मोबाइल
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मोबाइल...।
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खरच की राव,
मोबाईलनं दुनिया पार येडी येडी झाली।
सत्यानाश झाला समदा,वाट लागली।
जब मोबाइल नही थे,
तो आदमी सुखी था,
हँसता खेलता भी था।
रिश्ते नातों में बडा प्यार ही प्यार था।
एक दुसरें के अश्रु पोंछने,सुखदूख में साथ निभाने के लिए समय ही समय था।
जब मोबाइल नही था,
तो हर घर सुखी था,
आनंदी भी था।
और मोबाइल आ गया,
जैसे दुनिया उजाड हो गई।
रिश्ते नाते समाप्त हो गए।
सुखदुख बाँटना समाप्त हो गया।
मोबाइल से दुनिया पागल हो गई।
मोबाइल से हर घर पागल हो गया।
मोबाइल से हर आदमी पागल हो गया।
क्या भगवान से भी प्यारा,
अब मोबाइल बन गया..???
खरंच,
मोबाईलनं दुनिया येडी की हो झाली।
समद्या दुनियेची मोबाईलनं वाट लावली।
बरे होते,खरे होते ते
पुर्विचे दिवस,
मोबाइल शिवाय
माणुस नावचा विचित्र प्राणी,
मस्त होता,खुश होता,आनंदी होता।
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विनोदकुमार महाजन।
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