जब अभिमन्यू धर्म युध्द में मारा जाता है

 जब, अभिमन्यु धर्म युध्द में मारा जाता है !!!

( लेखांक २०५१ )


विनोदकुमार महाजन

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मित्रों,

नियती,नशीब यह बडी अजीब चिजें होती है !

हर एक का नशीब अलग अलग !

हर एक का सुखदुःख अलग अलग !


नियती और नियती का खेल भी बडा विचित्र !

भले भलों के साथ आराम से खेलती रहती है नियती!

किसी को जीवन भर हँसाती है,तो किसी को जीवन भर के लिए रूलाती भी है !


प्रत्यक्ष ईश्वर भी मानवी देह लेकर जब अवतरीत होता है....

तब....नियती बदलने की संपूर्ण क्षमता होकर भी....

नियती के ही संपूर्ण अधीन रहकर कार्य करता रहता है !


अन्यथा क्या जरूरत थी,

राजा राम को राजऐश्वर्य का त्याग करके बनवास स्विकारना पडा ?

क्या जरूरत थी कृष्ण कन्हैया को,जन्म होते ही दूर भागना पडा !


और....

क्या जरूरत थी अभिमन्यू को चक्रव्यूह में मरणे की ?

वह भी प्रत्यक्ष परमात्मा प्रभू परमात्मा श्रीकृष्ण देहरूप में सामने मौजूद होकर भी ?


उस स्थिती को समझने के लिए,

कृष्ण का प्यारा अर्जुन की उस समय की मनोदशा को समझने के लिए,

जरा धर्म वीर अर्जुन के मनोमस्तिष्क में परकाया प्रवेश करके तो देखो,कितना अर्जुन का ह्रदय तडप गया होगा,प्रत्यक्ष अभिमन्यू की,अपने ही पूत्र की सामने मृत्यु देखकर ?

वह भी इतनी भयावह ?

वह भी भयंकर उन्मादी क्रूर शत्रुओं द्वारा ?

और अर्जुन युध्दक्षेत्र में माहिर होकर भी ?


लाडले,प्यारे,भगवान श्रीकृष्ण के सामने अर्जून पुत्रमोह में कितना भयंकर और ढसढसा रोया होगा ?तडपा होगा ?


आखिर मनुष्य देह प्राप्त होने के बाद सुखदुःख का सिलसिला तो लगातार चलता ही रहेगा !

इसे कौन टाल सकता है ?


कल्पना किजिए साथीयों !


जब अभिमन्यू धर्म युध्द में मारा जाता है ?

क्यों नही बचाया भगवान श्रीकृष्ण ने अभिमन्यू को ?

प्रत्यक्ष देहरूप में परमात्मा की चैतन्य शक्ती मौजूद होकर भी ?


नशीब, नियती, प्रारब्ध बदलने की क्षमता होकर भी ?


प्रत्यक्ष ईश्वर होकर भी ?


क्यों अभिमन्यू की मृत्यु को श्रीकृष्ण नही टाल सका ?

क्यों श्रीकृष्ण ने अभिमन्यू को गर्भ में केवल चक्रव्यूह भेदन करके केवल चक्रव्यूह के अंदर घुसने का ही अधूरा ज्ञान आखिर क्यों दिया ?

क्यों नही बाहर आने का ज्ञान दिया ?


क्यों नही पूर्णत्व दिया ?


सोचो साथीयों सोचो !

बडी विचित्र लिला है ईश्वर की !

बडी विचित्र माया है ईश्वर की !

बडा विचित्र खेल है ईश्वर का !!!


क्या नियती के सामने प्रत्यक्ष परमात्मा भी विवश हो जाते है...

सुखदुखों का भेदन करने की पूर्ण क्षमता होकर भी सुखदुःख सहर्ष भोगते रहते है...


तो....???


हम कौन होते है ?

हम कौन होते है सुखदुखों को टालने की कोशीश करनेवाले ?

जो नशीब में है वह तो होकर ही रहेगा ?


तो व्यर्थ की चिंता,तानतनाव क्यों ?

और कितने दिनों तक ?


और यशस्वीता की ओर जाने के लिए हरपल,हरदिन प्रयासरत रहनेवाले भी आखिर हम होते कौन है ?


नियती के सामने आखिर सारे हतप्रभ !!!

हतबल !!!

तो....

सत्य की लडाई लडने का मकसद ही क्या है ?


सावरकर, सुभाषबाबू का अधूरा यश !

