कृष्ण को जब राधा मिलती है
कृष्ण को जब राधा मिलती है !!!
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कितना पवित्र नाम !
राधाकृष्ण !!!
कितना पवित्र प्रेम !
आपस में कितना पवित्र दिव्य प्रेम !
जनम जनम का पवित्र रिश्ता !
जो सत्यभामा और रूक्मिणी भी न दे सकी,ऐसा सबकुछ समर्पित,पवित्र, दिव्य स्वर्गीय प्रेम !
इसिलिए कृष्ण भी परमात्मा होकर भी राधे के प्रेम का दिवाना !
इसिलिए लोग भी...
सत्यभामा कृष्ण
रूक्मिणी कृष्ण
ऐसा नही कहते है !
राधाकृष्ण कहते है !!!
कृष्ण से भी पहले राधा का नाम !
राधाकृष्ण !!!
राधा हमेशा कान्हा को कहती है,
" कान्हा, तुझे जो चाहिए वह सबकुछ मैं तुझे दे दुंगी।
और...तु भी मुझे जो चाहिए वह सबकुछ दे दे ! "
क्या चाहिए आखिर राधा को ?
क्या चाहिए आखिर कान्हा को ?
स्वर्गीय दिव्य प्रेम !!!
बस्स्...
एक दूसरे के प्रेम के सिवाय तडपती...
जलबीन मछली !
युगों युगों से !
युगों युगों तक !
सभी प्रकार के सुखोपभोग,
ऐश्वर्य, यश,किर्ती यह तो बाद में है !
सबसे पहले तो आपस में संपूर्ण समर्पीत शुध्द प्रेम !
वह प्रेम....
जो स्वर्गीय अमृत से भी बढकर है !
धन्य है राधाकृष्ण का जनम जनम तक रहनेवाला,
अजरामर शुध्द प्रेम !!!
धन्य है राधाकृष्ण की अटूट जोडी !!!
जय राधेकृष्ण !!!
राधे राधे !!!
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विनोदकुमार महाजन
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