कथा एक साधु की

 कथा एक साधु की...।

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अंधेर नगरी में अनेक विद्वानों के साथ, सत्पुरुष -पुण्यवंतों के साथ, साधुसंतों के साथ बारबार अत्यधिक जघन्य अत्याचार किए गए।
कई साधुसंतों को षड्यंत्र द्वारा जेलों में भेज दिया गया,कही साधुओं की गौमाता सहित हत्या की गई।
सत्य को दबाया गया।

भयंकर क्रुर राक्षसी राज्य लाने के लिए अनेक अती भयावह कुटनितिक योजनाएं बनाई गई।

कथा है आटपाट नगरी के अंधेर राज की।
भयंकर अत्याचार होने के बावजूद भी फिरसे, बारबार साधुसंतों ने इस देवभूमि पर जनम लिया।

ऐसा ही एक महान साधु आ गया।समाज में उसका करिश्मा छा गया।
संस्कृति की पुनर्स्थापना होने लगी।लोग मदिरालय जाने के जगह पर मंदिर जाने लगे।वृत त्यौहारों का जमाना आने लगा।
जातियवाद समाप्त होने लगा।देश विदेश से,सभी धर्मों के लोग मतभेद भुलकर आपसी भाईचारा बढाकर,संस्कृति पूजक,ईश्वरवादी बनने लगे।
पान-तमाकू-मावा-गुटखा,सिगार, मांसाहार कम होने लगा।
संपूर्ण समाज आदर्श सिद्धातों की ओर,रामराज्य की ओर बढने लगा।
आसुरिक संपत्ति, आसुरिक राज्य में फिर तबाही फैलने लगी।

और फिर एक बार,
घात हुवा-भयंकर षड्यंत्र हुवा।और साधु को.....
अंदर कर दिया गया।
कमाल की बात हो गई।जीस समाज पर संस्कारों के बीज बोये जा रहे थे,वही समाज भी फिर एक बार संभ्रमित हुवा।और सच्चाई पर शक करने लगा।संशयवादी बन गया।
जो सच्चे थे,वह सब काफी हताश,निराश हो गए।

हुवा यंव की,एक छोटिसी लडकी ने आरोप लगाया,
" कुछ साल पहले मेरे साथ युं हुवा,त्यों हुवा।"
ना सबूत ना गवाह।
अंधेर नगरी का अजब कानून।अरे,ऐसा भी कभी हो सकता है ?
हो सकेगा ?
कुछ सालों बाद आरोप।बिना सबुत, गवाह के आरोप स्विकार करना।
बडा विचित्र, अजीब लगता है ना सुनकर ?

संस्कृति बढाने की सजा उस साधु को अंधेर नगरी में मिल गई।
इतना ही नही,उस साधु के बेटे पर ही ठीक ऐसा ही षड्यंत्र।फिरसे वही लडकी की बहन।वही कहानी।
कुछ साल पहले...डँश..डँश...
फिर ना सबुत, ना गवाह।
और अंधा कानून।
और बेटे को सजा।

अरे भाईयों, सुनकर-पढकर बडा विचित्र लगता है ना ?

अनेक साधुओं के साथ बारबार ठीक ऐसा ही हो गया है,हो रहा है।
आश्चर्य की बात यह है की,ऐसे अंधेर नगरी में अगर कोई व्यक्ति सत्पुरुषों के साथ ऐसा गंदा आरोप पंधरा सालों बाद भी लगायगी,तो वह आरोप, एक प्रतिशत भी सच्चाई न होकर भी,सबूत-गवाह न होकर भी सिधा उस तपस्वी, पुण्यात्मा को बिना सोचे समझे-गुनहगार शाबित करके,अंदर भेज दिया जायेगा।
बडा विचित्र है ना यह भी ?
पर करे तो क्या करें ? आखिर मामला तो अंधेर नगरी का है।यहाँ पर सत्य की अपेक्षा करना,और न्याय माँगना उचित होगा ?
सोचो,
समझो,
जागो।
ईश्वरी अवतार आकर हमें बचायेगा,ऐसी प्रतिक्षा मत करो।
अंधेर नगरी में बहुत पाणी बह चुका है।
सच्चाई पहचानो।

( यह कथा आटपाट नगरी की है और संपूर्ण रूप से काल्पनिक है।किसी व्यक्ति या समूह से इसका कोई दूर दूर से भी संबंध नही है।)

हरी ओम।
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विनोदकुमार महाजन।

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