कौन करेगा चमत्कार ?

 कौन करेगा चमत्कार ??

✍️ २२७६


विनोदकुमार महाजन


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यह भूमी चमत्कारों की है !

इस भूमीपर अनेक बार चमत्कारी, सिध्दपुरूषों ने जन्म लिया है !

और इस पवित्र भूमी पर आज भी चमत्कार होते रहते है !


अब,

आज की भयावह स्थिति में, भयंकर अराजकता में,

चमत्कार होने की फिरसे अपेक्षा है !?


और आसुरीक संपत्तियों का सर्वनाश होकर, ईश्वरीय संपत्तियों का राष्ट्रीय तथा वैश्विक स्तर पर , पुनर्निर्माण होना अत्यावश्यक है !?


२०२४ का लोकसभा चुनाव तो बीजेपी ही भारी बहुमतों से जीतेगी ही जीतेगी,इसमें कोई संदेह नहीं है !

क्योंकि मोदिजी का अतुलनीय कार्य ही जीत दिला देगा !


मगर उसके बाद ?

क्या सचमुच में चमत्कार होंगे ? ?


जैसे,

हिंदुराष्ट्र निर्माण !?

यह भी चमत्कारों से कुछ कम नहीं है !

अखंड भारत , का निर्माण,यह भी चमत्कारों से कुछ कम नहीं है !?


दो हजार साल पहले भी राजा विक्रमादित्य ने ऐसे ही दैवीय चमत्कार करके, इस भूमी को,

वैभवशाली, सामर्थसंपन्न,सोने की चिडियावाला,

" अखंड भारत देश अर्थात अखंड हिंदुराष्ट्र " बनाया था !


अब फिरसे राजा विक्रमादित्य जैसे चमत्कार होंगे ऐसी अपेक्षा संपूर्ण देशवासियों को तथा मानवताप्रेमीयों को है !!


भारत में चक्रवर्ती सम्राट उसे कहा जाता है जिसका संपूर्ण भारत में राज रहा है ! उज्जैन के सम्राट विक्रमादित्य भी चक्रवर्ती सम्राट थे !विक्रमादित्य का नाम विक्रम सेन था ! विक्रम बेताल और सिंहासन बत्तीसी की कहानियां महान सम्राट विक्रमादित्य से ही जुड़ी हुई है !

जो एक चमत्कार से कम नहीं है !

 

विक्रम संवत अनुसार विक्रमादित्य आज से 2288 वर्ष पूर्व हुए थे ! 


कलि काल के 3000 वर्ष बीत जाने पर 101 ईसा पूर्व सम्राट विक्रमादित्य का जन्म हुआ ! उन्होंने 100 वर्ष तक राज किया ! -(गीता प्रेस, गोरखपुर भविष्यपुराण, पृष्ठ 245) !


विक्रमादित्य भारत की प्राचीन नगरी उज्जयिनी के राजसिंहासन पर बैठे ! विक्रमादित्य अपने ज्ञान, वीरता और उदारशीलता के लिए प्रसिद्ध थे , 

जिनके दरबार में नवरत्न रहते थे ! 


कहा जाता है कि विक्रमादित्य बड़े पराक्रमी थे और उन्होंने शकों को परास्त किया था !

 

सम्राट विक्रमादित्य अपने राज्य की जनता के कष्टों और उनके हालचाल जानने के लिए छद्मवेष धारण कर नगर भ्रमण करते थे ! राजा विक्रमादित्य अपने राज्य में न्याय व्यवस्था कायम रखने के लिए हर संभव कार्य करते थे ! इतिहास में वे सबसे लोकप्रिय और न्यायप्रीय राजाओं में से एक माने गए हैं !


उन्होंने ईसा पूर्व 57-58 में सबसे पहले शको को अपने शासन क्षेत्र से बाहर खदेड़ दिया ! इसी की याद में उन्होंने 

" विक्रम संवत " , की शुरुआत कर अपने राज्य के विस्तार का आरंभ किया ! 


विक्रमादित्य ने ,


" भारत की भूमि को विदेशी शासकों से मुक्ति " कराने के लिए एक वृहत्तर अभियान चलाया, जिसे चलानाय कहते हैं ! उन्होंने अपनी सेना का फिर से गठन किया ! उनकी सेना विश्व की सबसे शक्तिशाली सेना बई गई थी, 


जिसने " भारत की सभी दिशाओं में एक अभियान चलाकर भारत को विदेशियों और अत्याचारी राजाओं से मुक्ति कर एक छत्र शासन को कायम किया ! "


राजा विक्रम का भारत की संस्कृत, प्राकृत, अर्द्धमागधी, हिन्दी, गुजराती, मराठी, बंगला आदि भाषाओं के ग्रंथों में विवरण मिलता है ! उनकी वीरता, उदारता, दया, क्षमा आदि गुणों की अनेक गाथाएं भारतीय साहित्य में भरी पड़ी हैं !


