जब मैं...
*जब मैं कृष्णअवतार में था...*
✍️ २४१९
*विनोदकुमार महाजन*
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जब मैं कृष्णअवतार में था...?
जम मैं पंचमहाभूतों के देह में था...
तब भी मुझे...
धर्म रक्षा के लिए , सत्य की रक्षा के लिए , निरंतर और अथक प्रयास करना पडा था !
मेरा सगा मामा ही मेरे जान का प्यासा था !
इसिलिए मुझे कुटिल निती द्वारा , यश की और धर्म रक्षा की योजना बनानी पडी थी !
चौबीसों घंटे , सजग तथा सावधान रहकर , शत्रुपक्ष पर विजय प्राप्त करनी पडी थी !
समय और नियती के अनुसार ही मुझे व्यापक जीत की रणनीति बनानी पडी थी !
मेरे आँखों के सामने ही मेरे प्रिय सखा , अर्जुन के पुत्र , अभिमन्यु को चक्रव्युह भेदने के लिए ,और उसे बाहर आने के लिए ,सहयोग करने के बजाए , अभिमन्यु की मृत्यु भी मुझे देखनी पडी थी !
मैं स्वयं भगवान होकर भी , प्रारब्ध गती का विचित्र खेल मैं नहीं रोक सका था !
इतना ही नहीं तो , मेरे आँखों के सामने ही , मेरे यादव कुल का सर्वनाश और यादवी , मुझे मेरे आँखों से देखनी पडी थी !
मेरी खुद की मृत्यु भी एक व्याध के हाथों से ही होनी थी ! क्योंकि यही नियती की इच्छा थी !
*और मैं , स्वयं भगवान होकर भी , स्वयं विष्णु होकर भी , नियती के अनुसार ही मुझे आचरण करना पडा था !*
होनी को मैं टाल सकता था !
मगर इसे मैंने नहीं टाला !
मेरे ही रामअवतार में , मैंने अनेक दुखदर्द झेले ,राजऐश्वर्य का त्याग करके , बनवास का सहर्ष स्वीकार किया था !
*सिध्दांतों की रक्षा के लिए ही*
मुझे ऐसा सबकुछ करना पडा था !
और आज ?
आज तो भयंकर घोर कलियुग है !
मेरे ही द्वारा निर्माण किए हुए पृथ्वी निवासी ,अनेक मनुष्य प्राणी ने लगभग , सभी ईश्वरी सिध्दांतों को , मेरे ही निर्मित सनातन संस्कृति के आदर्शों को ,
आदर्श सिध्दांतों को त्यागकर आसुरी वृत्तियों का स्विकार किया है !
पिछले अवतार में , केवल एक ही रावण था , एक ही कँस - दुर्योधन था ! एक ही हिरण्यकश्यप था !
मगर आज तो ?
पगपगपर अनेकानेक भयंकर उग्र रूप वाले रावण , कँस - दुर्योधन , हिरण्यकश्यप छुपे हुए है !
कृष्णअवतार में, अकेले कँस और दुर्योधनी सेना के संहार के लिए , अनेक गुप्त योजनाएं तथा यशस्वी रणनीति बनानी पडी थी !
तो आज के अतीभयावह अधर्म के माहौल में तो ?
कितनी शक्तिशाली रणनीति बनाकर मुझे आना पडेगा ?
और आज मुझे ?
उसी नियती के रचना अनुसार ,
पंढरपुर में ,नौवां बौध्द अवतार बनकर , स्थितप्रज्ञ बनकर , दोनों आँखें बंद करके , मौन और शांत रहना पड रहा है !
आज के कलियुग का घोर अनर्थ और उन्मादियों का हाहाकार और और उन्माद भी मैं देखता हूं ! धर्म भ्रष्ट इंन्सानों को भी देखता हूं !
निस्सीम भक्तों की रक्षा के लिए , कभी कभी स्थितप्रज्ञ होकर भी चमत्कार भी दिखाता हूं !
तुकाराम - ज्ञानदेव - नामदेव - एकनाथ - सावता - जना -
रैदास - चोखा - निळा जैसे अनेक संत महात्माओं के लिए ,मुझे दौडकर तो आना ही पडा था !
आज मेरी आँखें बंद होकर भी ,
पृथ्वी के अधर्म का और अधर्मीयों का भयंकर हाहाकार मैं देखता हूं , तो भयंकर पिडा - दुखदर्द होता ही है !
मेरी ही अनेक संतानों पर , पशुपक्षीयों पर ,गौमाताओं पर , हो रहे भयंकर अत्याचार मैं भी आखिर कबतक , मौन रहकर देखता रहूंगा ?
मुझे अब यह सबकुछ सहा नहीं जा रहा है !
संत सत्पुरुषों के साथ , महात्माओं के साथ हो रहे भयंकर अत्याचार देखना , मेरे लिए बहुत मुश्किल हो रहा है !
*कैसे देख सकता हूं आखिर मैं यह अधर्मीयों का भयावह रूप ? अत्याचार ? उन्माद ? हाहाकार ?*
*अब तो मुझे आना ही पडेगा !*
रंगरूप बदलकर !
नये अवतार में !
*आना ही पडेगा !*
ऐसी अद्भुत व्यूहरचना बनाकर आना पडेगा की ,
कँस जैसे महाभयंकर कितने भी सैतान मुझे ढूंढने की ,पहचानने की , कोशिश करेंगे ,तो भी मुझे...
*कोई भी पहचान नहीं सकेगा !*
निस्सिम भक्तों को छोडकर !
ऐसी ही मुझे व्यूहरचना तो बनानी ही पडेगी !
*क्योंकि...*
उन्मादी हैवानों का विनाशकारी हाहाकार अब भयंकर उग्र रूप धारण करता जा रहा है !
सज्जन शक्ति भयंकर मुसिबतों में है !
इसीलिए मुझे तो अब आना ही पडेगा !
वचन गीतावाला तो निभाना ही पडेगा !
*मगर मैं...*
कब आऊंगा ? कैसे आऊंगा ?
कहाँ आऊंगा ?
यह किसी को बताऊंगा भी नहीं !
अधर्मीयों का ,उन्मत्त पापीयों का संपूर्णतः संहार करके...
*धर्म की पुनर्स्थापना करके...*
कब स्वर्ग को वापिस लौट के चला जाऊंगा ?
यह भी किसी को समझ में नहीं आयेगा !
*क्योंकि ?*
मुझे पहचानने की ?
कलियुग के उन्मादी हैवानों की क्षमता नहीं है !
और साधारण मनुष्य प्राणी की भी ? नहीं !!
*कृष्णऊवाच*
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