विश्वासघाती

 विश्वासघाती शत्रु ,विश्वासघात से ही मारा जाता है !!

✍️ २२६३


विनोदकुमार महाजन


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मेरे एक परम मित्र ,प्रखर राष्ट्रप्रेमी , रिटायर्ड फौजी !

उत्तराखंड से , दिवानसिंगजी बीष्ट !

उनके रग रग में राष्ट्रप्रेम ,कूटकूटकर भरा है !


कल के कर्नाटक के चुनाव नतीजों से , संपूर्ण देश के और विदेश के भी प्रखर राष्ट्राभिमानी भयंकर दुखी हुए है ! मैं भी !

और मेरे मित्र दिवानसिंगजी भी !


उन्होंने मुझे लिखा है ,

" मगरमच्छ अब संपूर्ण राष्ट्रप्रेमियों को गहरे पाणी में ले गया है ! बचने का कोई रास्ता नहीं है ! मगर एक हाथी पाणी के बाहर खडा है ! 

" वह है मिलीट्री शासन!! "

यही हाथी अब देश को बचा सकता है ! मगरमच्छ के चंगुल से हमें सहीसलामत बाहर निकाल सकता है ! "


कितना सुंदर उदाहरण है यह !


सत्यावलंबीयों को ,ईश्वरप्रेमीयों को ,मानवतावादीयों को , प्रखर राष्ट्रप्रेमियों को ,सत्य को और सत्य सनातन को , आज चारों तरफ से , दुष्ट ,क्रूर , हिंसक ,आक्रमणकारी ,

अत्याचारी मगरमच्छ ने हर जगहों पर , छल - बल - कपट से घेरकर रखा है !

जिसमें हमारे ही विरोधी हमारे भी है और पराये भी ! चारों तरफ से पाणी है ! बाहर निकलने का , बचने का कोई भी रास्ता बचा नहीं है !


मगर ऐसा नहीं है साथियों !

हमारी आदर्श देवता है 

भगवान श्रीकृष्ण !

और हमारा आदर्श धर्म ग्रंथ है

भगवत् गीता !

जो महाभारत के भयंकर समय से लेकर ,आजतक के अती भयावह समय तक ,बचाने के सभी रास्ते बताते, सिखाते है !


फिर समय कितना भी भयानक ही क्यों न हो ?


सौ कौरव और पाँच पांडव !!

कौरवों की सेना भी जादा और पाँडवों की कम !


फिर भी सत्य जीत गया !

क्यों ? क्योंकि सत्य के पिछे प्रत्यक्ष परमात्मा खडा था !

श्रीकृष्ण परमात्मा !!

अहोरात्र !

साम ,दाम ,दंड ,भेद निती के साथ !

जैसे को तैसा , के निती के साथ !

छल - बल - कपट निती के साथ !


उसने स्पष्ट कहा है की,

" विश्वासघाती शत्रूओं को विश्वासघात से ही मारा 

जाता है ! "

क्योंकि जो प्रेम की , सहिष्णुता की भाषा नहीं समझ सकता है, उसे दया ,क्षमा दिखाने से क्या फायदा ?

वह शत्रु तो हमारा नाश ही करेगा ! हमारा संहार ही करेगा !


तो उस प्रेम का , सहिष्णुता का क्या फायदा ?

जो आज हम दिखा रहे है ?


इसिलिए हमारे आदर्श योगीबाबा ( मुख्यमंत्री : - उत्तर प्रदेश ) भी हमेशा कहते है की,

" जो जैसी भाषा समझता है, उसी भाषा में उत्तर दिया जायेगा ! "


अब समय आ गया है की,

" इस भाषा को "

संपूर्ण राष्ट्र के कल्याण के लिए,

व्यापक स्वरूप देना पडेगा !

संपूर्ण देश में !

विनाविलंब, तुरंत !

पहले से ही समय हमारे हाथ से जा चुका है ! बचने का रास्ता नहीं दिखाई नहीं दे रहा है !


" राष्ट्रद्रोही ताकतें " भयंकर शातिर दिमागी है !


ऐसी भयंकर परिस्थितियों से,

बचने के लिए,

" योगीबाबा का सटीक उत्तर "

यही बचने का अंतिम और एकमात्र उपाय बचा है !

