दादा कोंडके
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दादा कोंडके...।
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एक मराठी हरहुन्नरी कलाकार, अभिनेता,निर्माता, दिग्दर्शक, शाहीर...।
दादा कोंडके।
अनेक मराठी तथा हिंदी सुपरहिट फिल्मों का निर्माण किया।
सरस्वती का वरदान मिला था दादा कोंडके जी को।
गरिबी में जन्म लेकर भी दादाने अपने बुध्दीमानी के बल पर,फिल्मों में अनेक उंचाईयां प्राप्त की,अनेक विक्रम स्थापित किए और सरस्वती के साथ लक्ष्मी का भी वरदान प्राप्त किया।
मगर...
दुर्दैव देखो,ना उनकी शादी हुई थी,ना उनको बिवी बच्चे थे।
और मेरे जानकारी के अनुसार, पुणे महाराष्ट्र में उनका देहांत हो गया था,
शायद उसी वक्त दादा अकेले ही थे,और फ्लैट में अकेले ही रहते थे।
मेरे समझ में आजतक यह बात नही आ रही है की,करोडों का मालिक होकर भी,दादा ने अपना पूरा जीवन अकेले में ही क्यों गुजारा ?
"एकटा जीव,सदाशिव",नाम की यह उनकी मराठी फिल्म जबरदस्त लोकप्रिय भी हुई थी,और दादा ने यह भी शायद संदेश दिया होगा की,वह अकेले है फिर भी मस्तीमें है,आनंद में है।
यह लेख लिखने का मेरा उद्देश्य केवल एक ही है,
मैं जब संपूर्ण विश्व पर नजर डालता हुं,तो दिखाई देता है की,अनेक अमीर लोगों ने अपना जीवन अकेले और एकांत में ही गुजारा है।
क्यों ?आखिर क्या वजह हो सकती है की,ऐसे अनेक महात्माओं को एक भी विश्वसनीय सहकारी नही मिल सकता ?
परदेशों में तो ऐसे अनेक उदाहरण देखने को मिलते है की,
किसिने अपनी सारी संपत्ति अपने कुत्ते के नाम या वफादार नौकर के नाम कर दी।
इसिलए और एक प्रश्न मन में उठता है,और परेशान भी करता है की,
रिश्ते नातों से,समाज से कुछ महात्माएं सदैव दूरी क्यों बनाये रखते है ?
जब संत ज्ञानेश्वर जैसे अनेक महापुरुषों का,संतों का,समाज द्वारा अत्यंत दुखदायी मानसिक उत्पिडन जानबूझकर किया जाता है,तब उनके सभी संबंधी, रिश्ते -नाते कहाँ छिप जाते है ? ऐसे महात्माओं को,महापुरुषों को रिश्तों से या फिर, समाज से आधार देनेवाला कोई भी आगे क्यों नही आता है ?यह
एक अनुत्तरित प्रश्न है ये।
और जब उन्ही महापुरुषों का नाम विश्व में गूंजने लगता है तो..?
एक एक रिश्ते नातों की ,रिश्ता बताने की कतार लगती है।
इसीलिए कहावत है,
"सुख के सब साथी,दुख में ना कोई।"
शायद यही दुनिया कि रीति है,यही दुनिया दारी है।
सुख में सब नजदीकियां बढाते है,दुख में सब दूर दूर भाग जाते है।
अजब का इंन्सानों का कानून।
हरी ओम।
------------------------------ --- विनोदकुमार महाजन।
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