ऐसा क्यों ?
ऐसा क्यों होता है ??
✍️ २३६२
विनोदकुमार महाजन
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अनेक बार हमारे जीवन में
बडा विचित्र खेल ही होता है !
और ऐसा आखिर क्यों होता है
यह भी समझ में नही आता है !
अनेक बार प्रेम करनेपर भी
नफरत ही क्यों मिलती है ?
अमृत बाँटनेपर भी आखिर
वापिस जहर क्यों मिलता है ?
सहायता करनेपर भी
विश्वासघात क्यों होता है ?
आधार देनेपर भी
आघात क्यों मिलता है ?
खुद की जान हथेली पर लेकर
किसीकी रक्षा करने पर भी
हमारे ही जान का वह प्यासा
क्यों हो जाता है ?
हमेशा नतमस्तक शिष्य मिलने के बजाए
उल्टा गुरु को ही ज्ञान सिखाने वाला शिष्य ही क्यों मिलता है ?
कृतज्ञता दिखाने पर भी
कृतघ्नता का भी बाजार क्यों सजता है ?
किसी के कल्याण की बात करनेपर भी
उसके मन में गुस्सा क्यों भर जाता है ?
पैसों के बाजार में हमेशा
सबकुछ उल्टापुल्टा ही क्यों होता है ?
हर एक प्रश्न का उत्तर भी
हमेशा उल्टापुल्टा ही होता है ?
आखिर ऐसा क्यों होता है ?
कौन बताएगा ??
क्या यही कलियुग का
उल्टा न्याय है ??
और इसका अंतिम उत्तर भी क्या है आखिर ?
भावनाशून्य बनना ?
संवेदनशून्य बनना ?
ह्रदयशून्य बनना ?
या हर क्षण ह्रदयपर पत्थर रखकर ही जीना ?
क्या यही एकमात्र और अंतिम उत्तर है सभी समस्याओं का ?
हरी ओम्
जय राधेकृष्ण
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