समाजहितों के लिए

 कानूनव्यवस्था और देशांतर्गत सौहार्द !!

✍️ २२६१


विनोदकुमार महाजन


✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️


समाजहितों के लिए जो कानूनप्रणाली उपयुक्त नहीं होती है , उल्टा सदैव समाजहितों के लिए ही बाधित शाबित होती है ,

तब ऐसी कानूनप्रणाली , उस समाज के लिए स्विकारार्य नहीं होती है !


इसीलिए समाज हितों की संपूर्ण रक्षा करने के लिए ,किसी देश की कानूनव्यवस्था अगर असमर्थ रहती है तो ,ऐसी कानूनप्रणाली या तो कालबाह्य होती है , अथवा सदोष होती है !


इसिलिए अनेक बार व्यापक जनहित सामने रखकर , बारबार कानूनप्रणाली में व्यापक संशोधन जरूरी होता है !


अनेक देशों में कानून संशोधन किया गया है ! और संपूर्ण जनमानस को यथोचित तथा संन्मानजनक न्याय देने के लिए, यथोचित न्यायव्यवस्था बनाई गई है !


अनुकूल न्यायव्यवस्था देश में शांति और सौहार्द बढाने में सहायक होती है ! और प्रतिकूल न्यायव्यवस्था सामाजिक कलह , उद्रेक ,सामाजिक असंतुलन तथा भारी संख्या में अराजकता का निर्माण कर सकती है !


इसीलिए सक्षम ,सख्त और कठोर कानूनप्रणाली ही सामाजिक सौहार्द स्थापित करने में सक्षम होती है !


आपको क्या लगता है ?

बहुमतों की संख्या में , मेरे विचारों का समर्थन किया जायेगा ?


सरकार इसके लिए एक जनमत सर्वे भी कर सकती है !

ताकी संपूर्ण देशवासियों के मन में चल रही अस्वस्थता को रास्ता मिलें !

और देश में शांति और सद्भाव का वातावरण बना रहे !!


अगर जबरन कोई गलत कानूनप्रणाली समाजमन पर थोंपने की कोशिश कर देता है तो क्रांति की लहर उत्पन्न हो जाती है !

और ऐसे अहितकारी कानून फेंककर ,समाजहितकारी तथा बहुपयोगी कानूनप्रणाली स्विकार की जाती है !


मेरे देश की आज की स्थिति क्या है ? इसपर आप विस्तृत विवेचन , विश्लेषण भी कर सकते है !

जो अभिव्यक्ति स्वातंत्र्य का हमारा अधिकार भी है !

भारतीय लोकतंत्र जिवीत रखने के लिए , ऐसा जरूरी भी है !


हरी ओम्

Comments

Popular posts from this blog

मोदिजी को पत्र ( ४० )

हिंदुराष्ट्र

साप आणी माणूस