छोटासा कंकर

 एक छोटासा कंकर भी जल की परीक्षा करता है

✍️ २१९५


विनोदकुमार महाजन

-----------------------------

वैसे हिंदुओं को जगाने का कार्य इतना आसान नहीं है ! और वैश्विक हिंदु संगठन बनाकर उसे कार्यान्वित करना, और उसे गतिशील बनाना ?

लगभग असंभव है !

क्योंकि हिंदुओं की आत्मचेतना और आत्मसंन्मान ही लगभग मर चुका है !

एकबार कुंभकर्ण को जगाना आसान होगा,मगर हिंदुओं को ?

असंभव ???


अनेक अत्याचारी, आक्रमणकारी, खूनी, लूटेरे इस देश में आयें ! और हमारी आदर्श तथा सैध्दांतिक, ईश्वर निर्मित संस्कृति भंजन का कार्य, बर्बतासे अनेक सालों तक किया ! मगर हिंदुओं का आत्मतेज नहीं जगा !सदीयों से हिंदु सोता ही रहा !

और यह वास्तव भी सभी को स्विकारना पडेगा !


आज भी हिंदु समाज इतना भयंकर पिडित, अपमानित है की,पुछो मत ! हमारे हिंदु भाईयों की अनेक जगहों पर,देशविदेशों में क्रूरता से ,निरंंतर,हत्याएं होती रहती है ! हमारे देवीदेवताओं को,महापुरुषों को,साधुसंतों को,आदर्श सिध्दांतों को,खुलेआम अपमानित किया जाता है,फिर भी अनेक हिंदु मौन - निष्क्रिय होकर  - शांती से जीवन जिते है ! मानो उनके अंदर एक तो खून का एक बूंद ही नहीं है !

तो खौलेगा कैसे ?

अथवा, भयावह अन्याय, अत्याचार का उन्हें कुछ लेना देना ही नहीं है ! जब भागने का समय आयेगा, तब देखा जायेगा, ऐसी विनाशकारी मानसिकता ही बर्बादी की ओर ले जा रही है !

कोई कितना भी उन्हें जगाने का प्रयास करें, उनपर कुछ असर ही नहीं होता है !


जींदा लाशे ???


( अब हिंदु चेतना जागृती का, चारों तरफ से, लगातार और अथक प्रयासों के कारण थोडासा परिवर्तन दिखाई दे रहा है ! मगर फिर भी अपेक्षित गती नही है ! )


और हमारे हिंदु धर्म के लिए कोई महात्मा कार्य करने लगता है तो,कुछ मुर्दाड ( ? ) शापित,हिंदुओं का खून खौलने लगता है ! और धर्म कार्य में,ऐसे ही पडे रहनेवाले जयचंद हिंदुत्ववादियों के खिलाफ, शेर जैसे दहाडने लगते है !


और ऐसे नमकहरामों को सबक सिखाएंगे तो...?

कानून की अनेक मजबुरीयाँ !


तो ऐसे भयावह स्थिति में, भयंकर धर्म ग्लानि के समय में कार्य कैसे बढाया जायेगा ? हिंदुओं का आत्मचैतन्य कैसे जगाया जायेगा ? मुर्दा मन से जिनेवालों के मन को जिवीत कैसे किया जायेगा ?


इस देश में और विदेशों में भी अनेकानेक हिंदुत्ववादी संगठन होने के बावजूद भी हिंदुओं पर हो रहे अत्याचार रूकते नहीं है !

सचमुच में आत्मग्लानि होती है हमेशा, अंदर ही अंदर, हिंदुओं पर हो रहे अत्याचार देखकर !


तो आखिर इसका इलाज क्या है ?


इलाज है ! जालीम इलाज है !

कानून के ही दायरे में रहकर, कार्य तेजिसे आगे बढाना तथा उसे आगे बढाते समय में,हर एक की खोई हुई आत्मचेतना जगाना ! 

इसके लिए एक विशिष्ट,तगड़ी, शक्तिशाली रणनीति की जरूरत है !

इससे सभी वैश्विक हिंदुत्ववादी संगठन भी गती से सक्रिय भी होंगे और संपूर्ण सहयोग भी करेंगे ! और विश्व के सभी हिंदुत्ववादी तथा मानवताप्रेमी संगठनों का मुझे आत्मीय सहयोग भी चाहिए !


अब आते है मूल मुद्दों पर !

कंकर पर !


जब जल की परीक्षा करनी पडती है,तब एक छोटासा कंकर बहुत काम आता है !

