सद्गुरु चरण चाहिए या राजऐश्वर्य चाहिए ???

 *सद्गुरू चरण चाहिए...* 

 *या राजऐश्वर्य ....???* 

------------------------------- 

भाईयों,

गुरू तत्त्व को शब्दों में बांधना असंभव है।

अमर्याद व्याप्ती, श्रेष्ठत्व, महानता,उदारता,वात्सल्य, करूणा,दया,प्रेम,ममता,

कृपादृष्टि, क्षमाशिलता ऐसे अनेक ईश्वरी गुणसंपन्नता को शब्दों में कौन और कैसे बांध सकेगा ?

फिर भी एक छोटासा प्रयास है यह मेरा।

गुरूतत्व क्या है इसपर थोडासा विवेचन करता हुं।


और मेरे लेख के बाद आखिर में प.पू.लक्ष्मण बालयोगीजी के ने सगुरू के बारे में दिए हुए विचार देता हुं।


तो सगुरु कैसे होते है ?

सभी देवताओं में श्रेष्ठ तथा सभी देवताओं की भी प्राप्ति कर देने वाले,ब्रम्हज्ञान देनेवाले,अनेक सिध्दियाँ देनेवाले और नर का नारायण बनाने वाले सद्गुरु होते है।


सद्गुरु की प्राप्ति आसान नहीं है।पिछले जन्म के हमारे अच्छे कर्म तथा पुण्यसंचय से ही सद्गुरु की प्राप्ति होती है।


और गुरु भी परीक्षा में पास होनेपर ही शिष्यों पर कृपा करते है,वरदहस्त देते है।


मुझे अगर किसीने पुछा की, 

एक तरफ तुम्हारे सद्गुरु तथा दुसरे तरह राजऐश्वर्य रखा जायेगा, तो...

तुम दोनों में से किस को चुनेंगे ?

अर्थात उत्तर साफ है,

विना समय गँवाए मैं राजऐश्वर्य का त्याग करके,

केवल और केवल मेरे सद्गुरु को ही चुनूंगा।


अब इससे भी आगे अगर कोई पुछेगा की,

सद्गुरु के साथ अगर भयंकर दुखदर्द, पिडा,यातना,दारीद्र्य,नरकवास रखा जाए और दूसरी तरफ अगर सभी देवीदेवता और संपूर्ण सुख रखा जाए,

और तुम्हें दोनों में से एक चुनना है तो...

किसे चुनेंगे ?


उत्तर अर्थात बेशक मेरे सद्गुरु को ही चुनूंगा।चाहे कितना भी भयंकर दुखदर्द, पिडा,यातना, नरकवास भी भोगना पडे तो भी चलेगा,

मगर मैं मेरे सद्गुरु के पवित्र चरण कमल कभी भी नही छोडूंगा।चाहे इसके लिए मुझे कितना भी जहर हजम भी करना पडेगा तो भी चलेगा।


मगर मैं हरगिज मेरे सद्गुरु के चरणकमल कभी भी नही छोडूंगा।


ऐसा क्यों ?

क्योंकि, धन,वैभव तो दो दिन का खेल है।मगर सद्गुरु चरण तो जन्म जन्मांतर भी हमारे साथ ही होते है।इसीलिए सद्गुरु चरणों के सामने सभी सुख हो या दुख य:किंचित ही होते है।

धन,राजऐश्वर्य का संबंध तो भौतिक दुनिया से है।मगर सद्गुरु का रिश्ता तो आत्मा से होता है।

और गुरु शिष्य का आत्मा जब एकरूप हो जाता है,

वही मोक्ष है,वही संजीवन समाधी है और यही मानवदेह का सार्थक भी है।


तो ऐसे दिव्य स्वर्गीय सुख के सामने, धन - वैभव अथवा सुख - दुख क्या चिज है।


इसके लिए आत्मानुभूति अथवा खुद के अनुभव ही महत्वपूर्ण होते है।इसीलिए यह विषय शब्दों से परे है।और नाही शब्दों में बांध सकने का है।


मेरे दादाजी, मेरे आण्णा ही मेरे सद्गुरु है।सारी दुनिया अथवा प्रत्यक्ष स्वर्ग भी मेरे सद्गुरु चरणों के सामने य:कश्चित है।


उन्होंने मुझे जो प्रेम दिया वह शब्दों में कैसे व्यक्त कर सकता हुं।उनका पंचमहाभूतों का देह हयात होनेपर भी,और उनके देहत्यागने के बाद भी मुझे सदैव दिव्य अनुभुतीयाँ मिलती रही, इसको मैं कैसे वर्णीत कर सकता हुं।देह त्यागने के बाद भी उन्होंने मुझे गायत्री मंत्र दिया।और सरपर हाथ रखकर, गुरु दत्तात्रेय के साथ दर्शन देकर,

मुझे...

