हम कृष्णभक्त है
नैतिकता का पाठ केवल हिंदुओं को ही क्यों पढाया जाता है ??
✍️ २२५७
विनोदकुमार महाजन
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आज का जमाना बडा भयंकर विचित्र है !
सत्यता, प्रामाणिकता,ईमानदारी की दुनिया नहीं रही है !
हेराफेरी , बेईमानी ,लफंगेगिरी , बनवेगिरी की दुनिया है !
यहाँपर तो सत्य नहीं चलता है !
बल्की सत्य का मुखौटा धारण करके , केवल असत्य ही चलता है !
और ईश्वर भी ,पंढरपूर में पांडुरंग बनकर ( विष्णु का नौवां अवतार यही है ,क्योंकि अवतार में पूर्णत्व होता है, जो पांडूरंग में है ) , निश्चल ,स्थिर और मौन बनकर , आँखें बंद करके बैठा है ! चाहे कितना भी भयंकर घोर अन्याय ,अत्याचार हो , वो तो आँखें खोलेगा ही नहीं ?
शायद पांडुरंग भी विष्णू का दसवाँ अवतार , कल्की का ,आँखें बंद करके इंतजार कर रहा होगा ?
इसिलिए जब वह आँखों को खोलेगा ,तब पापीयों में हाहाकार मचेगा ?
मगर वह आँखें खोलेगा कब ?
और हम भी पांडुरंग के भक्त , क्या उसकी तरह ही आँखें बंद करके , पाप का और पापीयों का भयंकर आतंक खुले आँखों से देखते रहेंगे ?
हरगीज नही !
ईश्वर की इच्छा चाहे कुछ भी हो , हमें तो हैवानों के हैवानियत के विरूद्ध लडना ही होगा !
उसे रोकना ही होगा !
मगर कैसे ?
राम बनकर ? या कृष्ण बनकर ?
राम के आदर्श सिध्दातों को अपनाकर ? या कृष्ण की
" जैसे को तैसे "
की जबरदस्त निती अपनाकर ? कार्य आगे बढाना होगा ?
साम , दाम ,दंड , भेद ?
मगर राम के आदर्श वाद से चलने का यह समय नहीं है !
नहीं तो ? अस्तित्व शून्य बना देगी यह विचित्र दुनियादारी !
और कृष्ण निती से चलेंगे तो ही जितेंगे ! तो ही अन्याय , अत्याचार का विरोध और बिमोड भी कर सकेंगे !
कृष्ण निती से चलकर ही,
रामराज्य का सपना साकार भी हो सकता है !
आज के समय में केवल और केवल कृष्ण निती अपनाकर ही जीत हासिल हो सकती है !
भगवत् गीता के रास्तों पर चलकर ही अधर्म पर और अधर्मीयों पर अंकुश लगाया जा सकता है !
जैसे को तैसा !!
चाहे इसे कोई अनैतिक कहें , अथवा अव्यवहार्य कहें !
मगर जीत का यही एकमेव और अंतिम रास्ता बचा हुवा है !
इसिलिए सर्वोच्च सत्तास्थानपर विराजमान तत्वों को यही रास्ता अपनाना होगा !
विनाविलंब !
सत्य की तथा आदर्श ईश्वरी सिध्दातों की रक्षा के लिए ही ,सत्ता का उपयोग होना चाहिए ! ठीक ऐसे ही नियम - कायदे - कानून तुरंत बनाने ही चाहिए !!
तभी सत्य की रक्षा होगी !
ईश्वरी सिध्दातों को निगलने के लिए चारों तरफ से , हैवानियत वाले महाभयंकर अजगर, पग पग पर अपनी कुटिल नितीयाँ अपना रहे है !
इसीलिए समय की बर्बादी किए बगैर , नैतिकता - अनैतिकता का शुभाशुभ छोडकर , सुयोग्य निर्णय लेने पडेंगे !
राक्षसी सिध्दातों पर चलनेवाले ,नैतिकता को बंद डिब्बों में बंद करके,उसे दूर फेंककर , संपूर्णतः अनैतिक होकर , आसुरीक सिध्दातों को , खुलेआम बढावा दे रहे है ! ऐसे समय में क्या हम नैतिकता के पाठ पढाकर सामाजिक क्रांति की अपेक्षा करेंगे ?
क्या यह गलत नहीं होगा ?
आसुरीक सिध्दांतवालों को क्या नैतिकता की भाषा समझ में आयेगी !
आज नैतिकता के पाठ केवल हमें ही पढाये जाते है ? सत्यवादीयों को ही पढाये जाते है ? हिंदुत्ववादियों को ही पढाये जाते है ? क्यों ???
