महापुरूषों के ही नशीब में जहर क्यों ?
महापुरूषों का संघर्ष मय जीवन !!!
हर महापुरुषों का भव्यदिव्य,प्रेरणादायक,यशस्वी,उत्तुंग जीवन सभी को दिखता है।
मगर ऐसे महान पदतक पहुंचने के लिए, उन्हें,
कितना भयंकर कडा संघर्ष करना पडा,अपनों ने ही उन्हें कैसे बारबार रूलाया, तडपाया,हतोत्साहित किया,अपमानित किया यह कोई नही देखता है।
साधारणतः आजतक जितने भी महापुरुष, जननायक, लोकनायक, युगपुरुष हुए है,उन सभी जीवन भयंकर खडतर और आपदाओं से भरा हुवा मिलता है।
भगवान श्रीराम को सौतेली माँ,कैकयी के कारण,बनवास भोगना पडा।
भगवान श्रीकृष्ण को सगा मामा कँस द्वारा ही भयंकर दुखों का सामना करना पडा।
भक्त प्रल्हाद को अपने ही पीता के कारण भयंकर नरकयातनाएं भोगनी पडी।
ध्रुव बाळ को भी सौतेली माँ के कारण भयंकर रोना पडा।
इतना ही नहीं तो,संत ज्ञानेश्वर और उनके भाई बहन...
भयंकर नरकयातनाएं भोग रहे थे,तब उनके सारे रिश्तेदार कहाँ थे ?उन्हे मुसिबतों के क्षणों में आधार देने के लिए, एक भी आगे क्यों नहीं आया ?
संत तुकाराम को सामाजिक उत्पीडन का सामना करना पडा,तब तुकाराम महाराज के सभी रिश्तेदारों ने तुकाराम महाराज को क्यों नही आधार दिया ?
हिंदवी स्वराज्य संस्थापक छत्रपती शिवाजी महाराज को संघर्ष की भयंकर घडी में और विपदाओं में कितने अपनों ने ही साथ दिया, सहयोग किया, आधार दिया ?
आद्य शंकराचार्य को कितने स्वकीयों का सहयोग प्राप्त हुवा ?
क्या हर महापुरूषों के नशीब में ऐसा ही भयंकर जीवन लिखा होता है ?
नियती भी भयंकर कठोर अग्नीपरीक्षाएं,सत्वपरीक्षाएं लेती है ?भयंकर जालिम जहर देती है ?
आखिर ऐसा कौनसा भयंकर प्रारब्ध था,ऐसे महात्माओं का ?
या फिर अनेक जहर के सागर पार किए बगैर...
महानता नहीं मिलती है ?
सोने को ही अग्नीपरीक्षा देनी पडती है ?
जादा तर महापुरूषों के नशीब में अनेक बार,अपनों द्वारा ही भयंकर उपेक्षा, मानहानी, अपमान, प्रताडना लिखा होता है ?
आखिर ऐसा क्यों ???
क्या नियती भी इतनी भयंकर क्रूर होती है...जो सत्य और सत्यवादीयों के ही नशीब में भयंकर जहर देती है ?
आखिर यह भयंकर जहर भी ऐसे दिव्यात्मे हजम भी कैसे करते होंगे ?
रामजाने !!!
हरी ओम्
विनोदकुमार महाजन
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