युं ही मन में आया

 

युं ही मन में आया ! ! !
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स्वर्ग में रहनेवाला,
पवित्र आत्मा,दिव्यात्मा
जब पृथ्वी पर देह धारण करके आयेगा,
तब इंन्सान ने बनाया हुवा पृथ्वी का नरक देखकर दुखी तो होगा ही ना ?

नितदिन अमृत पान करनेवाला आत्मा
स्वर्ग से पृथ्वीपर 
देह धारण करके आयेगा,
और इंन्सान के अंदर बैठी भयंकर गंदगी,नरक
कपट देखकर,
मन ही मन रोयेगा ही ना ?

गो-पालक बनकर, गाय को माता मानकर,
उसके अंदर तेहतीस कोटी देवता देखकर,
उसकी पूजा करनेवाला
गो-पाल फिरसे लौटकर आयेगा,
और नितदिन की गौमाताओं की हत्या देखकर तडपेगा ही ना ?

आदर्श सिध्दांतों के लिए
राजऐश्वर्य छोडकर
बनवास का स्वीकार करनेवाला 
मर्यादा पुरूषोत्तम राम
फिर से देहधारी बनकर
पृथ्वीपर लौट आयेगा
और उसका फुटा टुटा,
ध्वस्त जन्मस्थान देखकर,
अचंबित तो होगा ही ना ?

तो..? तो..?
तो क्या अब वो
यह पाप का भयंकर कलंक देखकर,
पाप का कलंक मिटाने के लिए,
उन्मत्त, उन्मादी पापियों को नेस्तनाबूद करने के लिए,
कल्की का दिव्य देह
धारण करके,
पृथ्वी पर आयेगा ?

सचमुच में मेरा,तुम्हारा
सभी का श्याम और राम,
अब पाप का आगडोंब मिटाने के लिए,
भक्तों की रक्षा के लिए,
गौ -माता को बचाने के लिए,
असुरों के नाश के लिए,
पापों का नाश करने के लिए,
धर्म की पुनर्स्थापना के लिए,
दिव्य देह धारण करके,

लौट के आयेगा ?
फिरसे लौट के आयेगा ?
बस्,युं ही मन में आया,
और लिख दिया।

।।हरी हरी:ओम।।
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विनोदकुमार महाजन।

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