हितशत्रु और गुप्त शत्रुओं से सावधान रहना होगा

 हितशत्रु और गुप्त शत्रुओं से हमेशा सावधान रहिए !!!

( लेखांक : - २०५७ )


विनोदकुमार महाजन

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साथीयों,

अगर हमें हर क्षण,हर पल,हर क्षेत्र में अगर तरक्की करनी है तो...एक बात पर सदैव विशेष ध्यान देना ही होगा !

हमारे हितशत्रु, गुप्त शत्रुओं पर निरंतर सुक्ष्म नजर रखनी ही होगी !

जो हमेशा हमारे ही अगल बगल में,अडोस पडोस में गुप्त रूप से छुपे हुए होते है !


क्षेत्र चाहे आध्यात्मिक हो,सामाजिक हो,राजकीय हो,व्यावसायिक हो अथवा अन्य कौनसा भी क्षेत्र हो !

हर क्षेत्र में तुम्हे,

पिडा देनेवाले, यातना देनेवाले, रूलानेवाले,तुमपर जलनेवाले,विनावजह तुम्हें बारबार बदनाम करनेवाले, हमेशा विनावजह हमेशा भयंकर षड्यंत्र करनेवाले,कार्य में निरंतर अनेक प्रकार की बाधाएं डालनेवाले मिलेंगे ही मिलेंगे !

कार्य जितना व्यापक, विस्तृत उतना हितशत्रुओं की,गुप्त शत्रुओं की,जलनेवालों की,विघ्नसंतोषी लोगों की संख्या भी अधिक... इतना पक्का ध्यान रखिए !

ऐसे भयंकर जालीम शत्रुओं को हम हमेशा नजरअंदाज करते है ! मगर ऐसे विनाशकारी लोगों को ,आसुरीक सिध्दातों पर चलनेवालों को कभी भी नजरअंदाज मत किजिए ! बल्की हरपल उनपर सुक्ष्म नजर रखिए ! और हमारे सत्कार्यो में जो निरंतर बाधाएं डालते है,उनको समय समय पर, विविध मार्गों से, यथोचित उत्तर दिजिए !

कभी कभी मौन और संपूर्ण शांति भी कुछ उपद्रवियों को अचूक उत्तर देती है !

अन्यथा ऐसी दुष्टात्माएं अपनी शक्ती गुप्त रूप से निरंतर बढाने में लगे रहते है ! 

और हमें हतोत्साहीत करने का,हमें अपमानित करने का अखंड मौका ढुंडते रहते है !


विघ्न संतोषी लोग !


अतएव सावधान ऐसे लोगों से!!!


जहरीले साँपों से भी भयंकर होते है ऐसे दुष्टात्माएं !


साँप केवल एक बार काटता है,वह भी अगर वजह होगी तभी काटता है ! अन्यथा अपने रास्ते से चुपचाप निकल जाता है !


मगर दुष्ट लोग ?

अपनी जहरीली वाणी से बारबार काटता है ! क्योंकी घोर कलीयुग में दुष्टों के कंठों में ही विस्तृत मात्रा में जहर पडा होता है ! और यह जालीम जहर कभी खत्म भी नही होता है !


विशेषत: संतपुरुष, साधुमहात्मा,महापुरुष ऐसे समाजहितकारी महात्माओं को परेशान करनेवाले तो हर समय,हर युग में तो मिलेंगे ही मिलेंगे !


और ऐसे दुष्टात्माओं का विरोध करने से भी इनकी शक्ति कहीं मात्रा में और बढती है !


साँप तो है मगर दिखता नहीं है !

बडी विचित्र स्थिति होती है ये !

विशेषत: सज्जनों को बारबार ढसनेवाले विषैले सर्प !


इसिलिए हितशत्रुओं से अखंड, चौबिसों घंटे सावधान रहकर ही हमें हर क्षेत्र में आगे बढना होगा !ईश्वरी कार्य निरंतर आगे बढाना होगा !


हमारे हर कार्य में बारीकी से नजर रखने में हमारे हितशत्रु माहिर रहते है !

हम गाफिल हो सकते है,मगर हितशत्रु कभी भी गाफिल नहीं होते है ! बल्कि सदैव सावधान एवं सतर्क रहते है ! मौके की तलाश में !


इसिलिए भगवान श्रीकृष्ण, आचार्य चाणक्य, राजे शिवाजी,बाजीराव पेशवे जैसे महापुरुष, युगपुरुष हमेशा...

