उन्मत्त कली

 उन्मत्त, उन्मादी कली का साम्राज्य चारों ओर फैल गया !!

✍️ २२६४


लोकसंख्या बेसुमार बढ गई !

मगर सच्चाई और ईमानदारी घट गई !

काम के लिए कोई आदमी नहीं मिल रहा है , इसिलिए मशीनों की संख्या भी बढ गई !

हर एक को काम चाहिए,

आराम का , सुखचैन का !

मगर ईमानदारी का भरौसा नहीं रहा !


घर में भी काम के लिए

कामवाली नहीं मिल रही है !

मिलती भी है तो पाँचसौ रूपयों की जगह पर हजार रूपये की माँग होने लगी !

पाँचसौ की जगह पर हजार देनेपर भी ईमानदारी से काम करने की पूरी की पूरी " गैरंटी "

ही खत्म हो गई !


सचमुच में जमाना बिगड़ गया !

सच्चाई की  " ऐसी की तैसी "

का बोलबाला बढ गया !

चारों ओर उन्मत्त, उन्मादी 

" कली " ने अपना साम्राज्य बढा दिया !

संपूर्ण विश्व में हाहाकार और अराजक फैल गया !


विश्वासघात , धोखा ,छल ,कपट ,बेईमानी का जमाना आ गया !

सचमुच में जमाना बदल गया !


ऐसी भयावह स्थिति में,

सत्य की जीत कौन करेगा ?

सत्यप्रेमीयों को न्याय कौन देगा ?


इसका उत्तर मिलना भी लगभग नामुमकिन हो गया !


हरी ओम्


विनोदकुमार महाजन

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