दूसरों को संन्मान देंगे तभी...

 दूसरों को संन्मान देंगे,

तभी संन्मान से जीवन जियेंगे

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अगर दूसरों का ह्रदय से संन्मान करेंगे, तो खुद बखुद दूसरे भी हमारा संन्मान ही करेंगे।


मगर दूसरों को अपमानित करेंगे, तो अपमानित जीवन ही जियेंगे।


जो दूसरों को इज्जत करता है,

अनायासे दूसरे भी उसकी इज्जत करते है।


यह कुदरत का कानून है।

यह ईश्वर का कानून है।


किसी के स्वाभिमान पर चोट करेंगे,उसे अपमानित, प्रताडित करेंगे... तो स्वाभाविक ही ऐसा करना,

बूमरैंग ही होगा।


अगर चिंटी को भी अपमानित करेंगे, उसके उपर पैर रखेंगे, तो वह चींटी भी तुम्हारा प्रतिशोध ही लेगी।और छोटासा जीव होनेपर भी,काटेगी तो जरूर।


निरीक्षण करके देखो,पशुपक्षी भी अपमान का प्रतिशोध लेते है।और प्रतिशोध की आग भयंकर होती है।


किसी की सहायता करनेपर भी,अगर वह व्यक्ति सहायता करनेवाले पर ही प्रहार करती है,और उसको प्रताडित करती है...तो वह प्रताडित व्यक्ति यह अपमान कतई नहीं भूलता है।और मौके की तलाश में रहकर, मौका मिलते ही,जानबूझकर अपमानित करनेवाले पर...प्रतिघात तो करता है।

और ऐसा स्वाभाविक भी है।


इसिलए साथीयों,

सदैव दूसरों का संन्मान करेंगे

तो दूसरे भी हमे स्वाभिमान से जिने के लिए, सहयोग करेंगे।

इसिलए कभी भी किसी को भूलकर भी अपमानित मत करो।

चाहे वह इंन्सान हो,कुत्ता हो,गौमाता हो,पक्षी हो या फिर चिंटी भी हो।


यही प्रेम की परिभाषा है।और सनातन संस्कृति हमें यही सिखाती है।


हरी ओम्

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विनोदकुमार महाजन

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