पाणी सर से उपर से बह रहा है !


हमारे अपने भी बेईमान, नमकहराम, गद्दार जयचंद निकल रहे है !

हमें संपूर्ण रूप से डुबोने के लिए,हमारे ही 

" कुछ लोग "राष्ट्रद्रोहियों का साथ दे रहे है !


कब क्या होगा ? कौन कब और कैसे धोखा देगा ? इसका भरौसा रहा नहीं है !

पग पग पर हमारे ही जयचंद हमें नामशेष करने के लिए ,गुप्त रूप से ,घास लगाकर बैठे हुए है ! विरोधियों के कुटिल नितीयों को अग्रेषित कर रहे है !

हमारे ही जहरीले अजगर ,हमें निगलने के लिए , समय का इंतजार कर रहे है !


क्या ऐसी भयावह परिस्थितियों में भी " हम " मौन ,शांत रह सकते हैं ?

प्रेम और सहिष्णुता की भाषा बोल सकते है ?

हमारा आत्मघाती समाज ही हमारा भी और खुद का भी सर्वनाश कर रहा है ! आत्मघात कर रहा है !


तो क्या यह विनाशकारी तमाशा खुले आँखों से देखते रहेंगे ? और खुद का सर्वनाश करेंगे ?


"करो या मरो का यह अंतिम

समय चल रहा है ! "


क्रूर अंग्रेज और मुगल भी चले गये !

वो भी हमारा ,हमारे संस्कृति का नाश नहीं कर सके !

वो भी हमारा नामोनिशान नहीं मिटा सकें !


मगर अब ?

हमारे ही हमारे हितशत्रुओं को , संस्कृति भंजकों को जाकर मिल रहे है ! वो भी भारी मात्रा में ! बहुसंख्या में !

खुलेआम !!


और हमारी और हमारे संस्कृती की नैया डुबो रहे है !

दिनरात यही सपना भी देख रहे है !

यह हमारे अस्तित्व की लडाई है !


और हमें यह लडाई जीतनी ही है !

जी हाँ !!

दूसरा कोई भी रास्ता नहीं है !


उनका चौतरफा कल्याण करने के बाद भी ? हमें ही संपूर्ण रूप से डुबोने का उनका सपना ?

उनके कल्याण की अनेक चौतरफा योजनाओं को लाने के बाद भी ?

हमारा सर्वनाश का सपना अगर वह देख रहे है तो वह महाभयानक हो रहा है !

अती भयानक हो रहा है !

अमानवीय हो रहा है !

ईश्वरी सिध्दांतों के खिलाफ हो रहा है !


और वह भी क्षमा करने योग्य भी नहीं हो रहा है !


इसिलिए हमें कठोर होना पडेगा ! सख्त और कठोर रास्ते अपनाने पडेंगे !

भयानक राष्ट्रद्रोहीयों के भयावह मनसुबे और अती भयंकर करतुतों को भेदने के लिए,हमें

फिरसे कृष्णनिती अपनानी पडेगी !

साम,दाम,दंड ,भेद से उनका दमन करना पडेगा !

छल - बल - कपट से उनके हर विनाशकारी इरादों का उत्तर देना  पडेगा !


तभी बचेंगे !

अन्यथा ? जलसमाधि और मगरमच्छ का शिकार !?


शत्रु हमारा हो या पराया !

विश्वासघाती शत्रूओं को विश्वासघात से ही मारा जाता है !

छल,बल,कपट से !

उनको दया नहीं दिखाई जाती है !


यही कृष्णनिती है !

यही भगवत् गीता का सार है !


अन्यथा ? पृथ्वीराज चौहान जैसी दुर्दशा हो जायेगी !


और भविष्य में अब पृथ्वीराज चौहान जी की ,जैसी पुर्नरावृत्ती टालने के लिए, हमें सख्त होकर, निर्णय लेने पडेंगे !

क्योंकि ईश्वर की भी अंतिम इच्छा भी यही है !

और इसके सिवाय अधर्म का नाश भी नहीं होगा !


सख्त और कठोर निर्णय ही अब हमें बचा सकते है !


।। षठ प्रती षाठ्यम् ।।

।। उत्तिष्ठ पार्थ ।।


हरी ओम्

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