राजे शिवाजी का हिंदवी स्वराज्य के लिए कभी भी दिल्ली ना जीतना !

धर्म वीर संभाजी राजे की मृत्यु !

गुरू गोविंद सिंह जी की मृत्यु !

बंदा बैरागी की भयावह मृत्यु !

पृथ्वीराज चौहान की हार !

महाराणा प्रताप का जंगल का भयानक जीवन !


पांडवों का भयंकर बनवास और अज्ञात वास !

घनघोर महाभारत का युध्द !

रामजी का बनवास !

रामायण का घनघोर युध्द !


और आज...!!!

वर्तमान समय में हम सभी भी आखिर कहाँ जा रहे है ?

कहाँ दौड रहे है ?

विशेषतः सत्य की लडाई दिनरात लडनेवाले मेरे सारे धर्म योध्दे...आखिर जा कहाँ रहे है ?

इसका अंतीम उद्दीष्ट, उद्देश्य क्या है ?


धर्म राज्य की संकल्पना लेकर हम नितदिन आगे बढने का प्रयास क्यों कर रहे है ?


और आखिर नियती भी आखिर क्या चाहती है ?

फिरसे धर्म युद्ध ???

रामायण महाभारत के बाद का तीसरा भयंकर धर्म युध्द ?

तीसरा जागतिक महायुद्ध ?

और फिर भयंकर मनुष्य हानी ?


और अभिमन्यू जैसे अनेक धर्म योध्दाओं की अकालमृत्यु ?


क्या चाहती है नियती आखिर ?

रशिया युक्रेन विवाद कहाँ जा रहा है ?

और इसका अंत भी क्या होगा और कब होगा ?

विश्व स्तरपर हिंदुस्थान का महत्वपूर्ण " रोल " कौनसा रहेगा ?

सबकुछ निरूत्तरीत !


मेरे प्यारे सभी साथीयों,

हम सभी भी आखिर कहाँ दौड रहे है ?

सुख की ओर या दुख की ओर ?

इसका अंत क्या है ?


सृष्टि निर्मिति से लेकर, सृष्टि के अंत तक यह....

देव दानव का,

सुर असुर का,

अच्छे बुरे का,

सज्जन दुर्जन का,

सत्य असत्य का,

यह भयंकर घनघोर युध्द निरंतर जारी रहेगा ? 

निरंतर चलता रहेगा ?

नितदिन चलता रहेगा ?

और हम सभी का इसमें

महत्वपूर्ण " रोल " आखिर क्या रहेगा ?


भगवान श्रीकृष्ण का ?

अर्जुन का ?

अभिमन्यू का ?

कौनसा रोल फिरसे रहेगा ?


क्योंकी नाशवंत देहतत्व तो मृत होता है ! मगर आत्मतत्त्व तो युगों युगों से चिरंतन है !

उसे कौन और कैसे मार सकता है ?

और अनेक पवित्र आत्माएं अपना पिछले जनम का आधा अधुरा कार्य पूरा करने के लिए,

फिरसे धरती पर अवतरीत होती है ! और कार्य सफल बनाकर ही रहती है !


नशीब अपना अपना !

जो नियती की इच्छा होगी वह तो होकर ही रहेगा !

आखिर इसे भी कौन और कैसे टाल सकता है ?


देखते है भविष्य के अंधकार में क्या छुपा हुवा है ?

नियती भी क्या चाहती है ?

और हमारे भाग्य में भी आखिर क्या लिखा है ?

हम सभी भी आखिर क्यों दौड रहे है ?

और दौडने का उद्देश क्या है आखिर ?


कितना सुख ? कितना दुख ?

कितना ईश्वरी कार्य ?

हमारे नशीब में क्या लिखा है ?

यह तो नियती ही जाने !


मगर आखिर एक बात तो सभी को माननी ही पडेगी, स्विकारनी ही पडेगी....


धर्म युद्ध में अभिमन्यू जब चारों तरफ से घेरकर मारा जाता है...

तब...

नियती भी मौन रहती है !

नशीब भी हतबल होता है !

और खुद ईश्वर भी नियती का यह भयंकर खेल खुले आँखों से देखता रहता है !


तो इसपर आप सभी का अभिप्राय क्या रहेगा ?

मूकदर्शक बनकर,

केवल....


" हुश्श...."

करना ही आखिर हमारे हाथ में रहेगा ???

या फिर... आगे भी कुछ कहना है आपको ?


शेष अगले लेख में !

तबतक के लिए...

हरी ओम्

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