धर्म युध्द और बैराग्य

 धर्मयुद्ध और बैराग्य !!!

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जब बैराग्य प्राप्त होता है तब आत्मशुध्दी होती है,और आत्मज्ञान( आत्मा-परमात्मा का ज्ञान) होता है !इसी प्रकार से वह पवित्र आत्मा का आत्मोध्दार होता है,और संन्यस्त तथा स्थितप्रज्ञ होकर,भगवा वस्त्र जो विरक्ती का प्रतीक है,पहनकर,मनुष्य वस्ती से दूर,एकांत में जाकर..जैसे हिमालय.. अपना जीवन ईश्वरी चिंतन में लगाता है।

भगवान की अगाध माया तथा लिला समझकर,समाज का भला बुरा सबकुछ ईश्वर पर छोडकर,निश्चिंत हो जाता है।समाजोध्दार की चिंता, उसे नही सताती है।


और कुछ महात्माएं ऐसे भी होते है की,आत्मोध्दार होकर भी,समाजोध्दार, राष्ट्रोध्दार तथा विश्वोध्दार के लिए समाज में खूद को झौंक देते है।

जब धर्म की हानी भयंकर होती है,या फिर असुरी शक्तियों द्वारा धर्म को समाप्त करने की कुनिती बनाई जाती है,

तब ऐसे महात्मा स्थितप्रज्ञ होकर भी,धर्म की दशा देखकर बेचैन हो जाते है,उनकी आत्मा भी तडपती है..।

और अंदर से उस दिव्यात्मा की आत्मा धिक्कारती रहती है की,

"हे भगवान्,ऐसी भयंकर परिस्थिती में मैं कुछ भी नही कर रहा हुं,जो मुझे करना है।"

कभी कभी समय ही इतना कठीण एवं कठोर होता है की,धर्मयुद्ध के सिवाय रास्ता ही नही बचता है।

और कभी तो समय और भी भयंकर होता है की,धर्मयुद्ध केवल शस्त्रों से या अस्त्रों से भी नही लड सकते।

और तब...

वैचारिक युध्द शुरू हो जाता है।जैसे की आज समाज में विविध माध्यमों से हो रहा है।

इसमें समाज का वैचारिक मंथन किया जाता है।कभी आक्रमक विचारों द्वारा, कभी विचित्र भाषाशैली द्वारा।

मरे हुए समाज को जगाने के लिए उनकी आत्मा जगानी पडती है।और यह कार्य भयंकर कठीण होता है।

विविध प्रयोगों से,चित्रविचित्र तरिकों से ,विचित्र हावभावों से,विविध प्रकार के पोशाख पहने के,

कार्य को सफल बनाने की निती बनानी होती है।कोई नाम भी चाहे कौनसा भी धारण करें,यह भी बात महत्वपूर्ण नही है।

सफलता की बात महत्वपूर्ण होती है।

कभी भगवा रंग,कभी निला पिला,हरा लाल भी स्विकारना पडता है।क्योंकी सब रंग तो भगवान ने ही बनाये है,और सब रंग उसिके ही है।

"नानानाटक सुत्रधारिया,"ऐसी अपरंपरापार लिला उसी की है।

मैं एक छोटासा जीव,साधारण सा मनुष्य उसकी अगाध लिला का वर्णन क्या करूं ?


धर्मराज्य की संकल्पना आसान है..

मगर स्थापना ?

आसान है ? 

वह भी भयंकर घोर कलियुग में और हाहाकार भरे हैवानियत के,क्रुर असुरी शक्तीयों के काल में ?

भगवान भी स्तिमित होगा ऐसे भयंकर ही नही अती भयंकर कारनामें कर रहे है ये राक्षस।

तो इन भयंकर उपद्रवी शक्तीयों की हार,तथा "सत्य",की जीत के लिए...

भयंकर शक्तिशाली, जबरदस्त, सामर्थ्यसंपन्न और यशस्वी बनाने वाली निती तो बनानी ही होगी,और उसी दिशा से मार्गक्रमण भी करना होगा।और जीत भी हासील करनी होगी।

इस कार्य के लिए किसिने कौनसा चोला पहना है,कौनसा रंग धारण किया है,कौनसा रूप लिया है,कौनसा भौतिक नाम धारण किया है,कितना हावभाव कर रहा है,कौनसी 

"भाषा"

का प्रयोग किया है,यह बात महत्वपूर्ण नही है..।

बल्की..

इस कार्य के लिए..

"कौन कितना पानी में है",

यह देखना भी जरूरी है।

कौन किस प्रकार का विडिओ बनाता है,लेख लिखता है,किताबें लिखता है,फिल्में निकालता है,

किसने कौनसा रूप धारण किया है,

यह बात महत्वपुर्ण नही है।

उसके अंदर की गहराई कितनी है,समाज में वह किस प्रकार से और गती से कार्य को बढा रहा है,मरे हुए तथा निद्रीस्त समाज में जागृती की लहर किस गती से वह ला रहा है,इसिपर सभी निर्भर है।


संपूर्ण पृथ्वी पर हैवानियत की ताकतें वायुगती से बढ रही है।

जिसकी अतिंद्रिय शक्ती जागृत है उसको यह नजारा..

घर बैठके,आँखें बंद करके भी दिखाई देगा।


और यही हैवानियत को रोकना होगा,पृथ्वी को बचाना होगा,

तो...उससे भी अनेक गुना गती से कार्य करना होगा।बढाना होगा।

विविध माध्यमों से,विविध प्रकारों से समाज को जगाना होगा।टीवी, अखबार, किताबें,फिल्में,अभिनय, गायन..सोशल मिडिया,और भी अनेक प्रभावी माध्यम।

नही तो...?

विनाश होगा,

संस्कृति तबाह की जाएगी,मंदीर गिराए जायेंगे।

जैसे की..???

पाकिस्तान...

और जैसे अनेक प्रदेश..


जो गहराई से यह लेख पढ रहा है,आपकी अंतरात्मा को पूछो...

समाज का चैतन्य...

नही जगेगा तो...?

बिना खड्ग बिना ढाल का यह,

वैचारिक युद्ध है।

जो जीतना अनिवार्य भी है।


(और..

हम...

सभी...

यह वैचारिक युद्ध...

जीतनेवाले ही है।)


( टीप :- मैंने यूट्यूब पर इसी विषय पर एक विडिओ दिया था...

नरमदा और तेलंगना का,

तो उस लेख के बारे में,मेरे अनेक मित्रों में नाराजी और गलतफहमी जो चल रही थी,

उसी को दूर करने का,

यह लेख द्वारा छोटासा प्रयास।

पूरा पढने के लिए धन्यवाद)

छोटा मूंह,बडी बात कह दी।कुछ गलत लिखा है,ऐसा लगता है तो ...हो सके तो क्षमा भी करना।

क्योंकि,

धर्मयुद्ध में सब क्षम्य होता है।


हरी ओम।

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-- विनोदकुमार महाजन।

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