घुसपैठीयों को बाहर निकालो

 *साथीयों,* 

 *सावधान हो जाईये,* 

 *घुसपैठीयों को बाहर निकालने* *तक सभी चुनाव* *रोकिए।* 

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 *साथीयों,* 

यह लेख मैं अत्यंत गहराई से लिख रहा हुं।इसपर मनन,चिंतन करना अत्यावश्यक है।


आशा करता हुं की,

मेरे अनेक मित्र मोदिजी,योगीजी,अमीत शाहजी के नजदिकी है।वह यह मेरा लेख उनतक जरुर पहुंचायेंगे।


और विशेष बात यह है की,

एक अत्यंत जागृत तथा आध्यात्मिक, आंतरराष्ट्रीय सुप्रसिद्ध व्यक्तित्व, जिनका नाम मैं कुछ उद्देश्यों से नही लिख रहा हुं,

जिन्होंने मुझे एक व्हाट्सएप ग्रुपपर जोडा है।जिसमें अनेक सांसद,विधायक, मंत्रिगण, अनेक व्हिआयपी सदस्यों की उपस्थिति है।


कहने का तात्पर्य यह है की,

किसी भी हालत में यह लेख मोदिजी, योगीजी, अमित शाहजी तक पहुंचाया जायेगा, ऐशी आशा करता हुं।


आपको याद होगा,

पश्चिम बंगाल चुनाव में

 *खेला होबे का* खेला और शतरंज का खेल कितनी गहराई से खेला गया था।

नब्बे प्रतिशत अनुमान यह थे की *बिजेपी सौ प्रतिशत जितेगी* ही जितेगी।


मगर क्या हुवा ?

 *खेला होबे।* 

मतलब अनेक रोहिंग्या, बांग्ला, पाकिस्तान घुसपैठियों ने पूरा चित्र ही पलट दिया।


इसिलए अब आगे के चुनावों में बेपर्वाई भयंकर मेहंगी भी पड सकती है।जमीन के निचे से भयंकर षड्यंत्र रचा या खेला जा सकता है।


सबसे महत्वपूर्ण बात यह है की देश के हर कोने में रोहिंग्या, बांग्ला, पाकिस्तानी घुसपैठिए घुसने की संभावना नकारी नही जा सकती है।

उनका आय.डी.राशन कार्ड, आधार, इलेक्शन मतदार सुची इ. में पहले से ही तय हो चुके हो सकते है।

जो भावी इलेक्शन का रिजल्ट बदल सकने की *अत्यंत संभावना है।* 


जिस प्रकार से सभी राष्ट्र प्रेमियों *को अंधेरे में रखकर* 

खेला होबे

हुवा ...


ठीक इसी प्रकार से आगे भी होने की संभावना कोई भी नकार नही सकता है।


अब आगे भी इसको भयंकर गती मिलने की संभावना नकारी नही जा सकती है।


यह मुद्दा अनेक राष्ट्र वादी टिवी चैनलों द्वारा तुरंत उठाना जरूरी है।औऔर ठोस निर्णय होनेतक तुफानी चर्चा करने की जरूरत है।


नही तो मोदिजी कितना भी भयंकर जोशपूर्ण भाषण देंगे,विकास करेंगे, 

उसका प्रचार - प्रसार करेंगे


तो भी

अगर खेला होबे की *संभावना होगी तो...* 

सत्य कैसे जितेगा ??? लोकतंत्र कैसे जितेगा ???


 *यह तो लोकतंत्र की ही हत्या है।* 


जो आजादी मिलने के बाद भी अनेक सालों तक निरंतर होती आ रही है।


अतएव सभी राष्ट्र प्रेमी साथीयों,

गलतफहमी में मत रहिये।

 *यहाँ कुछ भी हो सकता है* और इसकी संभावना भी नकारी नहीं जा सकती है।


इसीलिए तुरंत कृती का यह विषय है।

एक तो सुप्रीम कोर्ट में इसके लिए याचिका दायर होनी जरूरी है।अथवा केंद्र सरकार खुद हस्तक्षेप करके,इसपर निर्णय ले सकती है।


