प्रेम की भाषा

 " कुछ " लोगों को अमृत की नहीं बल्कि जहर की जरूरत होती है !

( लेखांक : - २०६३ )


विनोदकुमार महाजन

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भगवान श्रीकृष्ण के पास अमृत कम था ?

प्रेमामृत भी कम था ?

वह तो खुद ईश्वर था।परमात्मा था।

तो सभी पर दिव्य प्रेम ही करेगा ना ?

भगवान श्रीकृष्ण एक बार बांसुरी बजाएगा तो सभी पशुपक्षी भी मंत्रमुग्ध होते थे।

दिव्य बांसुरी की धून, सभी का चैतन्य जगाती थी।इस दिव्य प्रेमामृत का सभी पशुपक्षी भरभरके अनुभव करते थे।


कँस,दुर्योधन, जरासंध जैसे महाराक्षसों के साथ भी भगवान प्रेम की भाषा करते थे।

मगर ऐसे भयंकर, भयानक अमानवीय राक्षसों को भगवान श्रीकृष्ण की,उसके प्रेम की,उसके अमृत की,उसके प्रेमामृत की कीमत समझती थी ?


बिल्कुल नहीं।


ठीक ऐसे ही सभी देवीदेवताओं के पास भी यह सबकुछ तो था ही।

दिव्य प्रेमामृत।

मगर राक्षसों को इसकी कीमत समझती थी ?

बिल्कुल नहीं।


इसीलिए अनेक बार हाथ में शस्त्र लेकर अनेक देवीदेवताओं को ऐसे भयंकर उन्मादी, उपद्रवी, हाहाकारी, उन्मत्त राक्षसों का संहार ही करना पडा था।नाश ही करना पडा था।


और ऐसे राक्षसों को इसिलए प्रेमामृत की नहीं बल्कि जहर की ही जरूरत होती है।


तो मेरे साथीयों,

आज एक बहुत छोटासा प्रश्न मैं आप सभी को पुंछता हुं।जिसका उत्तर आपको, आपके आत्मा को पुछना है।


" क्या आज भी ऐसे भयंकर, महाभयानक " राक्षस " धरती पर मौजूद है ???

अगर हाँ तो कौन ???

और ऐसे हाहाकारी, उन्मादी, उन्मत्तों को,उपद्रवियों को,दूसरों का जीना हराम करनेवालों को,

सचमुच में हमारे प्रेम की,हमारे प्रेमामृत की,हमारे दिव्य प्रेम की भाषा समझ सकेगी ?


देवीदेवताओं ने भी ऐसे भयंकर उन्मादियों को क्षमा नहीं किया।बल्कि मृत्युदंड देकर सामाजिक उन्माद समाप्त किया...

तो ऐसे भयंकर जहरीले,उन्मादियों को प्रेम की भाषा सचमुच में समझेगी ?


अगर हम सभी तेजस्वी ईश्वर पूत्र है तो...

निश्चित रूप से इसका उत्तर हमें ज्ञात होगा ही।


राक्षसों का संपूर्ण सर्वनाश ही संपूर्ण धरती का हाहाकार मिटा सकता है।राक्षसों का संपूर्ण निर्दालन ही धरती का भयंकर बढता बोझ हल्का कर सकता है।


मगर...?

ऐसे भयावह राक्षसों का निर्दालन आखिर करेगा कौन ?

या फिर कल्कि आने की प्रतिक्षा करनी पडेगी ?


और जबतक संपूर्ण राक्षसों का अंत संपूर्ण पृथ्वी से नहीं होगा,तबतक धरती पर शांति की अपेक्षा करना और रामराज्य की संकल्पना करना, असंभव है।

चाहे कितना भी कानूनी जोर लगाओ।


समझे कुछ ???


हरी ओम्

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