केवल सनातन

 ईश्वर का कार्य !!

✍️ २४२४


महापुरुषों के पुतले बनाते है !

मगर ईश्वर की तो मुर्ती होती है !

और मंदिर में प्राणप्रतिष्ठित की जाती है !

मुर्ती मतलब मुर्त स्वरूप !

ईश्वर का प्रत्यक्ष प्रमाण !

और जब यही ईश्वर की मुर्ती

ह्रदय मंदिर में सदा के लिए

विराजमान होती है तब ?

वह देह ही मंदिर बन जाता है !

ईश्वर की ह्रदय में प्राणप्रतिष्ठा !

ईश्वर स्वरूप देह !

कितना मनोहारी दृष्य है ना ?

मनोहर को अंदर बसाना ?

और उसी से , उसी मनोहर से सदा के लिए एकरूप हो जाना !


और एकरूप होकर उसके ही

सनातन धर्म का कार्य निरंतर

आगे बढाते रहना !


यही तो मनुष्य देह का 

ईश्वरी प्रायोजन है !


खाया पिया मर गया ?

ईश्वर का कार्य किए बगैर ?

सनातन का कार्य किए बगैर ?

ऐसे तो किडे मकौड़े भी

पैदा होते है !

और मर जाते है !


इसीलिए नरदेह का सार्थक

सनातन धर्म का कार्य बढाने में ही है !

आँखें खोल प्राणी !!

हरी बोल !


विनोदकुमार महाजन

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