 *सावधान, सावधान, सावधान।* 


इसीलिए,

जब तक रोहिंग्या, बांग्ला, पाकिस्तान घुसपैठियों को देश से बाहर नही निकाला जा सकता है,तबतक देश के सभी चुनाव रद्द करना अत्यंत आवश्यक है।


झूटा आत्मविश्वास अनेक बार नाकामयाबी भी दिला सकता है।

 *इतिहास साक्षी है।* 


इसीलिए अब एक ही नारा,


 *जबतक घुसपैठिए देश से बाहर* *नहीं निकाले जायेंगे,* *तबतक चुनाव नही होंगे।* 


एक बार नही सौ बार,एक लाख बार सोचिए।और गहराई से सोचने पर ही निर्णय लेना जरूरी है।


जबतक लोकतंत्र का गला घोटने वाली विकृत पाकिस्तानी शक्तियाँ कार्यरत रहेगी,


 *तबतक....* 


नाही लोकतंत्र को अर्थ रहेगा।

और नाही सबका साथ,सबका विकास और सबका विश्वास होगा।

और नाही देश प्रगती के रास्ते से आगे बढेगा।


कुछ राष्ट्रद्रोही शक्तियों ने देश के  विकास में ऐसी बाधाएं बनाई है,जिसे निपटाना भयंकर कष्ट दायक, क्लिष्टता दायक काम बन गया है।


इसिलए अब कठोर होकर ही निर्णय लेने पडेंगे।

 *नही तो भयंकर पछताना पडेगा।* 


अब ईश्वरी सिध्दांतों पर चलने वाला,मगर कठोर निर्णय लेने वाला,क्रूर शासक ही चलेगा।तभी देश का संपूर्ण अराजक समाप्त होकर,

यह देश फिरसे सुजलाम सुफलाम बनकर,

 *सोने की चिडिय़ा वाला संपन्न* भारत देश बनेगा।

और जब हर एक व्यक्ति संपन्न बनेगा और हर एक का सुसंस्कृत पण जाग उठेगा,


 *तो...* 


उसे नाही *बैसाखियों* की जरूरत लगेगी।

और नाही 

 *माँगने वाला* समाज निर्माण होगा।


देश का हर एक व्यक्ति अगर आत्मनिर्भर बनेगा तो,

माँगने वाले नही,


 *देनेवाले* 


लाखों हाथ तयार होंगे।


मगर इसके लिए आज सख्त तथा कठोर निर्णय लेने की सख्त जरूरत है।और अंतिम सत्य यह भी है की,


 *तभी और तभी* 


देश सुधर सकता है।


नही तो...???

इस देश में नंगानाच तो सदियों से चलता आया है।और जबतक नंगानाच नही रोका जा सकता,

तबतक विकास कार्यों में बाधाएं आती रहेगी।या जानबूझकर बाधाएं निर्माण की जायेगी।


अथएव,

 *सावधान साथीयों।* 

अंधेरा घना है।

सुरज उगने से पहले ही कुछ कठोर निर्णय लेने जरूरी है।


अन्यथा ...???

 *उष:काल होता होता,* 

 *काळरात्र जाहली।* 


मेरे अनेक लेखों में मैंने आजतक जैसा जैसा लिखा है,वैसा ही *होता आया है।* 


क्योंकी,

मुझे भविष्य देखने की आदत सी हो गई है।


और अनेक बार जो देखता हुं,लिखता हुं,

ऐसा ही होता है।


मेरे पिछले अनेक लेख देखिए।


भविष्य में पछताना ना पडे

इसिलिए साथीयों,


आज,अभी,इसी वक्त सावधान हो जाईये।


सभी को हिलाहिलाकर जगाना,

 *यह बचपन से लेकर आजतक* की आदत है मेरी।


सभी का कल्याण यही एकमेव इसका उद्देश है।


 *एक एक कदम महत्वपूर्ण है।* 

आगे भगवान की इच्छा।


 *हरी ओम्* 

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 *विनोदकुमार महाजन*

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