फोकट का खाना

 फोकट का खाना...।

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फोकट का खाना,
फ्रि में माल लेना,
दुसरों का धन हडपना,
क्या यही सभ्यता
बन गई आज देश में ?
फोकट में खाकर भी,
उपर से गुर्राना,
फायदा करनेपर भी,
पलट जाना,
और उपकार कर्ता को ,
उलटी गालियां देना,
क्या यही पहचान बन गई यहाँ की ?
आजादी के बाद,
सत्ताधारी चोरी,
करते रहे,
घोटाले घपले करते रहे,
देश को रातदिन ,
लुटते रहे,
और बार बार सत्ता में,
आते रहे।
फिर फोकट में लौलीपौप,लैपटौप,
साईकिल बाँटते रहे।
फोकट में खानेवालों को
कर्जामाफी का गाजर
दिखाते रहे।
फोकट खाने वाले भी 
लालची बन गए,
फोकट के जमाने में,
स्वाभिमान, आत्मसंम्मान भुलते गए
और दिनबदिन लाचार, कंगाल, भिकारी, बनते रहे।
देश को,देशवासियों को
भूका कंगाल बनाकर,
परदेशों में पाप का धन
काली माया जमा
करते रहे,
और फोकट का सबकुछ मिलनेवाले,
बारबार उन्ही को हरबार चुनते रहे।
रक्तपिपासु बडे बडे मच्छर गरीबों का खून
दिनरात चुसते रहे।

और तब एक चमत्कार हुवा,
"नर -इंद्र",नाम का महापुरुष इसी पवित्र भूमी पर,
अवतरित हुवा।
गरिबों को...काटनेवाले
रक्तपिपासु मच्छरों से
बचाता रहा।
मच्छरों का जीना 
हराम करने लगा।
तभी सभी मच्छरों में
भूचाल आया।
मच्छर घबराहट में
एक हो गए।
"नर - इंद्र ",को 
दूर करने की नितीयां
बनाने लगे।

पाँच राज्यों में फिर से
सत्ता का रणकंदन हुवा
फोकट में खाने वाले
लालचीयों ने फिर 
धोका किया।
रक्तपिपासु, अत्याचारीयों को
फिर से सत्ता का मुकूट
बहाल किया।
हाय रे हाय कर्मजलों,
फोकट में सब मिलने की अपेक्षा करनेवालों
भेडियों के जाल में
फिर से लटक गए,
जहर के गहरे कुवें में
फिर से अटक गए।
और पुण्यात्मा
"नर -इंद्र ",को नकारते गए।
हैवानियत को बढावा देते रहे।
खूद का सर्वनाश करने की तैयारी करते रहे।
फोकट में खानेवाले, लालची ,फिर से 
भटक गए।
भाईयों, अब आगे ऐसी गलती मत करना।
भगवान ने दी हुई,
खूद के और देश के
विकास की संधि
मत गँवाना।
"विनोदकुमार",की यह
कडवी बोली का 
स्वीकार करना।
और आगे फिर से
"नर -इंद्र ",को ही 
स्वीकार करना।
और सभी का भविष्य
खुशहाल बनाना।
देश में आबादी का 
राज्य लाना।
लबाड,ढोंगी भेडियों से
सदा सावधान रहना।
रक्तपिपासु मच्छरों से
सदैव दूर रहना।
उनके मिठे मिठे शब्दों के जहरीले मायाजाल में
कभी भी मत लटकना।
और ,केवल और केवल

"नर - इंद्र ",को ही चुनना।

नही तो ?
जीवनभर के लिए पछताओगे,कर्मजले ही रहेंगे,
फोकट के लालची भी
रहेंगे।
और भगवान भी, तुम्हें आगे बचाने को नही आयेगा।
भगवान भी कहेगा...
तुम सभी देशवासियों को

राजा बनाने के लिए
मैंने ही एक देवदूत
पृथ्वी पर भेजा था।
और तुम ???

हरी ओम।
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--  विनोदकुमार महाजन।

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