आखिर ऐसा क्यों होता है ?

 आखिर ऐसा क्यों होता है ???


स्वकीयों ने एक प्रतिशत भी सहयोग नही किया।मुसिबतों में प्रेम का और आधार का एक शब्द भी नही दिया।समाज ने भी चारों तरफ से भयंकर मानसिक उत्पीडन किया।बारबार रूलाया।

माँ बाप ने भी नदी में देहत्याग किया।


और वह बेचारे,अभागे,असहाय, मजबूर, निर्धन,अनाथ,निराधार, निराश्रीत भयंकर दुख झेलते रहे।

रोते रहे।

मगर किसी को उनकी दया नही आई।


ईश्वर ही एकमेव सहारा।


कौन थे वह...?


नाम है...

सोपान,निवृत्ति, ज्ञानेश्वर, मुक्ताबाई....


आलंदी नगरी।


जो ,

पवित्र ईश्वरी आत्माएं,

संपूर्ण दुनिया में ही नही तो...

आज,संपूर्ण ब्रम्हांड में अजरामर हो गये।


सत्य के साथ, सत्य वादीयों के साथ,ईश्वरी सिध्दांतों पर चलनेवालों के साथ,आखिर ऐसा हमेशा क्यों होता है ? 

ईश्वर भी उनकी ही भयंकर कठोर अग्नीपरीक्षाएं,सत्वपरीक्षाएं बारबार क्यों लेता है ? इंन्सानों द्वारा, अपनों द्वारा, स्वकियों द्वारा, समाजद्वारा

बारबार अपमानित ,प्रताडित क्यों किया जाता है...?

और...

प्रारब्ध द्वारा भी भयंकर दुखदर्द, वेदना,यातना,जहर ,तडप क्यों देता है...?


और इतना होने के बावजूद भी वह पवित्र ईश्वरी आत्माएं इतिहास के पन्नों में अजरामर हो जाते है।

और उपर से धर्म कार्य, सभी का कल्याण, पशुपक्षियों का,जीवजंतुओं का कल्याण,मानवता की जीत,ईश्वरी सिध्दांतों की जीत,सत्य की जीत करके ही रहते है।


ऐसा क्यों होता है ?

क्या यही ईश्वर की इच्छा होती है ?

क्या यही प्रारब्ध का खेल होता है ?

क्या यही नियती की इच्छा होती है ?


सत्य वादीयों के साथ ही हमेशा ऐसा क्यों होता है ?


एक अनुत्तरित प्रश्न।


हरी ओम्


विनोदकुमार महाजन

१८/०५/२०२१

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