असली आतंकवादी कौन

 *अब्दुल रशीद है आधुनिक भारत का पहला आतंकवादी जी हां।*

अब्दुल रशीद ने इस देश की पहली आतंकवादी घटना को अंजाम दिया था।

मिस्टर औवेसी, मिस्टर कमल हासन और सिकलुर गैंग के माननीय सदस्यों। 

*गांधी से भी पहले एक और महात्मा (स्वामी श्रद्धानन्द सरस्वती) की निर्मम हत्या हुई थी और इस राक्षसी कांड को अंजाम दिया था अब्दुल रशीद ने।*

इतिहास की इस सच्चाई को जानने से पहले और आतंकवादी अब्दुल रशीद को जानने से पहले आपको ये जानना ज़रूरी है कि स्वामी श्रद्धानन्द सरस्वती थे कौन ??? 

*कितना दुखद है कि आज इस महान हस्ती का परिचय भी करवाना पड़ता है।* 

क्योंकि हम तो अपने इतिहास और अपने अतीत से भागने लगे हैं। 

*खैर, स्वामी श्रद्धानन्द 1920 के दौर में हिंदुओं के सबसे बड़े धार्मिक गुरू थे।* 

आर्य समाज के प्रमुख थे और उनकी लोकप्रियता के सामने उस दौर के शंकराचार्य भी उनके सामने कहीं नहीं ठहरते थे।

*लेकिन वो सिर्फ हिंदुओं के आराध्य ही नहीं थे, महान स्वतन्त्रता सेनानी भी थे।* 

वो अपनी छत्र छाया में मोहनदास करमचन्द गांधी को भारतीय राजनीति में स्थापित कर रहे थे। असहयोग आंदोलन के समय वो गांधी के गांधी सबसे बड़े सहयोगी थे। कुछ इतिहासकारों का दावा है कि स्वामी श्रद्धानन्द सरस्वती ने ही मोहन दास करमचंद गांधी को पहली बार महात्मा की उपाधि दी थी। 

खैर अब बात करते हैं भारत के पहले आतंकवादी अब्दुल रशीद की। वो 23 दिसंबर 1926 की बात है। दिल्ली के चांदनी चौक इलाके में दोपहर के वक्त स्वामी श्रद्धानंद अपने घर में आराम कर रहे थे। वो बेहद बीमार थे, तब वहां पहुंचा अब्दुल रशीद, उसने स्वामी जी से मिलने का समय मांगा। स्वामी जी ने वक्त दे दिया, वो उनके पास पहुंचा उन्हे प्रणाम किया और देसी कट्टे से 4 गोलियां स्वामी जी के शरीर में आर-पार कर दीं। 

*स्वामी श्रद्धानन्द सरस्वती ने वहीं दम तोड़ दिया।* 

अब जानिए क्यों भारत के पहले आतंकवादी अब्दुल रशीद ने स्वामी श्रद्धानन्द की हत्या की थी ??? 

*दरअसल स्वामी श्रद्धानन्द ने हिंदू धर्म को इस तरह से जागृत कर दिया था कि पूरी दुनिया हिल गई थी।*

वो हिंदू धर्म की कुरुतियों को दूर कर रहे थे, नवजागरण फैला रहे थे और उन्होने चलाया था "शुद्धि आंदोलन" जिसकी वजह से भारत के पहले आतंकवादी अब्दुल रशीद ने उनकी हत्या की।

*"शुद्धि आंदोलन"* यानि वो लोग जो किसी वजह से हिंदू धर्म छोड़ कर मुस्लिम या ईसाई बन गए हैं, उन्हे स्वामी श्रद्धानन्द वापस हिंदू धर्म में शामिल कर रहे थे। 

*इसे आज की भाषा में घर वापसी कह सकते हैं।* 

ये आंदोलन इतना आगे बढ़ चुका था कि धर्मांतरण करने वाले लोगों को चूले हिल गईं थी। 

स्वामी जी ने उस समय के यूनाइटेड प्रोविंस (आज के यूपी) में 18 हज़ार मुस्लिमों की हिंदू धर्म में वापसी करवाई और ये सब कानून के मुताबिक हुआ।

*कुछ कट्टरपंथी मुसलमानों को लगा कि तब्लीग में तो धर्मांतरण एक मज़हबी कर्तव्य है लेकिन एक हिंदू संत ऐसा कैसे कर सकता है ???* 

तब कांग्रेस के नेता और बाद में देश के राष्ट्रपति बने डॉ राजेंद्र प्रसाद ने अपनी किताब "इंडिया डिवाइडेट (पेज नंबर 117)" में स्वामी के पक्ष में लिखा कि "अगर मुसलमान अपने धर्म का प्रचार और प्रसार कर सकते हैं तो उन्हे कोई अधिकार नहीं है कि वो स्वामी श्रद्धानंद के गैर हिंदुओ को हिंदू बनाने के आंदोलन का विरोध करें।" लेकिन कुछ कट्टरपंथियों की नफरत इतनी बढ़ चुकी थी कि वो स्वामी की जान के प्यासे हो गए। 

*नतीजा एक दिन भारत के पहले आतंकवादी अब्दुल रशीद से स्वामी श्रद्धानन्द की हत्या करवा दी गई।*

अब आगे क्या हुआ...

*भारत के पहले आतंकवादी अब्दुल रशीद को जब हत्या के आरोप में फांसी सुना दी गई तो, कांग्रेस के नेता आसफ अली ने उसकी पैरवी की।*

30 नवम्बर, 1927 के ‘टाइम्स ऑफ़ इंडिया’ के अंक में छपा था कि स्वामी श्रद्धानंद के हत्यारे अब्दुल रशीद की रूह को जन्नत में स्थान दिलाने के लिए देवबंद में दुआ मांगी गई कि "अल्लाह मरहूम (आतंकी अब्दुल रशीद) को अलाये-इल्ली-ईन (सातवें आसमान की चोटी पर) में स्थान दें।" 

*लेकिन सबसे चौंकाने वाली थी गांधी की प्रतिक्रिया।*

स्वामी जी की हत्या के 2 दिन बाद गांधी जी ने गुवाहाटी में कांग्रेस के अधिवेशन के शोक प्रस्ताव में कहा कि - *"मैं अब्दुल रशीद को अपना भाई मानता हूं, मैं यहाँ तक कि उसे स्वामी श्रद्धानंद जी की हत्या का दोषी भी नहीं मानता हूं, वास्तव में दोषी वे लोग हैं जिन्होंने एक दूसरे के खिलाफ घृणा की भावना पैदा की। हमें एक आदमी के अपराध के कारण पूरे समुदाय को अपराधी नहीं मानना चाहिए।*

मैं अब्दुल रशीद की ओर से वकालत करने की इच्छा रखता हूं।


मेरे सभी हिंदु भाईयों, असलियत जानो,

राष्ट्र निर्माण के लिए, आत्मचेतना, ईश्वरीय तेज जगावो।

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