तेरा विश्व कार्य आरंभ हो गया है,

ऐसा आशिर्वाद भी दिया।


गुरु मंत्र मिलने के बाद मैंने चौबीस साल खडतर तपस्या की और सद्गुरु कृपा से अनेक देवी देवताओं के आशीर्वाद, सिध्द पुरूषों के वरदहस्त प्राप्त होने की दिव्य अनुभुतीयाँ मिलती रही।

यह विषय स्वतंत्र लेख का है,इसीलिए इसी विषय को स्वल्पविराम देता हुं।


मेरे सद्गुरु आण्णा ने देहत्याग करने से पहले ही मुझे बताया था कि,

अब मैं जा रहा हुं।तुझे यह दुख सहा नही जायेगा।क्योंकि तेरा कलेजा हिरण जैसा है।

फिर भी तु मेरे जाने के बाद,

सिनेपर पत्थर रखकर यह दुख को सह लेना।


उनके देहावसान को सत्ताइस साल से जादा समय हो गया है,मगर उनकी याद में मैं हरदिन आज भी मेरे अश्रुओं को नही रोक सकता हुं।

उन्होंने जो प्रेम दिया इसका वर्णन कैसे कर सकता हुं ?


सारी दुनिया, संपूर्ण विश्व, संपूर्ण सुखऐश्वर्य भी इस दिव्य अनुभूति के सामने शून्य है।मेरा देह तो है,मगर मेरे शरीर से मेरा आत्मा ही चला गया।


सद्गुरु प्राप्ति अथवा ईश्वर प्राप्ति के लिए संपूर्ण समर्पण, अहंकार शून्यता, खुदका अस्तित्व ही भूल जाना,छोटे बच्चे जैसा निष्पाप, निर्वाज्य मन ही होना चाहिए।

मेरा तेरा जब आरंभ हो जाता है तो...

वह व्यक्ति ईश्वरी सिध्दांतों से कोसों दूर चला जाता है।


रामदास स्वामी - कल्याण स्वामी,

राम - हनुमान,

कृष्ण - अर्जुन

ऐसे अनेक उदाहरण हमारे संस्कृति में दिखाई देते है,जिसके देह दो अलग अलग दिखते है,मगर आत्मशक्ति से दोनों पवित्र आत्माएं एकरूप हो जाती है।


हिंदु धर्म संस्कृति में पती पत्नी का रिश्ता भी इतना पवित्र और एक दुसरे के प्रति समर्पित होना जरूरी है, अत्यावश्यक है।केवल तन एक होने से एकरूपता नही आती है तो संपूर्ण समर्पित भाव से मन और धन से संपूर्ण समर्पण ही दोनों को उच्च ईश्वरी सिध्दांतों की ओर ले जाता है।

हरी ओम्

---------------------------


 *विनोदकुमार महाजन* 


इस लेख के आगे प.पू.लक्ष्मण बालयोगी जी ने सद्गुरु के बारे में दिये हुए विचार पोष्ट कर रहा हुं।


🚩सीताराम

🚩जय वीर हनुमान -------------------------------------------

*⚛️सभी मन्त्रों में 'गुरु मंत्र' सर्वश्रेष्ठ मंत्र है, सभी साधनाओं में 'गुरु साधना' अद्वितीय है और गुरु ही सभी देवताओं के सिरमौर हैं| वे इस समस्त ब्रह्माण्ड को गतिशील रखने वाली आदि शक्ति हैं और कुछ शब्दों में कहा जाय, तो वे - 'साकार ब्रह्म' हैं|*

*🔱'भगवान् शिव के अनुसार सभी देवी-देवताओं, पवित्र नदियां एवं तीर्थ गुरु के दक्षिण चरण के अंगुष्ठ में स्थित हैं, वे ही अध्यात्म के  आदि , मध्य एवं अंत है, वे ही निर्माण, पालन, संहार एवं दर्शन, योग, तंत्र-मंत्र आदि के स्त्रोत्र हैं| वे सभी प्रकार की उपमाओं से परे हैं... इसीलिए यदि कोई पूर्णता प्राप्त करने का इच्छुक है, यदि कोई इमानदारी से  'दिव्य बोध' प्राप्त करने की शरण ग्रहण कर लेनी चाहिए और उनकी साधना एवं मंत्र को जीवन में उतारने की चेष्टा करनी चाहिए|'*


*🔅'गुरु मंत्र' शब्दों का समूह मात्र न होकर समस्त ब्रह्माण्ड के विभिन्न आयों से युक्त उसका मूल तत्व होता है| अतः गुरु साधना में प्रवृत्त होने से पहले यह उपयुक्त होगा, कि हम गुरु मंत्र का बाह्य और गुह्य दोनों ही अर्थ भली प्रकार से समझ लें।*

""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""                                        *🛕धर्म एवं संस्कृति संरक्षा-सुरक्षा प्रकल्प भारत!!


सद्गुरु के परमपवित्र चरणकमलों पर समर्पित।

हरी ओम्

🕉🕉🕉🚩

Comments

Popular posts from this blog

मोदिजी को पत्र ( ४० )

हिंदुराष्ट्र

साप आणी माणूस