हिंदुओं का आत्मतेज किसने समाप्त किया

 हिंदुओं का आत्मतेज कैसे समाप्त किया गया ?

( लेखांक : - २०६४ )


विनोदकुमार महाजन

-----------------------------

अनेक सालों तक अन्याय, अत्याचार सहने के बाद व्यक्ति अथवा समाज हतप्रभ,हतबल, निस्तेज, स्वाभीमान शून्य और लाचार हो जाता है।

और अगर कोई संस्कृति ही समाप्त करनी है तो उस संस्कृति के जड पर ही प्रहार किया जाता है।अनेक सालों तक उसके आदर्श और आदर्श सिध्दांतों पर ही जमकर चौफेर हमला किया जाता है।


हिंदू धर्म अनुयायियों के साथ भी ऐसा ही भयंकर दुष्कर्म,क्रौर्य,षड्यंत्र अनेक सालों तक आक्रमणकारियों ने लगातार किया है।

परिणाम स्वरूप हिंदुओं का आत्मबल, आत्मतेज कम हो गया है।सहनशीलता की पराकाष्ठा के कारण अती उदासीनता समाज मन पर छा गई।और समाज को क्षतीग्रस्त बनाकर, पंगु बनाने के लिए अनेक आक्रमणकारियों ने अथक प्रयास जारी रखें।


माहौल ही इतना भयावह बनाया गया की,

हिंदु खुद को हिंदु कहने के लिए भी डर रहा था,अथवा शरमाता था।

और तो और, 

हिंदु ही हिंदु धर्म का,देवीदेवताओं का,संस्कृति का मजाक उडाने में धन्यता मानने लगा था।


निस्तेज, स्वाभिमान शून्य, लाचार समाज सदैव गुलामी की तरफ लगातार बढता रहता है।और धिरे धिरे ऐसा स्वाभिमान शून्य समाज मानसिक गुलामी की तरफ बढता है।

और संस्कृति से भी दूर होने लगता है।


ईश्वराधिष्ठीत सनातन वैदिक हिंदु धर्म अनुयायियों का आत्मतेज, आत्मबल इतना जबरदस्त था की,ईश्वर पूत्र जैसा धधगता आत्मतेज और अंगार अंदर था।


मगर शातिर दिमाग के अनेक अत्याचारी, आक्रमणकारियों ने सनातन संस्कृति के जड पर अनेक सालों तक इतना भयंकर अत्याचार, क्रोर्य,बरबर्ता दिखाई की,हिंदुओं के अंदर भयंकर खौफ, डर बैठ गया।और हिंदु समाज हिंदुत्व से दूर जाने लगा।

हमारे देवीदेवताओं को ,धर्म को,संस्कृति को बारबार अपमानित करनेपर भी,प्रताडित करनेपर भी हमारा हिंदु बांधव इसका विरोध करने के लिए भी असमर्थ बन गया।

अथवा कुचक्र द्वारा ऐसा जानबूझकर बनाया गया ?


आक्रमणकारी मुगलों के भयंकर, भयावह, भयानक, भयभीत करनेवाले अत्याचारों की वजह से हिंदु समाज की आत्मचेतना ही समाप्त कर दी गई।

इतिहास साक्षी है ऐसे अत्याचारों का और बरबर्ता का।

इसिलए हिंदु समाज निस्तेज तथा स्वाभीमान शून्य बनता गया।

एम.एफ.हुसैन जैसा बेईमान, गद्दार, राष्ट्रद्रोही, नमकहराम भी हमारे यहाँ रहकर,हमारा ही खाकर, हमारे ही पैसों से पलकर, हमारे ही देवीदेवताओं के बिभत्स चित्र बनाता रहा।और हम मूकदर्शक बनकर ऐसे भयंकर अत्याचार निरंतर सहते रहे,सहते गये।


लगातार ऐसा उत्पीड़न जारी रहा।


स्वाभिमान शून्य लाचार समाज बनाने की कुनीति और कुरितीयों को अपनाकर,समाज तोडऩे का कार्य अनेक सालों तक, निरंतर जारी रहा।


