभलकर ही हर कदम चलना पडेगा।
इसीलिए यह लेखन ही ऐसा है की,
समझदारों को ईशारा ही काफी है।
" शून्य " पर बन बैठे है,उनको कौन और कैसे बताएगा ?
कौन बचाएगा भी ?
और जागृत भी कौन करेगा ?
उल्टा चोर कोतवाल को डांटे...
ऐसी भयंकर विचित्र स्थिति है।
और इलाज भी क्या है इसका ?
" सर्वसत्ताधीश को "
" सर्वशक्तिमान बनकर "
" सबकुछ कानूनी तरीकों से " ,
निपटाना होगा।
षड्यंत्र, कारस्थान की परिसीमा चल रही है।
हमारा संपूर्ण भविष्य खतरे में है।
अस्तित्व भी खतरे में है।
आज और अभी...?
तुरंत कुछ ठोस कदम नहीं उठाये तो...???
तो....???
का यथोचित उत्तर देना आपका दाईत्व है।
चौदासों सालों की....
रणनीति जीतती आ रही है।
और हमारे हाथ में सर्वश्रेष्ठ भगवत् गीता होकर भी...
हमारी निती हमेशा हारती नजर आ रही है।
सबकुछ....
" भागमभाग "
आखिर ऐसा क्यों हो रहा है ?
हम हमारा ईश्वरी तेज भूल गये है।सामान्य इंन्सान बनकर... आदर्श इतीहास को भूलकर,
हम...तेजोहीन बन गये है।
और समस्या की जड तो यहीं पर है।समस्या की जड पर जाकर,
हल निकालेंगे...
तो शायद बच पाओगे।
क्योंकि हमारे इंतजार की घडी भी अब पूरी तरह से समाप्त हो गई है।अस्तित्व गहरे खतरे में है।
हम भयंकर बूरी स्थिती में चारों तरफ से फँस चुके है,घिर चुके है।
अब सर्वोच्च राजकीय इच्छाशक्ति ही ऐसी भयंकर समस्या का हल निकाल सकती है।
" कश्मीर " केवल एक बार ही नहीं हुवा है।वैश्विक पटल पर...
" कश्मीर " अनेक बार हो चुका है।और आश्चर्य की बात यह है की...आज भी,इतना भयंकर होने के बावजूद भी...
हम
निद्रीस्त भी है,और आपसी कलह कलह के कारण नामशेष भी होते जा रहे है।
ईश्वर से यही प्रार्थना है...
की,
हे प्रभो,
मेरे देश का पाकिस्तान मत होने दें।
साजिश भयंकर गहरी है।
सत्य को स्विकारना ही होगा।
आजमाना है तो...
भगवा तीलक लगाकर,
" मोहल्ले " में एक चक्कर लगाकर आवो।
" खूंकार " नजरों से ही सबकुछ समझ जाओगे।
आगे भगवान की इच्छा।
जागो।
हरी ओम्
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विनोदकुमार महाजन
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