मेरे सद्गुरु
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मेरे सद्गुरु।
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मेरे सद्गुरु मेरे साथ थे,
तो मेरा प्राण मेरे साथ था,
मेरा श्वास मेरे साथ था,
मेरा आत्मा मेरे साथ था।
मेरा चैतन्य मेरे साथ था,
मेरा आनंद मेरे साथ था,
मेरा स्वर्ग भी मेरे पास था।
तेहतिस कोटी देवता भी मेरे साथ थे।
और....
मेरे सद्गुरु देहत्याग करके,
सचमुच में स्वर्ग चले गए तो..?
मेरा प्राण चला गया,
मेरा श्वास चला गया,
मेरा आत्मा भी मेरे देह से चला गया।
मेरा चैतन्य चला गया।
मेरा आनंद भी चला गया।
मेरा स्वर्ग भी चला गया।
तेहतिस कोटी देवता भी चले गए।
और....
मेरा शरीर रह गया एकचलता फिरता कलेवर,
चलती फिरती जिंदा लाश।
भावनाविहीन।
मृत्युलोक पृथ्वी पर मैं
अकेला रह गया।
अनाथ हो गया।
स्वर्ग का भव्यत्व-दिव्यत्व,
सभी स्वर्गीय ऐश्वर्य,
सदा के लिए मुझसे
दूर दूर चला गया।
मेरा निराकार आत्मा,
निराकार ब्रम्ह से ,
निराकार श्वासो द्वारा,
निराकार सद्गुरु चरणों से फिर से जुड गया,
सद्गुरु चरणों में एक हो गया।
मगर फिर भी,
पंचमहाभूतों का यह
साकार देह,
निराधार हो गया।
हरी ओम।
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-- विनोदकुमार महाजन।
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