अत्याचारी मुगलों के बाद ,फिरसे अंग्रेजों ने इतनी भयावह निती अपनाई की हमारे धर्म, संस्कृति को जोडने वाले और आदर्शों को स्थापित करनेवाले और सामाजिक सौहार्द का कारण बननेवाले, हमारे अनेक गुरूकुलों पर,जातीव्यवस्था पर ही इतना भयंकर जमकर प्रहार करके,संस्कृति को भयंकर क्षती पहुंचाई।और हमारे आदर्श वादी,सैध्दांतिक समाज को संस्कृति से तोडऩे का अथवा दूर ले जाने का परिणाम कारक षड्यंत्र अपनाया गया।


अत्याचार का ...अगर,

कोई जागृत व्यक्ति विरोध करता था, तो उसके साथ इतनी भयावह निती बनाई जाती थी की,कोई अत्याचार का विरोध करने के लिए ही सामने ना आ जाये।

इसीलिए

भयभीत समाज मूकदर्शक बनकर अनेक सालों तक भयंकर अत्याचार की आग में जलता रहा।


हमारे मंदिर तोडकर हमारे आदर्शों पर,हमारे सिध्दांतों पर ही इतने भयंकर आघात पहुंचाये गये की,हमारी आत्मचेतना ही मर सी गई।


धिरे धिरे सामाजिक चेतना मरती गई,जातीपाती का भयंकर उग्र रूप बढता गया।

और धर्म से,देवी देवताओं से,सिध्दांतों से दूर जानेवाला समाज अज्ञान के अंधकार में भटकता रहा।

अज्ञानता के कारण अनेक प्रकार की धर्म हानी हो गई।और सामाजिक क्षती में बदल गई।


आज हमारे ही लोग धर्म और संस्कृति से इतने दूर चले गये है की,उन सभी को संस्कृति को फिरसे जोडने के लिए व्यापक अभियान चलाने पडेंगे।

व्यापक जनआंदोलन खडे करने पडेंगे।

तेजस्वी कार्यकर्ताओं की फौज निर्माण करके, खडी करके,संस्कृति पुनर्निर्माण के लिए... 

देहात से लेकर हर शहरों तक,हर घर तक ,हर व्यक्ति तक हमें पहुंचना होगा।संस्कृति संवर्धन के लिए व्यापक अभियान चलाना होगा।

हर गांव, गली,मुहल्ला।

अनेक उपक्रमों द्वारा,

जैसे की हर गांव में ,हर दिन,मंदिर में हनुमान चालीसा पठन,मंगल आरतीयाँ,हर सुबह को रामधून द्वारा प्रभातफेरी, जैसे विविधांगी उपक्रमों द्वारा,आत्मचेतना जागृती द्वारा सामाजिक, सामुहिक चेतना जगानी पडेगी।


हर व्यक्ति को " राष्ट्रद्रोहियों " के खिलाफ सजग और जागरूक बनाना पडेगा।


आज की तारीख में हमारे समाज के अनेक व्यक्ति धर्म के प्रति उदासीन है,अज्ञान है।

यह उदासीनता इतनी भयंकर है की,धर्म के प्रती आस्थ ही समाप्त हो गई है,ऐसा लगता है।रोजी रोटी के चक्कर में धर्म और धर्माभिमान ही अनेक व्यक्ति भूल रहे है।


सुबह उठकर काम को जाना, और शाम को काम से वापिस आना।चार मित्रों से चार बातें करना।और खा पीकर सो जाना।बस्स्...

