प्रेम चाहिए या पैसा चाहिए

 प्रेम चाहिए या पैसा ??

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जिसे सच्चा, पवित्र, ईश्वरी प्रेम चाहिए उसको पैसों का हिसाब किताब छोडना पडेगा।
क्योंकि भगवान भी ऐसे ही प्रेम के सदैव भुके रहते है।भगवान भी ऐसा देखते है की,मुझपर अखंड और निस्वार्थ प्रेम करनेवाला भक्त कब मिलता है।
इसिलए ईश्वरी कृपा प्राप्ति के लिए सबकुछ नौछावर करने की हमेशा तैयारी रखनी चाहिए।चाहे सुख हो या दुख,ईश्वर को कभी भी भुलना नही चाहिए।भगवान हमेशा समर्पित प्रेम करनेवाले भक्त पर ही असली प्रेम करता है,और उसी भक्त पर ही सदैव कृपा भी करता है।और जीसपर सदैव ईश्वरी कृपा रहती है,वह व्यक्ति सदैव आनंदित ही रहता है।
मेरा तेरा,धन वैभव,सुख दुख ,मोह माया सबकुछ छोडकर केवल और केवल ईश्वरी चरणों पर ही जो भक्त अपना जीवन और सबकुछ समर्पित करता है,उसीपर ही भगवान की कृपा होती है।
सदैव भगवान को माँगनेवाले, मेरा तेरा कहनेवाले, स्वार्थी, अहंकारी लोगों को भगवन् कृपा और भगवत् प्रेम कभी भी नही मिल सकता।
इसीलिए अगर किसिको अगर धन,वैभव,पैसा ही चाहिए तो उन्होंने भगवत् कृपा की अपेक्षा करना ठीक नही रहेगा।और जिसको केवल भगवत् कृपा,ईश्वरी प्रेम चाहिए उन्होंने धन प्राप्ति या धन से मिलनेवाली सभी सुविधाओं की अपेक्षा छोड देनी चाहिए।इसिलए ईश्वरी कार्य करने  की अपेक्षा करनेवालों को सुखों की अपेक्षा छोडकर केवल और केवल ईश्वरी चरणों पर सबकुछ, पूरा जीवन समर्पित करना चाहिए।
तभी आत्मशुद्धि भी होगी और ईश्वरी कृपा भी होगी।और जब ईश्वरी कृपा होगी तब नामुमकिन भी मुमकिन में बदल जायेगा।और संपूर्ण जीवन भी बदल जायेगा।
भव्य दिव्य जीवन बन जायेगा।और यह केवल समर्पित प्रेम से ही साध्य होगा।
स्वार्थी, अहंकारी, शक्की ,झगडालू लोगों पर भगवत् कृपा कभी भी नही हो सकती।और ना ही ऐसे लोगों के जीवन में कभी बहार भी आ सकती है।
इसिलए सोचो,आपको प्रेम चाहिए या पैसा ? ?
पैसा मागोगे तो भगवत् कृपा और ईश्वरी कृपा कभी भी नही होगी।
और अगर केवल और केवल प्रेम ही मागोगे तो ईश्वर प्राप्ति के रास्ते आसान हो जायेंगे।

मगर आज बहुतांश लोगों को ना भगवान चाहिए, ना भगवत् कृपा चाहिए।बस् केवल धन चाहिए और धन से मिलनेवाली सभी सुविधाएं चाहिए।वह भी तुरंत और कम श्रम में या फिर श्रम किये बगैर ही।और इसीलिए ही आज मानव समुह दुखी है।
ना भगवान चाहिए,ना भगवत् कृपा चाहिए। ना लक्ष्मी चाहिए।ना समर्पित प्रेम चाहिए।चाहिए तो केवल पैसा,रूप्पेय्या।चाहे पाप का हो या पुण्य का।या फिर चाहे अच्छे मार्ग का हो या बुरे।
केवल पैसा ही चाहिए।
क्या यही कलियुग का माहौल है ?और ऐसे ही अती भयंकर माहौल की वजह से रिश्ते नाते समाप्त होते जा रहे है ?समर्पित पवित्र ईश्वरी प्रेम लुप्त होता जा रहा है ?

हरी ओम।
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विनोदकुमार महाजन।

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