विडंबन ?

 विडंबन !!?


अगर हमारी क्षमता 

और योग्यता होगी तो

देवीदेवता भी हमसे

दिव्य प्रेम करते है !

सहयोग भी करते है !

हमारे साथ प्रेमपूर्वक

बातें भी करते है !


मगर उसी ईश्वर ने बनाया 

हुवा एक छोटासा इंन्सान

हर पल उसी सिध्दपुरूषों का

महापुरुषों का द्वेष ,मत्सर

करता है !

उसीके खिलाफ षड्यंत्र 

करके उसीका जीना हराम 

कर देता है !


संत ज्ञानेश्वर , संत तुकाराम

इसके उदाहरण है !

एक समय की सुखी रोटी 

को भी तडपाया ऐसे 

महापुरुषों को , ऐसे 

इंन्सानों ने !

भिक्षा माँगकर भी जीने

नहीं दिया !

पग पग पर रूलाया

उन पुण्यात्माओं को भी !

ईश्वर स्वरूप पवित्र 

आत्माओं को भी !

तरसकर उनके माता पिता ने

देहत्याग करने के बाद भी ?


अनाथ बेचारे ! 

और क्रूर मनुष्यप्राणी ?


और उनके मृत्यु के बाद ?

उनके ही सोने के मंदिर

बनवाता है यही इंन्सान !


हे भगवान ?

कितना बडा भयंकर विडंबन

है सब , पृथ्वी निवासी

मानवप्राणी का ?

इंन्सानों की अजब दुनिया !


सबको संन्मती दे भगवान !!


हरी ओम्


विनोदकुमार महाजन

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