दिनचर्या समाप्त।


ना मंदिर जाने के लिए समय है,ना मंदिर जाने की आस्था है।ना धर्म के प्रति जागरूकता है,और ना ही धर्म के प्रती प्रेम।


अनेक घर,अनेक व्यक्ति आज भी ऐसे दिखाई देते है की,ना तीलक लगाते है,अथवा ना घर में भगवान की कोई मुर्ती लगाते है या तस्वीर।

ना घर पर बडे गर्व के साथ, भगवान का प्रतीक भगवा ध्वजलगाते है।

ना गले में कोई माला होती है।

उल्टा ऐसी बातों में भी हमारे ही समाज के लोगों को शर्म आने लगी है।

लोग हमें हँसेंगे ऐसा डर लगने लगा है,सताने लगा है।


कितना दूर भटक गया समाज संस्कृति से ?

कितना भयंकर सामाजिक अध:पतन हो गया ये ?


धर्म की हानि अज्ञानता के कारण जिस प्रकार से तेजी से हुई है,

उसी प्रकार से लालच और लालची लोगों की वजह से भी सामाजिक जादा हानि हो गई है।

लालची लोग सत्ता और संपत्ति कमाने के होड में सभी सैध्दांतिक सूत्रों को भी तोडमरोड रहे है।

पैसा कमाओ,खाओ - पिओ - ऐश करो...का माहौल भी बनता जा रहा है।

ऐसे लालची लोगों को जागरूक करना बडा मुश्किल काम है।

साम - दाम - दंड - भेद निती से ही ऐसे लालची लोगों कि भ्रमित मती ठिकाने पर आ सकती है।और धर्म हानि टाली जा सकती है।

क्योंकि हमारे ही लोग,हमारे ही धर्म - संस्कृति के बारे में, देवीदेवताओं के बारें में बोलेंगे... तो...?

नरराक्षस और नरपिशाचों को,जो धर्म को तोडऩे के लिए दिनरात मेहनत कर रहे है...उनको ही अनायासे बल,शक्ति तो मिलेगी ही।


और एक महत्वपूर्ण कारण यह भी है की,धर्म के प्रती अनास्था इसीलिए है की,पैसा कमाने के होड में धर्म का कोई विशेष महत्व अथवा स्थान ही नही रहा है।

सारा ध्यान पैसा कमाने में।दिनरात केवल पैसा और पैसा।जीवन भर के लिए यही एकमात्र सुत्र।


चौबीसों घंटे।


धर्म गया...???


अगर कोई व्यक्ति,धर्म के प्रति जागरूक करने को आयेगा, तो..उसको ही उल्टा बोल अथवा उल्टा तत्वज्ञान देते है ऐसे उदासीन लोग।


धर्म हानि का यही भी एक महत्वपूर्ण कारण है...बढती भयंकर उदासीनता।


धर्म हमें पैसा नहीं देगा...यह गलत धारणा भी काफी हानिकारक सिध्द हो रही है।


दूसरी एक महत्वपूर्ण बात यह भी है की,पाश्चात्य संस्कृति का अंधानुकरण भी तेजीसे समाज में बढ रहा है।और इसी कारण हमारे धर्म के प्रति भयंकर उदासीनता बढती जा रही है।


आजादी के पहले तो अनेक आक्रमणकारियों ने देश और धर्म पर अनेक कुठाराघात किये ही किए।

मगर आजादी के बाद भी...


केवल " दो व्यक्तियों " ने शातिर


दिमाग से इतनी भयावह निती अपनाई की,समाज निद्रीस्त भी रहे और समाप्त भी हो।

इतने भयावह षड्यंत्र खेले गये की,...

हमारी संस्कृति ही नामशेष होने की कगार पर खडी कर दी गई इन ठगों ने।

इसमें महत्वपूर्ण भूमिका भी यह रही की,शिक्षा प्रणाली ही संपूर्ण रूप से बदली गई।

और आदर्श सिध्दांतों पर ऐसे जमकर प्रहार किये गये की,बहुसंख्यक समाज भी संस्कृति को ही भूल जाये...।

और ऐसे विरोधाभासी सिध्दांतों को बढावा दिया गया,की गलत व्यक्ति, सिध्दांतों को ही स्विकारा जा सके।

इसी माध्यम से नायकों को खलनायकों के कटघरे में खडा किया गया।और खलनायकों को नायक के रूप में प्रस्थापित किया है।


और हमारा हीन,दीन,लाचार, हतोत्साहित, निद्रीस्त, भयभीत समाज उसको स्विकारता गया।


देश के साथ सदोदित हेराफेरी करनेवाले वह , 

" दो व्यक्ति " 

कौन थे ?