उस जल में एक छोटासा कंकर फेंकते है तो...?

उससे उठने वाली तरंगों से ही पाणी का अंदाजा लगाया जा सकता है !

अगर कंकर फेंकने के बाद भी कुछ तरंगे ही नहीं उठी,तो समझ लेना यह एक मृगजल है ! और मृगजल में पाणी की अपेक्षा करना गलत होगा !

दूसरा स्थान और दूसरा कंकर साथ लेकर, आगे बढना !

बढते रहना !


मतलब समाज रचना ,उसके अनेक भेद,रहस्य जानने है,असली मुखौटा और नकली मुखौटा पहचानना है,संगठन के लिए कौन सहायक और कौन बाधक होगा ? यह समझना है...तो...?

ऐसा अनेक माध्यमों द्वारा फेंका हुवा एक ही कंकर काम आयेगा !

और परीक्षा होने के बाद सहायक व्यक्तियों का जबरदस्त जागतिक " नेटवर्क " खडा करना पडेगा !


कैसे ?

एक उदाहरण !

आप अवलीया शब्द शायद जानते होंगे !

वैसे समाज में अवलीया बहुत कम होते है ! होते भी है तो गुप्त रूप से समाज में रहते है ! हमेशा साधारणतः मनुष्यों से,मनुष्य वस्तुयों से दूर, मौन - एकांत में शांत रहकर, अखंड ईश्वरी चिंतन करनेवाले महापुरुष, सिध्दपुरूष, महासिध्दयोगी !


अनेक बार,इनका आचरण भी बहुत ही विक्षिप्त, विचित्र और अनाकलनीय होता है ! अपने ही धून में रहनेवाले ! स्वच्छंद - बंधनमुक्त रहनेवाले !

चित्र - विचित्र बातें करनेवाले !

उनके शब्दों के अर्थ समझना भी आसान नहीं होता है ! अनेक गूढ तथा सांकेतिक शब्द और गूढ भाषा का प्रयोग !


मन में आया वहीं करेंगे !

कभी किसीको गाली देंगे ! किसी पर जोरजोरसे चिल्लायेंगे ! किसीको लाठी से मारेंगे ! किसी के बदन पर थूकेंगे !

ऐसे विचित्र, विक्षिप्त लोगों को समाज तो पागल ही कहेगा ना ?

मगर इनके विक्षिप्तपण का भी बहुत बडा अर्थ होता है, और उद्देश्य भी ! बस्स्... समझने वाला,पहचानने वाला ही चाहिए !

ऐरे गैरे क्या जानेंगे ? क्या समझेंगे ?


उपरोक्त विषयानुसार थोड़ा विषयांतर हो रहा है ! मगर ऐसा लिखने की भी वजह है ! समाज जोडने की कला हस्तगत करने के लिए !


शेगांव के गजानन महाराज आप सभी को मालूम ही होंगे !

एक अवलीया !

हठयोगी !

मुर्दे को भी जींदा करनेवाला महासिध्दयोगी !

पंचमहाभूत, भूत - भविष्य - वर्तमान और प्रत्यक्ष काल को भी आदेश देनेवाला महात्मा !

मगर आचरण ?

भयंकर विचित्र, विक्षिप्त !

( केवल मनुष्यों की नजरों से ! )

नंगा रहना, चिल्लम फूंकना, दूसरों के शरीर पर थूकना !

सांकेतिक भाषा में बोलना !


गजानन बाबा की किर्ती सुनकर, एक महारोगी, बाबा के दर्शन को आया था ! उस महारोगी को देखकर, गजानन बाबा उसी के शरीर पर ही थूकें !


कोई मूर्ख, अज्ञानी होता तो क्या करता ? बाबा को गाली देकर,उनको ही भलाबुरा कहकर, सदा के लिए वहाँ से निकल जाता ! 

" ऐसा कैसा महापुरुष है ? " ऐसावैसा कहकर !


मगर उस महारोगी ने क्या किया ?

गजानन महाराज की थूकी ही सारे शरीर को मल्हम जैसी लगाई !

और आश्चर्य हुआ !

उस महारोगी का महारोग ही सदा के लिए ठीक हो गया !


ऐसे होते है अवलीया !

उनके दर्शन मात्र से ही, जन्म जन्म का कल्याण हो जाता है !

मगर ऐसे महापुरुषों के दर्शन ही असंभव होते है ! भाग्य रेखा के अनुसार !