नवरत्नों को रखने की परंपरा महान सम्राट विक्रमादित्य से ही शुरू हुई है ! 

सम्राट विक्रमादित्य के नवरत्नों के नाम धन्वंतरि, क्षपणक, अमरसिंह, शंकु, बेताल भट्ट, घटखर्पर, कालिदास, वराहमिहिर और वररुचि कहे जाते हैं। इन नवरत्नों में उच्च कोटि के विद्वान, श्रेष्ठ कवि, गणित के प्रकांड विद्वान और विज्ञान के विशेषज्ञ आदि सम्मिलित थे !

 

अरब तक फैला था विक्रमादित्य का शासन !!


महाराजा विक्रमादित्य का 

स - विस्तार वर्णन भविष्य पुराण और स्कंद पुराण में मिलता है ! विक्रमादित्य के बारे में प्राचीन अरब साहित्य में वर्णन मिलता है !


उस वक्त उनका शासन अरब तक फैला था ! दरअसल, विक्रमादित्य का शासन अरब और मिस्र तक फैला था और संपूर्ण धरती के लोग उनके नाम से परिचित थे !


इतिहासकारों के अनुसार उज्जैन के सम्राट विक्रमादित्य का राज्य भारतीय उपमहाद्वीप के अलावा ईरान, इराक और अरब में भी था! 


विक्रमादित्य की अरब विजय का वर्णन अरबी कवि जरहाम किनतोई ने अपनी पुस्तक 

" सायर-उल-ओकुल " में किया है !


पुराणों और अन्य इतिहास ग्रंथों के अनुसार यह पता चलता है कि अरब और मिस्र भी विक्रमादित्य के अधीन थे !

 

तुर्की के इस्ताम्बुल शहर की प्रसिद्ध लायब्रेरी मकतब-ए-सुल्तानिया में एक ऐतिहासिक ग्रंथ है  

" सायर-उल-ओकुल ! "

उसमें राजा विक्रमादित्य से संबंधित एक शिलालेख का उल्लेख है जिसमें कहा गया है कि ,

" वे लोग भाग्यशाली हैं, जो उस समय जन्मे और राजा विक्रम के राज्य में जीवन व्यतीत किया ! वह बहुत ही दयालु, उदार और कर्तव्यनिष्ठ शासक था, जो हरेक व्यक्ति के कल्याण के बारे में सोचता था ! उसने अपने पवित्र धर्म को हमारे बीच फैलाया, 

' अपने देश के सूर्य से भी तेज विद्वानों को इस देश में भेजा ' ताकि शिक्षा का उजाला फैल सके ! इन विद्वानों और ज्ञाताओं ने हमें भगवान की उपस्थिति और सत्य के सही मार्ग के बारे में बताकर एक परोपकार किया है ! ये तमाम विद्वान राजा विक्रमादित्य के निर्देश पर अपने धर्म की शिक्षा देने यहां 

आए थे ! "


इतिहास हमें यह सिखाता है की,

ईश्वर की असीम कृपा से और ईश्वरी वरदान से,

असंभव कार्य को भी संभव में बदलने की क्षमता और शक्ति होती है !!


जो राजा विक्रमादित्य ने करके दिखाया था !


शनीदेव के भयंकर कोप के कारण,विनाशकारी चक्रव्यूहों में फँसने के बावजूद भी ,सबकुछ तबाह होने के बावजूद भी , हाथपैर टूटने के बावजूद भी,

राजा विक्रमादित्य ने ,कठोर तथा खडतर तपश्चर्या द्वारा ,प्रत्यक्ष शनीदेव की तथा अनेक देवताओं की कृपा प्राप्त करके,

" अपने इक्षीप्त को " ,

प्राप्त किया था !


इसे ही चमत्कार कहते है !


आज भी फिरसे ऐसे जबरदस्त चमत्कार भी हो सकते है !

और राजा विक्रमादित्य जैसा...


" अखंड भारत तथा अखंड हिंदुराष्ट्र !!! " 


फिरसे बन सकते है !

क्यों नहीं बन सकते ??


जरूरत होती है,

" तीव्र इच्छाशक्ति की और अथक प्रयास की ,अतुलनीय पराक्रम की,बेजोड़ यशस्वी रणनितीयों की ! "


और ?

यथोचित सहयोगियों की !!?


इसीलिए देश को आज फिरसे,

चमत्कारों की जरूरत है !!


कौन दिखायेगा चमत्कार ?

कौन बनायेगा हिंदुराष्ट्र ?

कौन बनायेगा अखंड भारत ?

कौन आसुरीक संपत्तियों का सर्वनाश करके, दैवी संपत्तियों को पुनर्स्थापित करेगा ?

संपूर्ण देश और संपूर्ण विश्व में ??


राजा विक्रमादित्य की तरह ??


क्या ईश्वर भी यही चाहता है ??


हरी ओम्


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