यह संपूर्ण सत्य अब सारा देश धिरेधिरे जानने लगा है।

और समाज जागने भी लगा है।

और अंधकार से हटकर प्रकाश की ओर बढ रहा है।

तेजस्विता की ओर भी बढ रहा है।

नवनिर्माण तथा नवसमाज की ओर तेजीसे आगे बढ रहा है।

संगठित भी हो रहा है।


भविष्य में ऐसे भयंकर कुटिल निती वाले...

" वह ??? दो व्यक्तियों " 

के पुतलों से भी समाज घृणा करेगा, जो देवदूत बनकर बन बैठे थे।


आखिर सत्य तो सत्य ही होता है।जमीन में भी सत्य को अगर दफनाया, तो भी एक दिन जमीन से उपर उठकर आता ही है।और नौटंकीबाजों के असली जहरीले मुखौटे भी सभी का दिखाता है।


समय बडा बलवान होता है।


जान गये ना साथियों ? ( कौन ??? )


कानूनी प्रावधान की वजह से स्पष्टोक्ती नहीं करना चाहता हुं।

और ना ही कोई सामाजिक विवाद खडा करना चाहता हुं।और ना ही सामाजिक सौहार्द खराब करना चाहता हुं।

अभिव्यक्ति स्वातंत्र्य होकर भी विवादित बयान, लिखान करना भी उचित नही होगा।


इसीलिए साँप समाज को दिखे भी,साँप मरे भी और लाठी भी सूरक्षित रहें।

ऐसी शक्तिशाली निती अपनानी होगी।


क्योंकि हमारा केवल एक ही लक्ष्य है।

हमें केवल और केवल जीतना ही है।

षड्यंत्र में फँसना भी नही है।षड्यंत्र कारीयों को बल भी नहीं देना है।


इसीलिए यह शक्तिशाली निती अपनाकर समाज को और समाज मन को हिलाहिलाकर जगाना है।

उनकी चेतना जगानी है।अंतरात्मा जगानी है।


अनेक मार्गों से,अनेक रास्तों से,निद्रीस्त, भयभीत, हतोत्साहित, अज्ञान, लाचार समाज को आत्मबल देकर आगे ले जाना है।


और हम हमारे मकसद में जरूर यशस्वी होकर ही रहेंगे।

क्योंकि ईश्वर भी हमारे साथ है।

सत्य भी हमारे साथ है।

समय भी करवट बदल रहा है।

और समय भी अनुकूल है।


और सबसे महत्वपूर्ण बात भी यह है की...


युगप्रवर्तक...

" सर्वसत्ताधीश..."

का भी हम सभी को 

संपूर्ण आशिर्वाद भी है।

जब से इस युगपुरुष ने...

सत्ता संभाली है...

तबसे..सभी का डर,भय,खौफ लगभग समाप्त हो गया है।


तो डर किस बात का ?

निडर होकर आगे आगे बढना है।


अनेक महात्माओं का,

अनेक राष्ट्र पुरूषों का,

अनेक दिनों का,

हम सभी का...

अधुरा सपना...


हिंदुराष्ट्र निर्माण का,

और अखंड भारत का,

सपना भी अब हम सभी को मिलकर पूरा भी करना है।

और जल्दी ही यह हमारा, हम बहुसंख्यक का सपना पूरा भी होगा...

ऐसे आत्मविश्वास के साथ...


जय जय श्रीराम

हर हर महादेव

हरी ओम्


वंन्दे मातरम्

भारत माता की जय

Comments

Popular posts from this blog

मोदिजी को पत्र ( ४० )

हिंदुराष्ट्र

साप आणी माणूस