गुप्त शत्रुओं की निती का सबसे पहले अभ्यास करते थे !और उसी के अगली चाल को ध्यान में रखकर, उसी के अनुसार अपनी श्रेष्ठ अगली निती बनाते थे !और उसीके अनुसार ही मार्गक्रमण करते थे !

इसीलिए हमेशा यशस्वी होते थे !


सज्जनगड के रामदास स्वामी भी हमें...हमेशा...

" अखंड सावधान ! "

का संदेश देते है !


और ऐसा संदेश देना भी चाहिए !

अन्यथा कब घात होगा और हमारा कब कार्य नाश होगा,इसका कोई भरौसा नही है !

विश्वास के बाद ही भयंकर शब्द घात आता है ! 

विश्वास - घात !

इसिलिए अगर किसी पर ईश्वरी कार्यों के लिए, सामाजिक कार्यों के लिए भरौसा कर रहे है तो....

सबसे पहले उसको हर बार परख लिजिए ! तभी उसपर विश्वास किजिए !


गुरु भी देखो,अपने शिष्य को बारबार, अनेक बार परखते है ! उसकी अनेक परीक्षाएं भी लेते है ! और अगर शिष्य कसौटी पर खरा उतरता है,तभी उसपर कृपा करते है !

चाहे वह दिक्षा कौनसी भी हो !

मंत्र दिक्षा हो,शक्तिपात दिक्षा हो,योगदिक्षा हो,हटयोग हो,कृपादृष्टि हो...

सबसे पहले शिष्य को परखकर ही गुरु दिक्षा देते है !

क्योंकि गलत शिष्य अनेक गलत निर्णय लेकर, सभी को हमेशा मुसिबतों में डाल सकता है !

अथवा शक्तिशाली बनकर सामाजिक उपद्रव मचा सकता है !

इसीलिए परखकर ही गुरूमंत्र दिया जाता है !


( नामस्मरण और गुरूमंत्र दिक्षा यह दोनों संपूर्ण अलग विषय होते है ! 

नामस्मरण कोई भी व्यक्ति कर सकता है !

मगर गुरूमंत्र योग्य व्यक्ति को ही गुरूद्वारा दिया जाता है ! 


खैर, यह एक संपूर्ण स्वतंत्र विषय है ! इसका उल्लेख केवल इसीलिए किया, ताकी कोई विघ्नसंतोषी व्यक्ति, विनावजह का विवाद खडा ना कर सकें )


समाज में हमें ऐसे अनेक व्यक्ति, अनेक उदाहरण देखने को मिलते है की,

गलत व्यक्ति पर,हितशत्रुओं पर, विश्वास करने के कारण संपूर्ण कार्य का नाश हुवा है ! अथवा भयंकर पछतावा हुवा है !

ऐसा ही होता है !

अथवा हितशत्रुओं पर विश्वास करके कार्य आरंभ करते है...और भविष्य में अनेक बार अपने ही गलत निर्णय के कारण,गलत व्यक्तियों पर विश्वास रखने के कारण, अपने ही निर्णयों के कारण ...

पछताना पडता है !

जी हाँ साथीयों !

अनेक बार ऐसा होता है !


गलत व्यक्ति हमेशा कार्य में बाधक होता है ! इसीलिए गलती से भी गलत व्यक्तियों पर भरौसा मत किजिए, उसपर विश्वास मत किजिए !

हर कार्य को सफल बनाने के लिए, योग्यता पूर्ण व्यक्ति को ही चुनना, सभी के लिए परम हितकारी होता है !


अनेक मित्र भी  जान को जान देनेवाले होते है ! सौभाग्य से ऐसे सुस्वभावी मित्र मिलते भी है !मगर अनेक मित्र भी दगाबाज भी हो सकते है !

इसीलिए मित्र भी परखकर ही करना होगा !


अब आते है मूल विषय पर !

अगर हम हिंदुराष्ट्र बनाने की तीव्र इच्छाशक्ति रखते है...

तो इसको पूर्णरूप देने के लिए, कार्य आगे बढाने के लिए,

संपूर्ण विश्वासार्ह सहकारीयों को ही साथ लेना होगा !

विश्वासार्ह व्यक्तियों की शक्तिशाली टीम बनानी होगी !

और सभी को विश्वास में लेकर, एक विस्तृत, व्यापक रणनीति बनाकर हमें सामुहिक तौरपर आगे बढना होगा !

