दिदी ( ४ )

 यह उत्तर यथोचित नहीं लगता है

क्योंकि मैंने मेरे मन की स्थिति के बारे में नहीं लिखा था ,बल्कि भगवान श्रीकृष्ण की ,उस समय की ,भगवान के नाते से कैसी मानसिक स्थिति होगी, ऐसा प्रश्न किया था

भगवान का आत्मा तो स्वयं परमात्मा होने के कारण , शांती का सागर जैसी स्थिति हो सकती है ।
मतलब दोलायमान की स्थिति न होकर , स्थितप्रज्ञ ,शांत ,स्थीर ही होगी।
और शांत भाव से सुयोग्य समय का इंतजार यही भी धारणा होगी

मगर ईश्वर जब मानवी देह में प्रवेश करते है तो...
रामजी भी सिताहरण के बाद ,सिता वियोग से ,पेडों को पकडकर,
सिता सिता पुकारकर रोते थे
ऐसी स्थिति में भगवान श्रीकृष्ण के मन की धारणा क्यो होगी ?
ऐसा मेरा प्रश्न था

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