मैं केवल
*मैं केवल...???*
✍️ २४२६
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मैं केवल
राम को ही मानता हूं
केवल कृष्ण को ही मानता हूं
मैं केवल हिंदु धर्म के देवीदेवताओं को ही मानता हूं...
*ऐसा मैं कभी भी कहता आया नहीं हूं...!*
मैंने कभी भी ऐसा कहकर , लाऊडस्पीकर लगाकर , जोरजोरसे चिल्लाचिल्लाकर ,
सभी की नींद उडाकर , दूसरों को पीडा तकलीफ देकर ...
*मैं *केवल और केवल मेरे ही भगवान को मानता हूं...*
*दूसरों के कभी भी नहीं...*
*ऐसा कभी भी गलती से भी नहीं कहा है !*
क्योंकि मैं सभी का सन्मान करता हूं , सदियों से करता भी आया हूं !
*इतिहास साक्षी है !!*
उल्टा ,
मैं हमेशा यही कहता आया हूं की
मैं सभी को मानता हूं !
सभी धर्मीयों को मानता हूं !
सभी धर्मीयों से प्रेम भी करता आया हूं !
मैं सभी धर्मीयों के महापुरुषों को भी मानता हूं !
क्योंकि मैं मानवता का पुजारी हूं !
मैं सहिष्णु हूं !
सभी धर्मीयों को मैं सदियों से मानवता के नाते से स्विकारता आया हूं !
सभी का नम्रतापूर्वक संन्मान भी करता आया हूं !
सभीपर निरंतर ,निरपेक्ष प्रेम ही करता आया हूं !
*क्योंकि मैं हिंदु हूं !*
*मैं सनातनी हिंदु हूं !*
किसी के साथ बैर - भेदभाव करना यह बात मेरे खून में है ही नहीं है !
क्योंकि मैं सभी सजीवों में ईश्वर का रूप देखता आया हूं !
मैं *वसुधैव कुटुम्बकम* के सिध्दांतों को मानने वाला ,स्विकारने वाला , *विश्वबंधुत्व स्विकारने वाला* हिंदु हूं !
मेरे उच्च संस्कार ,मेरी शालिनता , मेरी नम्रता मुझे हमेशा यही सिखाती आयी है !
*क्योंकि मैं हिंदु हूं !*
यही हमारे सनातन की ,संस्कृति की ,धर्म की , हिंदुत्व की श्रेष्ठता ,महानता है !
किसी से बैर , भेदभाव नहीं !
*फिर भी...*
*अगर*??
मेरे आदर्श धर्म से ,मेरी संस्कृती से , मेरे आदर्श सिध्दांतों से कोई विनावजह द्वेष ,नफरत करता है , नफरत फैलाता है...
मेरी संस्कृति ,मेरा धर्म ,मेरी महानता को नेस्तनाबूद करने का , समाप्त करने का ,जमीन में दफनाने का..
*दिनरात*
*सपना अगर कोई देखता है*
*और उसी दिशा में सदियों से*
*प्रयास भी करता है*
*तो...???*
*मैं ऐसे लोगों से प्रेम क्यों करूं ?*
कितने दिनों तक करता रहूं ?
मेरे ही अस्तित्व की लडाई मुझे लडनी पड रही है...
*तो ?*
ऐसे हैवानियत से आखिर मैं प्रेम भी कैसे कर सकता हूं ??
इसका मैं *जमकर विरोध* भी क्यों न करूं ?
ऐसी भयावह विनाशकारी ,विकृत हैवानियत का मैं जमकर विरोध भी करूंगा !
और उसके विरूद्ध आजीवन लडता भी रहूंगा !
*सभीपर निरंतर दिव्य प्रेम करना*
*और...*
*हैवानियत का जमकर विरोध करना*
*यही मेरे ईश्वरीय सिध्दांत है !*
*युगों युगों से मैंने इसका स्विकार किया है !*
क्योंकि मेरे देवीदेवता और
सभी धर्म ग्रंथ भी मुझे यही सिखाते है !
सभी पर प्रेम जरूर करो !
मगर दिव्य प्रेम करनेपर भी अगर हमारा अस्तित्व ही मिटाने की कोशिश कोई कर रहा है...
*दिनरात...*
तो उससे मैं प्रेम कैसे करूं ?
*सिधा सा सवाल है !*
*उत्तर सभी को देना ही है !*
इसिलिए यह संघर्ष हम नहीं बढा रहे है !
बल्कि जो यह संघर्ष विनावजह बढा रहे है , उन्हें हम क्षमा भी कैसे करेंगे !
*आपको क्या लगता है ??*
*ऐसे ईश्वरी कार्य के लिए आजीवन मेरा साथ दोगे ?*
*जय श्रीकृष्णा*
*हरी ओम्*
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*विनोदकुमार महाजन*
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