आत्मा का नाम
आपके " आत्मा " का नाम क्या है ?
✍️ २३५५
विनोदकुमार महाजन
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आप सभी के अंदर ,
हर एक सजीवों के अंदर ,
आत्मा होती है !
इसे ही चैतन्य कहते है !
क्या आप इसे देख सकते हो ?
क्या आप इसे जान सकते हो ?
और आपके आत्मा का नाम क्या है ?
शरद , रमेश , प्रमोद , विनोद क्या यह सभी आत्मा के नाम है ?
नहीं !
यह आत्मा के नहीं ,बल्कि ईश्वरी कृपा से , हमारा जो पंचमहाभूतों से बना हुवा यह छोटासा देह है , उस देह का यह नाम है ! और उसी पंचमहाभूतों के देह के अंदर एक तेजस्वी , जागृत , चैतन्य मयी आत्मतत्व है !
और इस आत्मतत्व का ना रंग है , ना रूप है , ना इसे आकार है और नाही इसकी जन्म और मृत्यु होती है !
एक ही आत्मा प्रारब्ध गति के अनुसार,अनेक , विविध देह बदलती रहती है !
इसे ही चौ-याशी लक्ष योनियों का भ्रमण कहते है !
और इसी ज्ञान की प्राप्ति करने के लिए ही ,हमारे देह का ईश्वरी प्रायोजन है !
आत्मज्ञान ,ब्रम्हज्ञान प्राप्त करके आत्मोध्दार और मोक्षप्राप्ति के लिए निरंतर प्रयास करते रहना ही मानवप्राणी के जीवन का प्रमुख उद्देश्य होता है !
और आत्मोध्दार होने के बाद , विश्वोध्दार के लिए भी आजीवन कार्य करते रहना ही , ईश्वरी कार्य है !
ईश्वर निर्मित ,सत्य सनातन धर्म का आजीवन प्रचार और प्रसार करते रहना !
निरपेक्ष भाव से !
समर्पित भाव से !
ईश्वर के संपूर्ण शरणागत भाव से !
मेरा तेरा का भेद छोडके !
अहंकार को छोडके !
सुखदुखों की चिंता छोडके !
" विनोद महाजन " , मेरे आत्मा का नाम नहीं है ! बल्कि यह एक छोटासा देह है ! उस देह का नाम विनोद है !
मगर इस विनोद के देह के अंदर जो आत्मा है वो तो निराकार है !
और यही आत्मा निराकार श्वासों द्वारा , निराकार ब्रम्ह से निरंतर जूडी हुई है !
मतलब ?
हम निरंतर , चौबिसों घंटे ,दिनरात ईश्वर से जूडे हुए है !
इसीलिए यह पंचमहाभूतों का देह शाश्वत नहीं है , बल्कि इसके अंदर का आत्मतत्व ही शाश्वत है , अनादी है , अनंत है , सुंदर है , आनंदी है , प्रेममय है , निष्पाप है , निरागस है , निष्कलंक है , स्वच्छंदी है , बंधनमुक्त भी है ! और युगों युगों से लेकर , युगों युगों तक चिरंतन भी है !
अनादी मैं अनंत मैं !!
ना इसकी मृत्यु होती है , ना इसका जन्म होता है !
नैनं छिंन्दंन्ति शस्त्राणि ।
नैनं दहति पावकः ।।
इसे ना शस्त्र काट सकता है , और नाही अग्नी जला सकता है !
तो शोक , दुख , चिंता क्यों और किस बात का ?
और इसीलिए तो हमारी महान सनातन हिंदु संस्कृती यही सिखाती और बताती है की,
हर नर बने नारायण !
हर नारी बने नारायणी !
और नारायण और नारायणी के ईश्वरी कार्यों द्वारा सृष्टि का कल्याण हो !
हर सजीवों को अभय मिले !
उन्हें भी आजीवन आनंदी जीवन जीने का अधिकार प्राप्त हो !
ईश्वर की सभी एक संतान !
सभी को जीने का है संपूर्ण अधिकार !
आप सभी तो नारायण और नारायणी का ही मूल रूप हो !
मगर अथक प्रयासों द्वारा हम सभी को ,षड्ररिपू भेदन करके , आसुरीक गुणों का त्याग करके, उस मूल रूप से एकरूप हो जाना है ! और जीवन का अंतिम साध्य भी यहीं है ! जो हमें अथक प्रयासों द्वारा साध्य करना है !
खुद ईश्वर स्वरूप हो जाना !
यही जानने के लिए ,
सद्गुरू की जरूरत होती है !
सद्गुरू ही हमें ईश्वरी शक्तियों से एकरूप करते है !
मेरे सद्गुरू आण्णा ने तो ऐसा दिव्य चमत्कार करके ही दिखाया है !
आप सभी मेरे प्यारे मित्रों से भी यही अपेक्षा है !
ना मुझे आपका गुरु बनने की चाहत है , ना स्वामी बनने की अपेक्षा है !
ना धनदौलत कमाने की होड में लग जाना है !
ना ऐशोआराम का जीवन जिने की चाहत है !
एक छोटासा मानवप्राणी बनकर , आप सभी के अंदर का तेजस्वी ईश्वरी तत्व , जागृत चैतन्य , जगाने की चाहत है !
आप सभी का चैतन्य जगाना है !और उसी ईश्वरी शक्तियों से आप सभी को जोडकर , सनातन संस्कृति का कार्य विश्व के कोने कोने में पहुंचाना है !
ईश्वर निर्मित , संपूर्ण विश्व के , हर मानवप्राणी को , उस सनातन धर्म से जोडना है !
यही हमारे ,हम सभी के , जीवन का मुख्य उद्देश्य भी है !
और अंतिम साध्य भी है !
आप क्या चाहते है ?
हिंदुमय विश्व !
विश्व विजेता हिंदु धर्म !
हरी ओम्
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