कट्टर हिदुत्ववादी योद्धे

 *कट्टर हिंदुत्ववादी* *योध्दे* 


लिखना,बोलना और लडने के लिए कट्टर लोग ही चाहिए।और कट्टर बहुत कम होते है।और कट्टर योध्दे युध्द में जीतते है तो... राष्ट्र सुरक्षित रहता है।


ऐसे कट्टर हिंदुत्ववादी योध्दे

खुद की,परिवार की,आर्थिक समस्याओं की पर्वा किए बगैर,परिणामों की चिंता किए बिना सदैव लडते ही रहते है।

नितदिन,निरंतर।

आर्थिक समस्याओं से चारों तरफ से घिरकर भी,अनेक समस्याओं का सामना करते करते,समाज हित,राष्ट्र हित के लिए, देव,धर्म, देश के लिए, सत्य की अंतिम जीत के लिए,

सिध्दांतों के लिए मर मिटने के लिए भी हमेशा तैयार रहते है।


मगर योध्दाओं का मनोबल बढाने के लिए,उनका आत्मसन्मान बढाने के लिए, उनकी सहायता करने के लिए बहुत कम लोग आगे आते है।ना के बराबर।

और पिडा देनेवाले ही जादा।


योध्दाओं की शक्ती बढाने के लिए बहुत कम लोग आते है।सामाजिक विचित्र समीकरण भी अनेक बार ऐसे योध्दाओं को अनेक मुसिबतों में डालते है।

ऐसे भयंकर समय में केवल ईश्वर ही रखवाला होता है।


अपनों के लिए लडते है,दिनरात एक करते है,और जिनके लिए लडते है,वही समाज पिडा,नरकयातना देता है ,रूलाता है,पंख काटता है तो...

इससे भयंकर दुर्देव क्या हो सकता है ?


ना व्यावसाय,ना नोकरी और नाही किसीका सहयोग।उल्टा सामुहिक - सामाजिक उपेक्षा, अवहेलना, अपमान का जहर हजम करते करते आगे बढना तो भयंकर अग्निदिव्य।


स्वकियों के कल्याण के लिए लडते है और स्वकीय ही उन्हे सदैव रूलाते है...उदाहरण अनेक महापुरूषों के साथ ऐसा ही किया है...समाज ने भी और स्वकियों ने भी।

फिर भी हमारे अपने समाज के अखंड कल्याण के लिए ऐसे योध्दे लडते ही रहते है।

नितदिन, निरंतर, बिना थकेहारे।


चाहे मंजिल मिले या कांटे...

हरी ओम्


 *विनोदकुमार महाजन*

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