जहां पर , क्रूरता से ,नितदिन खून की नदीयां बहाई जाती है , जहां पर नैतिकता का नामोनिशान भी नहीं है , उनके द्वारा हमें नैतिकता के पाठ पढाये जाते है ?
कर्ण के रथ का चक्र जब जमीन में फँस जाता है , तभी कृष्ण परमात्मा ,अर्जुन को, उसपर शस्त्र चलाने को कहता है !
क्यों ?
क्योंकि बाद में कर्ण को मारना और धर्म युद्ध जीतना असंभव था !
तब कर्ण धर्म की , नैतिकता की बात करता है !
और उसी समय , कृष्ण परमात्मा उसे धर्म - अधर्म की भाषा समझाता है !
नैतिक - अनैतिक समझाता है !
आज भी यही हो रहा है !
अधर्मी दुर्योधन का साथ देनेवाले कर्ण का रथ आज जमीन में फँस चुका है !
और यही अचूक समय है , अधर्म और अधर्मीयों को नेस्तनाबूद करने का !
आज अगर कर्ण बचेगा तो भविष्य भयावह होगा !
कर्ण अगर गलती से भी बचेगा तो,धर्म हारेगा - अधर्म जीतेगा !
इसीलिए, यही समय है ,दुर्योधनी सेना को ध्वस्त करने का !
और समय का सदुपयोग जो नहीं समझता है , उसे भविष्य में पछताना पडता है !योग्य समय में अधर्म पर किया गया प्रहार ही , धर्म की जीत करवा सकता है ! इसके लिए तीव्र इच्छाशक्ति की भी जरूरत होती है !
युध्द में और प्रेम में सबकुछ क्षम्य होता है , अगर उद्दीष्ट पवित्र है तो !
यहाँ पर नैतिकता और अनैतिकता का पाठ नहीं पढाया जाता है !
और पाठ पढाया भी गया और उसे आचरण में लाया भी गया तो ??
गई भैंस पाणी में ?
सबकुछ सत्यानाश ही होगा !
सबसे महत्वपूर्ण बात यह भी है की , हमें नैतिकता का पाठ पढाने वाले कितने नैतिक है ?
क्या उनके मुंह में नैतिकता शोभा देती है ?
जिन्हें एक प्रतिशत भी नैतिकता मालूम नहीं है , वह हमें नैतिकता सिखायेंगे ?
पापी पुण्यवंतों को ही ज्ञान सिखाएंगे ?
उल्टा चोर कोतवाल को डाटेगा ?
और हम भी मान जायेंगे ?
महादेव की पिंडी पर दूध बरबाद होता है , दहीहंडी पर पाणी बरबाद होता है , शादी में अक्षता के कारण चावल बरबाद होता है, यह ज्ञान केवल और केवल हमें ही क्यों पढाया जाता है ?
नैतिकता बारबार हमें ही क्यों पढाई जाती है ?
और " उधर ? "
खून की नदियां दिनरात बहती है !
उधर मौन और शांति ?
और हमारे ही कुछ नतदृष्ट उल्टा हमें ही नैतिकता का ज्ञान सिखाते है ?
बेईमान, नमकहराम जयचंद ?
हमें सिखायेंगे ?
हिंदुत्व क्या होता है ? मानवता क्या होती है ? अनैतिकता क्या होती है ? यह हमें हर पल अनैतिक आचरण करनेवाले सिखाएंगे ?
इसिलिए ?
कृष्णनिती !!
कृष्ण काला है ...इसीलिए तो हम कहते है !
क्योंकि काला करनेवालों का ,अधर्मी, पापीयों का वह प्रभु परमात्मा प्रत्यक्ष काल है !
कान्हा बनकर , काला बनकर प्रत्यक्ष काल को भी हराने वाला !!
और हमारा प्रभु,
तब भी था ! आज भी है !!
तब साकार में था ! आज निराकार में है !!
अदृश्य है !!!
मगर शिक्षाप्रणाली वहीं है !
जैसे को तैसा उत्तर देकर , अधर्मीयों का सर्वनाश !
और...धर्म की पुनर्स्थापना !!
गीता भी हर समय में , हर भयंकर मुसिबतों में ,क्या सिखाती है ?
प्रतिघात के सिवाय हाहाकारी ,उन्मादियों का नाश नहीं होता है ! और प्रतिघात में नैतिकता - अनैतिकता नहीं देखी जाती है !
इसीलिए हमें , हम सत्यप्रेमीयों को , धर्मावलंबियों को , आदर्श ईश्वरी सिध्दातों पर चलने वालों को कोई अधर्मी अथवा गद्दार जयचंद नैतिकता और अनैतिकता की व्याख्या ना सिखाये तो ही बेहतर होगा !
हम सबकुछ जानते है !
पहचानते भी है !!
क्योंकि हम कृष्णभक्त है !!
हरी ओम्
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