हर पल ,हर दिन !

निरंतर मकसद की ओर बढना होगा !

कार्य सफलता में आनेवाली सभी बाधाएं, विघ्न संतोषी लोगों की रणनीति, और इसकी यशस्वी काट...

इन सभी महत्वपूर्ण विषयों पर मंथन, चिंतन, मनन होकर,

कार्य प्रवण होना होगा !

तभी हर कदम यशस्विता की ओर बढेगा !


एक महत्वपूर्ण बात यह है की,संपूर्ण विश्व पटल पर केवल और केवल हिंदुओं का एक भी देश नही है ...यह बात तो भयंकर क्लेशदायक तो है ही,इससे भी भयंकर क्लेशदायक बात यह है की,यहाँ पर...

बहुसंख्यक हिंदु होकर भी...

उनका... अपना... खुद का...

हिंदुराष्ट्र बनने में अथवा बनाने में...इतनी भयंकर विपदाएं क्यों  आ रही है ???

और निरंतर विपदाओं की स्थिति निर्माण करनेवाला और अपना गुप्त एजेंडा चलाने वाला हमारा...

गुप्त शत्रु कौन है ?

हमारा हितशत्रु कौन है ?

और हमारे ही अतीस्वार्थान्ध लोग,जो सत्ता और संपत्ति के लिए, कुछ भी राष्ट्र द्रोही और राष्ट्र विरोधी कुकर्म करने में भी हिचकिचाते नहीं है,अथवा पिछे हटते नहीं है...यही स्वार्थान्ध लोग हिंदुराष्ट्र बनाने में रोडा अटकाए बैठे है !

कुंडली मारकर !

तो ऐसे पापात्माओं की अंतीम काट भी क्या है ??

और इसकी अंतिम काट क्या हो सकती है ?

जो निरंतर हिंदु राष्ट्र निर्माण में बाधा डाल रहे है ?

इसपर भी चिंतन, मनन होना अत्यावश्यक है !


और ऐसी कौनसी व्यापक रणनीति हमारे पास है जो...

हिंदुराष्ट्र भी निर्माण कर सकें,अखंड भारत भी बना सकें

और भारत को विश्व गुरु भी बना सकें ???

और सभी बाधाओं को दूर भी कर सकें ?

तथा ईश्वरी सिध्दांतों की तथा सत्य की अंतीम जीत भी कर सकें ?


साथीयों,

मेरा प्रश्न आप सभी को है !

और अपेक्षित उत्तर भी आपको ही देना है !


एक बात तो निश्चित है,पक्की है की...

हम सब मिलकर,

हिंदुराष्ट्र बनाकर ही रहेंगे !

अखंड भारत बनाकर ही रहेंगे !

और भारत को विश्व गुरु भी बनाकर ही रहेंगे !!!


इसीलिए तो " हम सभी " धरती पर...

" ईश्वरी इच्छा से " ही

आये है...आप को मेरी यह बात मान्य है ?

तो...???

हमें कौन रोकेगा ?


हमारे भव्य दिव्य उद्देश्यों में,हमारे उद्दीष्ट पूर्ती में हम सभी एक दिन , और जल्दी ही,

जरूर " यशस्वी !!! "

होकर ही रहेंगे !

कार्य सफलता के लिए, सभी मार्गों से,सभी की चेतना निरंतर जगाते रहेंगे !


आखिर जब ईश्वरी इच्छा ही प्रबल रहेगी, तो हमारे रास्ते में बाधाएं उत्पन्न करनेवालों का बंदोबस्त भी ईश्वरी इच्छा से ही होगा !

मगर इसके लिए हमें यथोचित प्रयत्न तो करने होंगे ना ?


श्रीकृष्ण अगर साथ में है भी तो भी...

युध्द आखिर अर्जुन को,पांडवों को और पांडव सेना को ही लडना पडता है ना ?


एक ही ध्यास,

एक ही आस...

हिंदुराष्ट्र हम बनाकर रहेंगे !

रामराज्य हम लाकर रहेंगे !

धरती का स्वर्ग बनाकर रहेंगे !


संकल्प से लेकर,सिध्दियों तक पहुंचने की तीव्र इच्छाशक्ति के सामने असंभव कुछ भी नही है !


हर हर महादेव !

जय जय श्रीराम !

हरी हरी: ओम्


【 चलो रामराज्य की ओर ! 】

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