नामजप का महत्व
नामजप किजिए जीवन को कृतार्थ किजिए।
🚩नामसंकीर्तन साधना की विशेषता*
इसमें सभी वर्णों का अधिकार है । इस महामंत्र की दीक्षा में मुहूर्त के विचार की आवश्यकता नहीं है । इसके जप में बाह्यपूजा भी अनिवार्य नहीं है । _केवल उच्चारण करने मात्र से यह सम्पूर्ण फल देता है ।_ इस मंत्र के अनुष्ठान में देश-काल का कोई प्रतिबंध नहीं है । जूठे मुंह अथवा किसी भी प्रकार की अशुद्ध अवस्था में भी नामजप करने का निषेध नहीं है । श्रीमद्भागवत महापुराण का तो यहां तक कहना है कि जप-तप एवं पूजा-पाठ की त्रुटियां श्रीहरि के नामसंकीर्तन से ठीक और परिपूर्ण हो जाती हैं ।
*👉नामसंकीर्तनयोग का महत्त्व : मनुस्मृति में कहा गया है –*
_ये पाकयज्ञाश्चत्वारो विधियज्ञसमन्विता: ।_
_सर्वे ते जपयज्ञस्य कलां नार्हन्तिषोडशीम् ॥ (मनुस्मृति २.८६)_
*भावार्थ* : अर्थात गृहस्थ द्वारा जो चार महायज्ञ (वैश्वेदेव, बलिकर्म, नित्य श्राद्ध एवं अतिथि भोजन) प्रतिदिन किए जाते हैं, जपयज्ञ का फल इन सब कृतियों के फल के कई गुना होता है ।
🔸नामजप में जप शब्द की व्युत्पत्ति ‘ज’ जोड(+)‘प’ से हुई है । जप शब्द का अर्थ है ‘जकारो जन्म विच्छेदकः पकारो पाप नाशक:’ अर्थात जो हमें जन्म और मृत्यु के चक्र से निकाल कर हमारे पापों का नाश करता है, उसे जप कहते हैं ।
*🔸साधना की अखंडता नामजप से ही संभव है :* यदि हमें उस अनंत परमेश्वर से एकरूप होना है, तो हमें अखंड साधना करनी होगी और ज्ञानयोग के अनुसार ग्रंथों का अखंड पठन करना अथवा ध्यानयोग के अनुसार अखंड ध्यान लगाना होगा । त्राटक तथा प्राणायाम करना, भक्तियोग के अनुसार अखंड भजन करना, पूजा करना, तीर्थ करना अथवा कीर्तन प्रवचन सुनना बताया गया है; परंतु यह भी २४ घंटे करना संभव नहीं । साथ ही गृहस्थ के लिए घर-द्वार, बच्चे, नौकरी आदि संभालते हुए साधना में अखंडता बनाए रखने का सबसे अच्छा साधन है नामजप करना ।
🔸कुछ व्यक्ति को यह भ्रांति होती है कि आसन और प्राणायाम के माध्यम से हम आध्यात्मिक प्रगति कर सकते हैं । अपने आप में यह एक गलत धारणा है । आसन और प्राणायाम हमारी आध्यात्मिक प्रगति करवाने की क्षमता नहीं रखते हैं । वे मात्र हमारी स्थूल देह एवं प्राण देह की कुछ सीमा तक शुद्धि कर सकते हैं । इन देहों की शुद्धि अन्य साधना मार्ग से भी संभव है । अतः आध्यात्मिक प्रगति में आसन एवं प्राणायाम को विशेष महत्व नहीं दिया गया है ।
🔸किसी भी योगमार्ग से साधना करने पर स्थूल देह एवं प्राण देह की अधिकाधिक शुद्धि २०% से ३०% तक ही होती है और स्वर्ग एवं उसके आगे के लोक अर्थात महा, जन, तप या सत्य लोक के आध्यात्मिक प्रवास हेतु सभी देहों की पूर्ण शुद्धि परम आवश्यक है और नामजप से हमारी चारों देह अर्थात स्थूल देह, मनो देह अर्थात मन, कारण देह अर्थात बुद्धि तथा महाकारण देह अर्थात अहं की पूर्ण शुद्धि संभव है । नामसंकीर्तन योग का यही महत्व है ।
*👉भगवान श्री कृष्ण ने श्रीमदभगवदगीता में नामजप के महत्त्व के विषय में कहा है,* ‘ _यज्ञानां जपयज्ञोऽस्मि_ ।’ अर्थात कलियुग में सर्व यज्ञों में जपयज्ञ मैं हूं । इससे कलियुग में नामजप का महत्त्व ध्यान में आता है ।
संकलन : - विनोदकुमार महाजन
संदर्भ : - सनातन संस्कृती
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