और ऐसे अनेक, चमत्कारी,महासिध्दयोगीयों ने,किसीके सरपर हाथ रखकर, उसे वैश्विक कार्य का आशिर्वाद दिया होगा ? तो...?उसका कार्य कौन रोक सकेगा ?

और उसी के कार्य करने की पध्दती भी ठीक ऐसी ही अनाकलनीय ही होगी !

साधारण आदमी क्या समझ सकेगा ?


खैर !

अब देखते है... वैश्विक कार्य और संगठन के बारे में !

इसके लिए, कंकर फेंककर ही,जलतरंग देखकर ही, निती बनानी पडेगी ! सहयोगी व्यक्तियों की श्रखंला बनानी और बढानी पडेगी !

विवेकानंद, सावरकर, सुभाष बाबू जैसे महानायकों के निती का अभ्यास करना पडेगा !


जो सच्चा है विनाशर्त,तुरंत जूड जायेगा ! अज्ञानी दूर चला जायेगा !


शब्दों की लाठी, उस लाठी का प्रहार और उसी द्वारा समाज में उत्पन्न होनेवाली, जलतरंगों के जैसी तरंगें, बहुत कुछ - बता - सिखा सकती है ! आदमी की परीक्षा कर सकती है !

एकेक उपयुक्त आदमी जोडने में सहायक हो सकती है !


मैं मेरे अनेक लेखों में कई बार,अनेक बार, कठोर शब्दों का प्रयोग और प्रहार जानबूझकर इसिलिए करता हूं की,हरेक की आत्मा जाग सकें ! आत्मचेतना जाग सकें !

सच्चाई, अन्याय, अत्याचार उसे मालूम हो सके !

और अत्याचार के विरूव उसके अंदर की अग्नि जागृत हो,आत्मचेतना जागृत हो, और धर्म कार्यों के लिए, अपेक्षित गती तथा यथोचित परिणाम प्राप्त हो !


मगर असली अर्थ समझने वाले ही बहुत कम और गलत समझने वाले ही जादा मिलते है तो क्या करेंगे ?

जिसे कार्य बढाना है,वह उद्देश्य और पावित्र्य देखेगा !

जिसे बहाना बनाना है वह शब्दों की कठोरता, -हस्व - दीर्घ का भेद देखेगा !


फिर भी,केवल लेख लिखने से कुछ हासिल नहीं होगा ! धरातल पर कुछ कार्य आरंभ करना पडेगा !

यह बात मैं पक्की जानता हूं !

मगर फिर भी, 

" कारवाँ बनाने और बढाने के लिए, तथा भविष्य में तेजी से 

दौडने के लिए ! "

यथोचित नींव तो रखनी ही पडेगी ! और लेख लिखना यह एक नींव है ! इसके द्वारा भविष्य में अनेक प्रभावी योजनाओं द्वारा कार्यान्वित किया जायेगा !


मगर इसकी शुरूआत तो एक कंकर से ही करनी पडेगी !

शब्दों के कंकर !

मृगजल है या असली पाणी है यह जाँचना,परखना होगा ! अगर जल ही है तो उसकि तरंगे देखकर भविष्य के लिए, अनेक प्रभावी योजनाएं बनानी पडेगी !

किसके अंदर असली जल है,और किसके अंदर मृगजल है यह देखना, जाँचना, परखना ही होगा !

कौन कितने पाणी में है ? और भविष्य के लिए, कितना सहायक है,यह भी देखना होगा !


तभी भविष्य कालीन योजनाएं सफल होगी !


युगपरिवर्तन की इस महत्वपूर्ण घडी में हर कदम हमें फूंक फूंक कर आगे चलकर ही हमें जित की ओर बढना होगा !

और इसके लिए चारों तरफ से प्रभावी, अभेद्य रणनीति बनानी पडेगी !


क्योंकि उन्मत्त कली के अनेक, विनाषकारी अजगर और जहरीले साँप, सत्य को निगलने के लिए, पग पग पर गुप्त रूप धारण करके बने बैठे हुए है !


यह भयंकर जाल,विनाषकारी चक्रव्यूह भेदन करके,हमें आगे निकलना ही होगा !


और सत्य सनातन के विजय का झंडा सदा के लिए, युगों युगों के लिए, जमीन में गाडना ही होगा !

आपको क्या लगता है ?


हरी ओम्


🕉🙏🙏🙏

Comments

Popular posts from this blog

ऊँ कालभैरवाय नम :

मोदिजी को पत्र ( ४० )

हिंदुराष्ट्र