एक समय था

 एक समय था !!

✍️ २३३८


विनोदकुमार महाजन


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एक समय ऐसा भी था ,

जब हर जगहों पर मुक्त में

पाणपोईयाँ लोग लगाते थे !


और आज ? बंद बोटल में 

हर जगहों पर बीस रूपये में 

एक लिटर पाणी मिलता है !


कहाँ से कहाँ तक पहुंच गया इंन्सान ? और इंन्सानों की दुनिया ?


एक समय था ,

जब हर जगहों पर मुक्त में अन्नछत्र चलाए जाते थे !


और आज ? हर जगहों पर धाबा बनवाकर , पाँच दस रूपये की तंदूर रोटी , साठ - सत्तर रूपये में बेची जाती है !

उसे खरीदने वाले भी खूब मिलते है !


कितना बदल गया इंन्सान ?


सूरज ना बदला , चाँद ना बदला ?

सचमुच में कितना बदल गया इंन्सान ?


एक समय था ,

जब पांथस्थों के लिए ,

हर जगहों में , मुक्त में धर्मशालाएं होती थी !

और आज ? धर्म शालाओं में भी , छोटेसे रूम के लिए ,

हजार - दो हजार ले जाते है !


कैसा बदल गया इंन्सान ?


एक समय था ,

जब खुद भूका रहकर ,दूसरों को बडे प्रेम से खाना खिलाया जाता था !


और आज ? भ्रष्टाचारी ...गरीबों का भी खून चुसचुसकर , बडे बडे राजमहाल बनाते है ?


सचमुच में कितना बदल गया इंन्सान ?


ऐसा इंन्सानों का भयावह मुखौटा देखने से बेहतर यही है कि , तुरंत मेरा असली घर...

स्वर्ग को वापीस लौट जावूं ?

और हरदिन ,हरपल...

ईश्वर के साथ बैठकर ,

मस्त गपशप करूँ ?


मगर कार्य तो उसी ईश्वर का करना है !

हर एक का चैतन्य जगाना है !

हर एक का ईश्वरी तत्व जगाना है !

प्रभु की सुंदर धरती को , फिरसे सुंदर बनाना है !


मगर हर जगहों पर बैठे ,

हाहाकारी हैवानों का ह्रदयपरीवर्तन भी कैसे करूं ?


दिव्य प्रेम करनेपर भी , जिन्होने दूसरों का जीना ही हराम किया हुवा है ?

दूसरों की आदर्श संस्कृति को भी तबाह करने का सदीयों से कार्य किया है ??


उनपर विश्वास भी कैसे करूं ?

हमारे भी ? और पराये भी ?


हरी ओम्

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