नफरतों के बाजार में

 नफरतों के बाजार में !!

✍️ २३३७


विनोदकुमार महाजन


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हम तो दुनियादारी समझ  न सके !

हम तो बहुत ही भोलेभाले और सिधेसादे निकले !

जिनके अंदर भरभरके नफरत का जहर भरा पडा है ,

उनसे भी सच्चा प्रेम कर बैठे !


उनसे भी हम सच्चा प्रेम कर बैठे !


जालीम दुनियादारी बहुत ही आगे निकल चुकी !

हम दुनियादारी के छक्के पंजे समझ न बैठे !

दुनिया का असली मायावी रंग भी हम ना समझ सके !


हम तो बहुत ही सिधेसादे ,भोलेभाले निकले !

सभी को ईश्वरी अंश समझकर,

सभी पर स्वर्गीय दिव्य प्रेम कर बैठे !

और पछताकर ,जीवन भर के लिए , रो बैठे !

दुनियादारी का असली चेहरा , असली मुखौटा हम समझ ना सके !


हम तो सभी पर दिव्य प्रेम कर बैठे !

पशुपक्षीयों में भी ईश्वर होता है , यह भी हम समझ सके !

मगर क्रूर इंन्सानों के असली चेहरे हम समझ न सके !


मगर क्रूर इंन्सानों का असली चेहरा देखकर ,

ह्रदय भी छलनी हो गया !

कोमल ह्रदय से भी खून बहने लगा !


और आखिर में , क्रूर इंन्सानों की दुनिया में....

हमें भी ह्रदयशून्य बनना पडा !

सभी रिश्ते नाते तोडकर ,

केवल ईश्वर से ही नाता ,

सदा के लिए ,

जोडना पडा !


हम तो सभी पर दिव्य प्रेम कर बैठने की महाभयंकर भूल कर बैठे थे !

मगर अब हम भी , सँवर बैठे !


असली दुनियादारी को समझ बैठे !!


हरी ओम्

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